उतर गए मन में गहरे श्याम ।
अंतर्मन एक छाया उपजी
देखा तो घनश्याम ॥
उतर गए मन में गहरे श्याम ॥
एक दिया अमृत का प्यासा
बूँद-बूँद को तरसे ।
बहे पवन संग उड़-उड़ देखे
धरती भी अम्बर से ॥
पात-पात कण-कण के वासी
रहते चारों याम ।
उतर गए मन में गहरे श्याम ॥
पुत्र बने तुम,सखा बने तुम
प्रियतम मुरली वाले ।
चोर बने माखन चोरी की
चरवाह बने,तुम ग्वाले ॥
माया-मोह मिटायी नटवर
ख़ास से बन गए आम ।
उतर गए मन में गहरे श्याम ॥
भूल गई वो विराट दृश्य
जो देखा रणभूमि पर ।
मानव तन धरि द्वार पधारे
क्या जानूँ हैं गिरधर ?
मन पहचाने चक्षु ना जाने
देखूँ मैं अविराम ॥
उतर गए मन में गहरे श्याम ॥
**जिज्ञासा सिंह**
सुन्दर गीत ! जय श्री कृष्ण !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🌼🌼🏵️🏵️
हटाएंबहुत सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🌼🌼🏵️🏵️
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०८ -२०२२ ) को 'वसुधा के कपाल पर'(चर्चा अंक -४५२७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
रचना के चयन के लिए आपका बहुत आभार अनीता जी ।जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🌼🌼🏵️🏵️
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर 🌻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम् जी ।
हटाएंबहुत खूबसूरत गीत जिज्ञासा जी ।
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हटाएंबहुत बहुत आभार शुभा जी ।
बहुत सुंदर गीत । गहरे उतर गए श्याम ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दीदी ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंभक्ति भाव से ओतप्रोत बहुत ही प्यारा गीत,जय श्री कृष्ण
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भक्ति रस से सम्पन्न मनमोहक गीत ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका मीना जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंजय श्री कृष्ण ! मनोरम गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी।
जवाब देंहटाएं'उतर गए मन में गहरे श्याम' - वाह ..बहुत सुंदर। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्णा 🙏
बहुत बहुत आभार आपका । ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति का हार्दिक स्वागत है🌺🌺
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