गुहार (राष्ट्रीय पक्षी दिवस)

छायाचित्र- संजय कुमार जी
मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा 
पंख मेरे मत कतरो ।
काट दिए सब कानन कुंजन
मानव अब ठहरो ॥

दूर गगन में उड़ते उड़ते
थक धरती पर आऊँ ।
अंधियारी कारी रैना में
नीड़ गिरा मैं पाऊँ ॥
दो दाना और जल माँगू मैं
थोड़ा रहम करो ।
मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा 
पंख मेरे मत कतरो ॥

तृष्णा ऐसी बढ़ी मनुज की
पेड़ कटा,डाली टूटी ।
क्या अपराध हुआ हमसे
दुनिया यूँ रूठी ॥
हम जैसे नन्हें जीवों पर 
कुछ तो ध्यान धरो ।
मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा 
पंख मेरे मत कतरो ॥

जब न होंगे पेड़ और
पादप, वन की हरियाली ।
धरती से अम्बर तक सृष्टि
सदा दिखेगी काली ॥
तनिक सहेजो प्रकृति
तनिक जीवों पर रहम करो ॥
मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा 
पंख मेरे मत कतरो ।।

**जिज्ञासा सिंह** 

13 टिप्‍पणियां:

  1. पंछी, पादप, पेड़ यही तो धरती की शान हैं, मानव इन्हें नष्ट करता कितना नादान है

    जवाब देंहटाएं
  2. जिज्ञासा सिंह12 नवंबर 2022 को 2:55 pm बजे

    त्वरित और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार दीदी !

    जवाब देंहटाएं
  3. पक्षियों व परिंदों पर घात करने वाले मनुष्य पर शानदार व्यंग्य

    जवाब देंहटाएं
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-11-22} को "पंख मेरे मत कतरो"(चर्चा अंक 4610) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  5. क्षमा चाहती हूँ रविवार (13 -11-22)

    जवाब देंहटाएं
  6. सार्थक गुहार ।

    जब न होंगे पेड़ और
    पादप, वन की हरियाली ।
    धरती से अम्बर तक सृष्टि
    सदा दिखेगी काली ॥
    तनिक सहेजो प्रकृति
    तनिक जीवों पर रहम करो ॥
    मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा
    पंख मेरे मत कतरो ।।

    समय की मांग है ऐसी रचनाएं।

    जवाब देंहटाएं