उम्र को जाना है
वो तो जा रही है,
याद का मधुरिम
तराना गा रहे हम ॥
खट्टी-मीठी-शर्बती
नमकीन जो थी,
उसके अफ़साने में
डूबे जा रहे हम ॥
क्या कहें इस कदर
डूबे उबर ना पाए कभी,
खुल न पाई बंद मुट्ठी
उड़ गया हर आसमाँ ।
रास्तों पे रास्ते की
भीड़ में चलके अकेले,
कदम पर ही कदम रख
गुजरा अनेकों कारवाँ ॥
बंद हों या खुली आँखें
पुतलियों ने दृश्य देखा,
लुट रही अपनी अमानत
और लुटाते जा रहे हम ॥
ज्यों फिसलती रेत
अपने आप,
पाँचों उँगलियों से
रोक न पाती हथेली ।
उम्र की बढ़ती उमर
दर्पण दिखाता,
झाँकते केशों की लड़ियाँ
बन रहीं अनुपम सहेली ॥
लीजिए आनंद, कहिए
पकड़कर इस दौर से,
उम्र ढलती जा रही और
जवाँ होते जा रहे हम ॥
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 29 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
"पांच लिंकों का आनंद" में रचना के चयन के लिए दिल से शुक्रिया।
हटाएंबहुत खूब ..... ढलती जा रही उम्र और जवां होते होते अब बच्चे बनते जा रहे हम 🤣🤣🤣🤣
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने । दिल को बच्चा बन ही जाना चाहिए ।
हटाएंखुल न पाई बंद मुट्ठी
जवाब देंहटाएंउड़ गया हर आसमाँ ।
गहरे बोध का दर्शन करातीं पंक्तियाँ
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा नव लेखन को प्रोत्साहित करती है, आभार दीदी ।
हटाएंलीजिए आनंद, कहिए
जवाब देंहटाएंपकड़कर इस दौर से,
उम्र ढलती जा रही और
जवाँ होते जा रहे हम ॥
सकारात्मक सोच दर्शाती बहुत सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।
आभार ज्योति जी ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-11-22} को "उम्र को जाना है"(चर्चा अंक 4622) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका प्रिय सखी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! जीवन का मतलब ही आना और जाना है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रिय जिज्ञासा | जीवन यात्रा के बीच पड़ाव कब आते हैं और कब गुजर जाते हैं पता नहीं चलता | बहुत सही और मोहक शब्दों में बांधा है इस जीवन यात्रा को | हार्दिक बधाई एक भावपूर्ण रचना के लिए |
जवाब देंहटाएंजीवन के फ़लसफ़े को बहुत सुन्दर और सहज रूप में परिभाषित किया है आपने .., खूबसूरत सृजन जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंहम जैसे नौजवानों पर अच्छी कविता !
जवाब देंहटाएंउम्र ढलती जा रही और
जवाब देंहटाएंजवाँ होते जा रहे हम ॥
सकारात्मक सोच दर्शाती बहुत सुंदर रचना, जिज्ञासा जी
आदरणीया मैम , सादर प्रणाम । अत्यंत सुंदर आनंदकर रचना । इस रचना से हर वृद्ध और हर जवान स्वयं को जोड़ कर देख पाएगा । हमारे बूढ़े नाना-नानी और दादा- दादी को हम यह उम्र जीते और अपने आयु के इस पड़ाव का आनंद उठाते देखते हैं । यद्यपि , वृद्धावस्था जीवन का सबसे अंतिम पड़ाव है पर सब से महत्वपूर्ण भी है । पहले बूढ़े होने को नाकारात्मक रूप से देखा जाता था जहाँ स्वास्थ्य के ह्रास और मृत्यु की निकटता को प्रधानता दी जाती थी , और ऐसा माना जाता था कि या तो समय पूजा-पाठ में लगे या फिर उदासीनता से भरा रहे पर अब यह विचार-धारा बदल रही है । अब की प्रौढ़ पीढ़ी पहले की प्रौढ़ पीढ़ी के बनिस्पत अधिक स्वस्थ और जागरूक होने लगी है और जीवन को आध्यात्मिक और सांसारिक संपूर्णता से जीने का लाभ ले रही है ।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना में आपने यह बहुत ही सुंदर और आनंदकर रूप से दर्शाया है ,आशा है आपकी इस रचना से प्रेरित हो , और भी बहुत से लोग इस सकारात्मक पक्ष को देख अपने जीवन के इस पड़ाव को सकारात्मकता से जीने की प्रेरणा लें । पुनः प्रणाम ।
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