दो बालगीत

 


(१)ख़ाली कुर्सी
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घर के आगे बरामदे में

ख़ाली कुर्सी झूल रही है

हिलता उसको छोड़ गए जो

उनकी यादें भूल रही है ॥


कभी हाथ में लिए किताबें

बैठे इसपे दादा जी।

गाँव गए है, मुझसे करके,

फिर आने का वादा भी॥

छड़ी बग़ल में खड़ी हुई

चाट वक्त की धूल रही है ॥


झाँक रहीं आँखों का चश्मा 

बार-बार खिसकाते हाथ।

हर जिज्ञासा-उत्सुकता को

सुलझाते समझाते बात॥

सोच-सोच कर उन यादों को 

मेरी साँसें फूल रही हैं ॥


कितने प्यारे दिन थे मैं था

दादा जी की गोदी में।

डालूँ उँगली उनकी मोटी

हट्टी-कट्टी तोंदी में॥

डाँट, प्यार-झिड़की वाली

मुझे चुभा अब शूल रही है ॥


(२) दादा जी की आदत

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पान सुपारी ख़ाना मेरे

दादाजी की आदत है।

इस आदत से उनकी आती

घर में हरदम शामत है॥


दादी जी दिन भर चिल्लातीं

यहाँ-वहाँ मत थूको।

मसल-मसल कर तम्बाकू

को हवा में यूँ न फूँको॥

ना खाने वालों को होती

इससे दिक़्क़त है॥


सब कहते आदत ख़राब ये

सौ बीमारी होंगी !।

बन जाते हैं धूम्रपान से

लाख तरह के रोगी॥

कान पकड़ लो सभी ज़िंदगी

पर ये घातक है॥


कारण और निवारण सुन

दादाजी जब घबराए।

कान पकड़ कर बोले

कि ये ज़हर न कोई खाये॥

इसको खाने से मर जाती

सारी ताक़त है॥


अब दादा जी नित्य भोर में

सभी को ये समझाते।

धूम्रपान का हर प्राणी,

 को हैं नुक़सान बताते॥

अच्छा ख़ाना, स्वस्थ शरीर

प्रभु की नेमत है॥


**जिज्ञासा सिंह**

16 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर बाल-गीत !
    पहले गीत भावुक कर गया.

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    1. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया रचना को सार्थक बना गई। आपका हार्दिक आभार ।

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  2. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई ।

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  3. वाह!जिज्ञासा जी ,बहुत खूबसूरत बाल गीत ..।

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  4. बाल कविताओं के लिए अत्यंत आभार जिज्ञासा जी।
    सस्नेह।

    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ जनवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. हार्दिक अभिनंदन सखी। आपके शब्द मनोबल बढ़ा गए ।
    पांच लिंकों में रचना के चयन के लिए बहुत शुक्रिया आपका।

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  6. दोनों गीत भावपूर्ण । जहाँ पहला गीत यादों को समर्पित है तो दूसरा गलत आदत को छोड़ने के लिए प्रेरित कर रहा है
    ।बहुत सुंदर ।

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  7. मधुर यादों को संजोए बहुत सुंदर बालगीत!

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  8. दादा जी की यादें और उनकी आदतें .., बहुत सुन्दर भावपूर्ण नायाब बालगीत जिज्ञासा जी । सुन्दर सृजन हेतु आपको बहुत बहुत बधाई ।

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  9. नमन संग आभार आपका, इलेक्ट्रॉनिक युग में लगभग लुप्तप्राय होते गेय बाल साहित्य को गढ़ने के बहाने बड़ों को भी बुरी लत की खामियों से रूबरू कराने के सार्थक प्रयास के लिए, साथ ही तीन पीढ़ियों के तालमेल के भी लुप्तप्राय माधुर्य को शब्दचित्र में सुसज्जित करने के लिए भी .. बस यूँ ही ...

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  10. वाह!!!
    लाजवाब बालगीत
    बहुत ही भावपूर्ण एवं सुंदर संदेशप्रद भी ।
    बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर सृजन हेतु ।

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    1. बाल मन की सहजता और सरलता का चित्रण करते हुए अद्भुत बालगीत सखी

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