चल सखी उस घर
तुझे रोज़ी दिला दूँ।
मालकिन अच्छी बड़ी
तुझको मिला दूँ॥
निकल जाए काम बस
एक ही मिनट में हाथ से
मालकिन से मत बताना
हम हैं किस कुल जात से
बस इन्हीं बातों में उसकी
सास थोड़ी है ख़खेड़ी
चल सखी ये जाति-मज़हब
पर उसे गच्चा खिला दूँ॥
मालकिन है ठसक वाली
चढ़ के बतलाने लगेगी
दो मिनट में हाव सारा
भाव भी तेरा पढ़ेगी
देखना चढ़ना नहीं हत्थे पे
उसके है हमें
चल सखी अब मोल करना
तोल पर तुझको सिखा दूँ॥
अब ज़माना लद रहा है
नित एजंसी खुल रही है
नाक के बल पीके पानी
सबको आया मिल रही है
है नहीं विश्वास तो
बहुखंडियों का हाल देखो
चल सखी क़ीमत लगा
कर आज उनकी जड़ हिला दूँ॥
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 03 मई 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ज्योति जी
जवाब देंहटाएंयथार्थ प्रकट करती बहुत सुन्दर कृति ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मीना जी।
हटाएंसुन्दर रचना|
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत सृजन प्रिय मैम
जवाब देंहटाएंबहुत आभार प्रिय मनीषा
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंकमाल का यथार्थ लिखा है जिज्ञासा जी आपने
निकल जाए काम बस
एक ही मिनट में हाथ से
मालकिन से मत बताना
हम हैं किस कुल जात से
बस इन्हीं बातों में उसकी
सास थोड़ी है ख़खेड़ी
चल सखी ये जाति-मज़हब
पर उसे गच्चा खिला दूँ॥
लाजवाब ।
दिल छू! लेने वाली बात...! बहुत खूब...! अभी पढ़े और जाने
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