बड़े धूम से बरखा आई।
देख धरा हरसी मुस्काई॥
महक उठी वो सोंघी-सोंधी।
मन में एक अभिलाषा कौंधी॥
माँ के पास दौड़ कर भागी।
उनसे एक इजाज़त माँगी॥
क्यों न उपवन एक लगाएँ।
फूल खिलें चिड़ियाँ भी आएँ॥
माँ सुन फूली नहीं समाई।
उसने खुरपी एक मंगाई॥
खुरपी से क्यारी एक खोदी॥
क्यारी में बीजों को बोदी॥
बूँद गिरी औ बीज हँस पड़े।
देख रहे थे हम वहीं खड़े॥
हँसी बीज की जब रंग लाई।
क्यारी हरियाई लहराई॥
कुछ बीजों से फूल उगे हैं॥
कुछ बीजों के पेड़ लगे हैं॥
बीता दिन और बीती रातें।
फूल देखकर हम हर्षाते॥
पेड़ों की शाखा लहराईं।
अपने संग फलों को लाईं॥
खट्टे-मीठे फल खाते हैं।
झूम-झूमकर इठलाते हैं॥
जिज्ञासा सिंह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंप्रशंसनीय बाल-कविता जो वयस्कों हेतु भी उतनी ही उपयोगी है।
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया रचना को सार्थक कर गई बहुत आभार आपका।
हटाएंमनभावन बाल कविता
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका दीदी।
जवाब देंहटाएंबहु, बहुत, बहुत सुन्दर बाल-कविता! है तो बाल-कविता, किन्तु लिये हुए है प्रौढ़ माधुर्य।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंमुग्ध करती सरस कृति
जवाब देंहटाएंमुग्ध करती सरस कृति
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