देखो चमके दूर शिखर।
गिरी बरफ़ है भर-भर-भर॥
बढ़ी पहाड़ों पर है सर्दी।
सेना पहने मोटी वर्दी॥
सरहद-सरहद घूम रही है।
माँ धरती को चूम रही है॥
भेड़ ओढ़कर कंबल बैठी।
बकरी घूमे ऐंठी-ऐंठी॥
याक मलंग जा रहा ऊपर।
बरफ़ चूमती है उसके खुर॥
मैदानों में मेरा घर है।
चलती सुर्रा हवा इधर है॥
टोपी मोज़ा पहने स्वेटर।
काँप रहा पूरा घर थर-थर॥
कट-कट-कट-कट दाँत कर रहे।
जब भी हम घर से निकल रहे॥
हवा शूल बन जड़ा रही है।
कँपना पल-पल बढ़ा रही है॥
करना क्या है सोच रहे हम?
आता कोहरा देख रहे हम॥
ऐसे में बस दिखे रज़ाई।
मम्मी ने आवाज़ लगाई॥
अंदर आओ आग जली है।
खाते हम सब मूँगफली हैं॥
जिज्ञासा सिंह