कैसे हो ?दोस्त तुम इस घड़ी ।
चलो सजाएँ यादों की लड़ी ।।
याद करें हम पास पड़ोसी,
याद करें हम नानी दादी ।
याद करे वो पहले टीचर,
जिसने जीवन की शिक्षा दी ।।
याद करें माँ की कुछ बातें,
राह दिखातीं घड़ी घड़ी ।।
याद करें हम ताल तलैया,
बगिया और बगिया के झूले ।
मिल जाता जो एक रूपैया,
नहीं समाते थे हम फूले ।।
आठ आने और चार आने में,
लाते ख़ुशियाँ बड़ी बड़ी ।।
झाँक के घर में हमें बुलाता,
मित्रों का वो झुंड निराला ।
घंटों संग में धूम मचाते,
मुँह में जाता नहीं निवाला ।।
घर लौटें,जब ताऊ चाचा,
आँख दिखाते बड़ी बड़ी ।।
चूँ चूँ चाँ चाँ चिड़ियाँ करतीं,
हर आँगन उड़तीं गौरैया ।
बाबा दादा ताऊ चाचा,
संग संग रहते दीदी भैया ।।
एक दूजे का साथ निभाते,
विपदा रहती दूर खड़ी ।।
कुछ पाने को छोड़ के सब कुछ,
निकले सपने नए सजाने ।
संतुष्टि का मंत्र भूलकर,
न जाने हम क्या क्या पाने ?
ये भौतिकता वादी तृष्णा,
हमको भारी बहुत पड़ी ।।
क़ुदरत से अपने को श्रेष्ठ कर,
अंतरिक्ष तक पहुँच गए हम ।
सृष्टि और प्रकृति को छल कर,
जीव जंतु सब भक्ष गए हम ।।
आज उसी का मूल्य चुकाती,
दिखती दुनिया हमें खड़ी ।।
धन दौलत और नाम कमाया,
भवन बनाया बड़ा अनोखा ।
आज उसी में दुबक गए सब,
जीवन लगता है एक धोखा ।।
सिमटी बैठी जोड़ रही हूँ,
यादों की हर एक कड़ी ।।
कैसे हो?दोस्त तुम इस घड़ी ।।
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी इस मर्मस्पर्शी तथा आंखें नम कर देने वाली कविता को पढ़कर एक ग़ज़ल की एक पंक्ति याद आ गई – ‘ज़रा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है’। अभिनंदन आपका जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंकुछ पाने को छोड़ के सब कुछ,
जवाब देंहटाएंनिकले सपने नए सजाने ।
संतुष्टि का मंत्र भूलकर,
न जाने हम क्या क्या पाने ?
बहुत ही कड़वी सच्चाई व्यक्त करती सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।
बहुत आभार ज्योति जी, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना रविवार १८ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी,मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार, आपको हार्दिक शुभकामनाएं, जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंये क्या जिज्ञासा?
जवाब देंहटाएंहम इंसान से मशीन बन गए हैं अब वर्कशॉप में हमारी ओवरहॉलिंग और सर्विसिंग हो सकती है. और तुम हो कि इस तरक्की कपर ख़ुश होने के स्थान पर पुराने जज़्बाती दिन वापस लाने की तमन्ना कर रही हो.
आदरणीय सर,प्रणाम !
हटाएंआप ने बिलकुल सच्चा व्यंग किया है,परंतु क्या करें इस समय को कटने के लिए कुछ तो सहारा होना चाहिए ।
ये भौतिकता वादी तृष्णा,
जवाब देंहटाएंहमको भारी बहुत पड़ी ।।
आज कि स्थिति से भी नहीं सीखेगा इंसान ... चेतावनी देती सी रचना .
आदरणीय दीदी,प्रणाम !
हटाएंसही कहा आपने, इस समय हमारे यहां बहुत ही खराब माहौल है । अभी दस दिन पहले लोग बड़े आराम से बिना मास्क के घूम रहे थे । और आज घर से झांकने में डर लग रहा है,।सादर शुभकामनाएं आपको ।
बहुत खूब!! बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन करती हूं सादर नमन एवम अच्छे स्वस्थ जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
हटाएंहाय !! क्यूँ याद दिला रही है जिज्ञासा जी,आप हमारे पुराने दिन "कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन....
जवाब देंहटाएंबीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छीन...
