देखो ! कृष्ण सुदामय तारि रहे
झांकत और विलोकत सखियाँ, नयनन निरखि निहारि रहे ।
लाय सुदामा ने तंदुल दीन्हों जो, कान्हा जू अंक पसारि रहे ।
मीत की प्रीति लगाय हिये, मनमोहन नेह निहारि रहे ।
देखत श्याम की मोहनि मूरति, मनहिं सुदामा विचारि रहे ।
कौन सो अइसो पुण्य कियो, घनश्याम जू राह बुहारि रहे ।
आजु सुदामय भागि जगो, जब नाथहि पांव पखारि रहे ।
देखो ! कृष्ण सुदामय तारि रहे ।।
**जिज्ञासा सिंह**
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-04-2021) को
"वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष" (चर्चा अंक- 4038) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय मीना जी, मेरी कृति को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका कोटिशः आभार, सादर शुभकामनाएं एवम नमन ।
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण।।
चैत्र नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपके स्नेह और प्रोत्साहन की हृदय तल से आभार व्यक्त करती हूं, सादर अभिवादन आदरणीय शास्त्री जी ।
हटाएंबहुत सुंदर।🌻
जवाब देंहटाएंशुभम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन ।
हटाएंअरे वाह जिज्ञासा जी ! बहुत सुंदर ! क्या कहने ! आपके इस कवित्त ने तो हृदय को जीत लिया ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी, आपका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं, ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हमेशा से ही मनोबल बढ़ाती है ।
हटाएं#जिज्ञासा जी, अद्भुत पूरा का पूरा पद ही सुंदर..वाह
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अलकनंदा जी,ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी देख मन खुश हो गया, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंवाह! मधुर जिज्ञासा जी ब्रज शैली में मोहक रचना रची है आपने।
जवाब देंहटाएंसुंदर वात्सल्य से भरी रचना।
आपकी सुंदर प्रशंसा दिल को छू गई, आपको मेरा नमन एवम वंदन । सादर ।
हटाएंसरस ,मधुर और मनभावन पद जिज्ञासा जी👌। ब्रज-माधुरी के क्या कहने !!👌👌👌अच्छा लगा कोई तो है, जो रसखान और महाकवि सूर की शैली में लिख सकता है। सच कहूँ तो ब्लॉग पर ना होता तो कोई पहचान ही न पाता कि सूर जी या रसखान ने लिखा है या जिज्ञासा जी ने । सुदामा और श्रीकृष्ण मिलन
जवाब देंहटाएंप्रसंग की शाब्दिक जीवंतता देखकर लगता है-----झाँकत, विलोकत वाली सखियों में एक सखी जिज्ञासा सिंह भी थी 😃चित्र पर इतने सुंदर पद लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको।
इतनी आत्मीय प्रशंसा को दिल में बिठा लिया है, प्रिय रेणु जी, इतने सुंदर भाव से आपने मेरी रचना की तारीफ की,आपका बहुत आभार,बिलकुल सच कहा आपने चित्र देख कर ही ये रचना लिखी, फिर से आपको नमन ।
हटाएंमीत की प्रीति लगाय हिये, मनमोहन नेह निहारि रहे ।
जवाब देंहटाएंदेखत श्याम की मोहनि मूरति, मनहिं सुदामा विचारि रहे । वाह कितना सुंदर लिखती हैं आप जिज्ञासा जी...। आनंद आ गया। बहुत बधाई। हम तो ऐसा सोच ही नहीं सकते। इस तरह लिखना आसान कहां है...। ईश्वर आपकी लेखनी में यूं ही गहराई प्रदान करता रहे।
आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया से अभिभूत हो गई,संदीप जी आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं, आपकी रचनाओं में हमेशा एक गूढ़ संदर्भ होता है,जो दिव्य है,सादर नमन आपको ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका जिज्ञासा जी...। आपकी रचना हमारी मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई है...कृपया मेरे ब्लॉग पर लिंक है उसे देखियेगा...गूगल प्ले बुक पर पत्रिका है यदि कोई दिक्कत आए तो बताईयेगा आपको पीडीएफ भेज दी जाएगी। आभार आपका
हटाएंजी अवश्य,आपका बहुत बहुत आभार संदीप जी ।🙏🙏
हटाएंपद-पद भक्तन संग 'जिज्ञासा',प्रभु किरपा घट ढारी रहे हैं।🙏🙏
जवाब देंहटाएंआपके सुंदर स्नेह और प्रेरणा की आभारी हूं,सादर नमन ।
हटाएंवाह बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अभिलाषा जी,सादर नमन ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंतुम तो नरोत्तम दास की योग्य उत्तराधिकारी हो !
'पानी परात को हाथ छुओ नहिं
नैनन के जल सों पग धोए'
की याद आ गयी.
आप की प्रशंसा मेरे लिए बहुत मायने रखती है, सदैव स्नेह बनाए रखें,सादर नमन एवम वंदन ।
हटाएंवाह ! ब्रज भाषा पर आपकी गहरी पकड़ है, कोमल भावों को बहुत सुंदर शैली में प्रस्तुत किया है
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय अनीता जी,आपकी प्रशंसा शिरोधार्य है,सादर नमन ।
हटाएंबहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंकोई विधा छूटी है तुमसे ?
ये पद पढ़ कर पढाई का ज़माना याद आया .. जब सूरदास के पद कोर्स की किताब में हुआ करते थे ..
इस पद में बिलकुल जीवंत दृश्य अंकित कर दिया ... बहुत सुन्दर
आपका आशीर्वाद रूपी ये शब्द अभिभूत कर गया, आपके स्नेह की निरंतर आभारी हूं,सादर नमन ।
हटाएंबहुत सुंदर मनोहारी भक्ति पद...🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शरद जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।सादर ।
जवाब देंहटाएंवाह बेहद मनमोहक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूं ।
जवाब देंहटाएंब्रज शैली में मनमोहक रचना,कृष्ण और सुदामा के प्रेमभाव का बहुत ही सुंदर चित्रण जिज्ञासा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी, कृष्ण-सुदामा मिताई पर आपका यह मीठा पद पढ़ कर आनंद मन में हिलोरें लेने लगा । आपका अनंत आभार । अगले पद की प्रतीक्षा रहेगी ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार एवम अभिनंदन इस सुंदर टिप्पणी के लिए । आपको जल्दी ही रामचरित मानस से जुड़े प्रसंगों के पद और छंद पढ़ने को मिलेंगे प्रिय सखी । सादर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंआभार आपका अमित को ।
जवाब देंहटाएंअमित*जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ... मन मोह लिए इस रचना ने ...
जवाब देंहटाएंये सूर के पद से रचना बचपन की किताबों की और ले गई ...
कमाल की रचना ...
बहुत बहुत आभार दिगम्बर जी, आपकी प्रशंसा से अभिभूत हूँ, सादर नमन।
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी रमनवामी के अवसर पर मै श्री राम के जीवन पर अपने कुछ कवित्त डालूँगी, आप से अनुरोध है,समय निकालकर ज़रूर पढ़ें।और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें । सादर अभिवादन आपको।