आज मन मेरा
मुसाफ़िर फिर चला है।
भागता अपने
मुताबिक़ मनचला है॥
कह रही हूँ मान जा पर
वो मेरी सुनता नहीं है।
भावनाओं की मेरे वो
कद्र अब करता नहीं है॥
तू वही है पूँछती क्या?
आज उसके लग गले,
जो विषमताओं में
पग-पग चाहता मेरा भला है।
चुप हुआ जाता है
मेरे पूँछने पर जाने क्यूँ?
बालपन से आज तक
रूठा कभी मुझसे न यूँ॥
लाख मन उसका कुरेदूँ
हाथ न आए मेरे।
लग रहा नादानियों ने
फिर मेरी उसको छला है॥
मैं पकड़ पाऊँ न उसको
डोर उसकी दूर तक।
भ्रमणकारी पाँव मन के
भागता है बेधड़क॥
वो चला जाएगा तो कुछ
न बचेगा पास मेरे,
सोचकर घबरा गई
ये कौन सी उसकी कला है?
मन है मैं हूँ और दूजा
है नहीं कोई यहाँ।
लौट आया फिर भटक कर
दूर तक जाने कहाँ?
झाँकता आँचल उठा के
दे रहा मुझको तसल्ली।
छोड़कर जाना मुझे सच
में बहुत उसको खला है ॥
**जिज्ञासा सिंह**
झाँकता आँचल उठा के
जवाब देंहटाएंदे रहा मुझको तसल्ली।
छोड़कर जाना मुझे सच
में बहुत उसको खला है ॥
बहुत सुंदर।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (26-02-2023) को "फिर से नवल निखार भरो" (चर्चा-अंक 4643) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर
हटाएंसुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 27 फरवरी 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी।
हटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंवाह! मन की विसंगतियों और अनोखी चाल को बहुत सुंदर बाना पहनाया आपने जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंलग रहा नादानियों ने
फिर मेरी उसको छला है॥
सही मन को हम स्वयं भी चलते रहते हैं।
अभिनव सृजन।
लाजवाब रचना।
जवाब देंहटाएंझाँकता आँचल उठा के
जवाब देंहटाएंदे रहा मुझको तसल्ली।
छोड़कर जाना मुझे सच
में बहुत उसको खला है ॥
बहुत ही उम्दा ।
झाँकता आँचल उठा के
जवाब देंहटाएंदे रहा मुझको तसल्ली।
छोड़कर जाना मुझे सच
में बहुत उसको खला है ॥
बहुत ही उम्दा ।
मैं पकड़ पाऊँ न उसको
जवाब देंहटाएंडोर उसकी दूर तक।
भ्रमणकारी पाँव मन के
भागता है बेधड़क॥
- सत्य
लाख मन उसका कुरेदूँ
जवाब देंहटाएंहाथ न आए मेरे।
लग रहा नादानियों ने
फिर मेरी उसको छला है॥
बहुत सटीक....
सच कहा मन कभी ऐसे ही मनमर्जी करता है।
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
वाह!जिज्ञासा जी,बहुत खूब!मन को मनमर्जी कर लेने देनी चाहिए कभी -कभी ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमैं पकड़ पाऊँ न उसको
जवाब देंहटाएंडोर उसकी दूर तक।
भ्रमणकारी पाँव मन के
भागता है बेधड़क॥….जैसे मेरी ही बात…बहुत उम्दा रचना !!
मैं पकड़ पाऊँ न उसको
जवाब देंहटाएंडोर उसकी दूर तक।
भ्रमणकारी पाँव मन के
भागता है बेधड़क॥…जैसे मेरी ही …उम्दा रचना👏👏
आदरणीया मैम, बहुत प्यारी, सुंदर रचना । मन की चंचलता को बहुत सुंदर शब्दों में दर्शाया है पर मन कहीं हमें छोड़ कर नहीं जाता, जहाँ कहीं भी भागता है, अपने साथ हमें भी भगा कर ले जाता है, सच है मन को नियंत्रित करना बहुत कठिन होता है । इस सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत आभार व आपको सादर प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंमन ने कब किस की सुनी है ....मन को छूती बहुत ही सुंदर रचना। शुभकामनायें आपको।
जवाब देंहटाएंमन की चंचलता पर सुन्दर अभिव्यक्ति
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