तरक्की जरूरी थी मगर नीचे गिरने की नहीं ऊपर उठने की तरक्की करनी थी मगर हम है कि नीचे और नीचे गिरते जा रहे है।
दिल में एक टीस सी उठ गई आपकी रचना को पढ़कर। सुंदर सरल शब्दों में लिखी रचना की जितना तारीफ करूँ वो कम है।
सादर नमन है आपको
सच कहा आपने प्रिय कामिनी जी,बहुत सी यादें टीस सी दे जाती हैं,पर इस समय इन मायूसी भरे समय को काटना बड़ा मुश्किल है,उसमे ये यादें हमें सकारात्मक भी बनाती हैं और हम अपनी जड़ों से जुड़ने में भी थोड़ा आनंद की अनुभूति कर सकते है, बस यही अदना सा प्रयास है सखी ।आप स्वस्थ रहें,यही ईश्वर से प्रार्थना है ।
हटाएंआदरणीया मैम, अत्यंत भावपूर्ण और मार्मिक रचना । सच भारत में भौतिकवादित का बढ़ना और संयुक्त परिवार का खत्म हो जाना भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। एक बच्चे को जो प्यार, सुरक्षा और आनंद एक संयुक्त परिवार में भी- बहनों के बीच मिलता है ,वो और कहीं नहीं मिलता । आज कोरोना काल भी हमारे ही स्वार्थ और असावधानी की देन है । आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है और एक सुखद बचपन की छवि खींच कर मन को आनंदित करती है । हृदय से आभार इस प्यारी और सामयिक रचना के लिए ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही विवेचना है तुम्हारी,प्रिय अनंता । तुम्हारी सारगर्भित प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार एवम नमन ।सदैव खुश रहो ।
हटाएंआदरणीया मैम, यह आपने क्या किया, बड़े छोटों को आशीर्वाद देते हैं , उन्हें नमन नहीं करते। आप मुझे इस तरह पाप मत चढ़ाइए । क्यूँ संकोच में डाल रहीं हैं।
हटाएंआप अपने दोनों हाथ मेरे सिर पर रखिए, मुझे आपके आशीष की छाया में रहने दीजिए । आपके चरणों को स्पर्श करती हूँ।
प्रिय अनंता तुम्हारी सुंदर भावनाओं और बड़े विचारों को मैंने नमन किया है, तुम्हारे सुंदर संस्कारों को और एक गम्भीर
हटाएंविश्लेषण पढ़ मैं ये भूल गई प्यारी अनंता कि आप छोटे हो,खैर मैं तुम्हारी सुंदर भावना की कद्र करती हूं,तुम्हारे लिए मेरा बहुत स्नेहाशीष और प्यार, हां तुम इतना अच्छा लिखो कि हम बाध्य हो जाएं, तुम्हें नमन करने को । हमेशा खुश रहो ।
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंअमित जी आपका बहुत आभार एवम अभिनंदन ।ब्लॉग पर आपकी विशेष टिप्पणी का आदर करती हूं । वहां प्रकाशित करने की कोशिश करती हूं । सादर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसोयी बातें जाग रही.. सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंपम्मी जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन करती हूं सादर नमन।
जवाब देंहटाएंक़ुदरत से अपने को श्रेष्ठ कर,
जवाब देंहटाएंअंतरिक्ष तक पहुँच गए हम ।
सृष्टि और प्रकृति को छल कर,
जीव जंतु सब भक्ष गए हम ।।
आज उसी का मूल्य चुकाती,
दिखती दुनिया हमें खड़ी ।।---सटीक चित्रण है, जीवन का, यथार्थ का। कौन समझे और कैसे समझे। समझाईश का ये दौर यदि अब भी हमने समझ लिया तब भी संभाला जा सकता है जो दरक रहा है। आपकी रचना बहुत अच्छी है...बधाई आपको अच्छे और गहरे लेखन के लिए।
बिल्कुल सही कहा आपने, आपका बहुत बहुत आभार संदीप जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों को बहुत सुंदरता से प्रस्तुत किया है और वर्तमान की विडंबना को भी, सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार आदरणीया अनीता जी,आपको मेरा नमन एवम वंदन ।
हटाएंबेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार आदरणीया अभिलाषा जी ,सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबेचैनी और बेबसी ही सब ओर है. शानदार अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का हार्दिक स्वागत करती हूं,आपकी प्रशंसा को नमन है ।
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों का सुन्दर चित्रण और फिर आज की अंधी भौतिकता की तरफ जाती जिन्दगी का खोखला पन .. ये सब एक प्रक्रिया है जिससे हर पीड़ी गुज़रती है ... गुज़ारना होता है ... यही अतीत को जिन्दा भी रखती है ... सुनहरी यादें भी जोडती है ... भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी,आपकी प्रशंसा का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ,आपको मेरा नमन।
जवाब देंहटाएंजी जिज्ञासा जी, बहुत बार पुकारता है मन, कभी विकल होकर, कभी तरल हो कर!! उन यादों की गलियों, आँगन, चौबारे लाँघकर ना जाने कितने योजन भटकता है अक्सर और उन्हीं पलों के पास जाकर बैठ जाता है, जहाँ परिचित चेहरे और भूले बिसरे किस्से हैं! मन में टीस जगाती है आपकी रचना! निशब्द हूँ पढकर!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय रेणु जी, आपकी प्रशंसा को हृदय से लगा लिया है ।
हटाएंबहुत सुंदर संदेश जिज्ञासा जी! बधाई!!!
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी, आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं,सादर नमन ।
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