मन का दीप जलाए रखना

 

चारों तरफ़ घना अँधियारा

मन का दीप जलाए रखना।


अँधियारे में एक परछाईं

साथ तुम्हारा पकड़े होगी।

उँगली में उँगली हाथों में

हाथ गहे कस जकड़े होगी॥

रूप बदलकर तरह तरह

से साथ चलेगी वो पल-पल,

परछाईं के पदचिह्नों पर

अपनी नज़र गड़ाए रखना॥


वो परछाईं नहीं तुम्हारी

जिसकी है वो देख रहा है।

जाना तुम्हें किधर किस रास्ते

अपना दर्पण फेंक रहा है॥

उस दर्पण में मार्ग हज़ारों

देखो पहचानों तुम अपना,

चल पड़ना जो सुगम लगे

बस दिशा एक चमकाए रखना॥


जिल्दसाज़ की भरी पंजिका

हर पन्ने पर नाम तुम्हारा।

जो भी हिस्से में मिलना है

है हिसाब सब वारा न्यारा॥

घबराहट क्या अकुलाहट क्या

क्या-क्या प्रश्न उठें मन भीतर,

स्याही से चित्रित चिन्हों में

अपनी छवि बचाए रखना॥


**जिज्ञासा सिंह**

19 टिप्‍पणियां:

  1. परछाईं के पदचिह्नों पर अपनी नज़र गड़ाए रखना। बहुत अच्छी कविता रची है आपने।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 27 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. स्याही से चित्रित चिन्हों में
    अपनी छवि बचाए रखना
    -सराहनीय मार्गदर्शन

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  4. वाह! एक स्नेहिल आश्वासन की झलक मिलती है आपकी यह रचना पढ़कर

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  5. सकारात्मक भावों की सुंदर रचना जिज्ञासा जी।
    सरस सुघड़।

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  6. सकारात्मकता का संदेश देती सुंदर रचना जिज्ञासा जी।
    सस्नेह।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ अप्रैल २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  7. बहुत आभार आपका सखी। रचना का चयन। बहुत सारा स्नेह वंदन ।

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  8. बड़ी ही उम्दा अभिव्यक्ति

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