हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई

 

फिर मचा है शोरचल हिंदी बचाएँ।

बदलियों में है घिरीसूरज बुलाएँ॥


परखने से काम,अब चलना नहीं है,

समझने का भाव हर मन में जगाएँ॥


अक्षरों की फसल फिर बोनी पड़ेगी,

हैं उगानी वर्णमाला व्यंजनाएँ 


भ्रमित हैं जो दूसरी भाषा से मोहित,

मूल्य अपनी मातृभाषा का बताएँ॥


किस तरह उन्नति मिले नव सृजन को,

ढूँढनी नव राह नव संभावनाएँ॥


**जिज्ञासा सिंह**

12 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी को तो हम क्या बचाएंगे, अलबत्ता पर हर बार हिंदी-दिवस पर उसकी दुर्दशा पर मगरमच्छ वाले आंसू ज़रूर बहाएंगे.

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर।

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  2. अक्षरों के फसल फिर बोनी पढेगी उगानी वर्णमाला व्यंजनाएं ..
    ढूढनी नव राह नव संभावनाएअं

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  3. हिंदी दिवस पर अति प्रेरित करती सुंदर पंक्तियाँ

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-1-23} को "कुछ कम तो न था ..."(चर्चा अंक 4634) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  5. परखने से काम,अब चलना नहीं है,
    समझने का भाव हर मन में जगाएँ॥

    अक्षरों की फसल फिर बोनी पड़ेगी,
    हैं उगानी वर्णमाला व्यंजनाएँ ॥
    बहुत सुन्दर भावनाएँ व्यक्त की है आपने सृजन के माध्यम से । मातृभाषा के गौरव को मान प्रदान करती अति उत्तम भावाभिव्यक्ति ।

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार मीना जी ।

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  6. भ्रमित हैं जो दूसरी भाषा से मोहित,

    मूल्य अपनी मातृभाषा का बताएँ॥
    अपनी मातृभाषा का मूल्य समझना और समझाना जरूरी हो गया है । हिन्दी का विकास ही हिन्दुत्व का विकास है ।
    लाजवाब सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई सखी !

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  7. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार सुधा जी ।

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