याद करें वो घड़ियाँ,
जब खेलते थे हम ताई की बनाई गुड़ियाँ,
मन की ढेरों यादों से,
अपनी कुछ नन्ही सी यादें चुरा लें ।
चलो...
याद करें वो स्कूल के दिन,
खो खो खेलते,कंचे रखते गिन गिन,
झिलमिलाते कंचों सी,
अपनी यादें रंगीं बना लें ।
चलो...
याद तो होगा ही झूलों पे लम्बी पेंगें लगाना,
हरे लाल गुलाबी दुपट्टों का लहराना,
पत्तियों की न सही कीप से ही,
मनमोहक मेहंदी रचा लें ।
चलो...
याद है मुझे मेरी हर ख़ुशी में तुम्हारा ख़ुश होना,
मेरे छोटे से ग़म में मुझसे पहले रोना,
यादों के मोतियों को पिरो,
माला बना सीने से लगा लें ।
चलो...
दोस्त तो दोस्त होते हैं हमेशा,
कोई रिश्ता नहीं होता उनसा,
साल भर न सही बस एक दो पल ही,
एक दूसरे को आँखों में बसा लें ।
चलो...
**जिज्ञासा सिंह**
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा
जवाब देंहटाएंगुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा ।
मित्र धर्म का अति सुन्दर वर्णन किया है ।
आपका बहुत बहुत आभार अमृता जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का तहेदिल से शुक्रिया।
हटाएंबचपन की दोस्ती ही अकसर सच्ची होती है क्योंकि उस पर मुखौटे नहीं होते। अच्छी कविता रची है आपने।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी, आपकी प्रतिक्रिया कविता को सार्थक बना गई ।आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंबचपन मे खींच ले गयी आप तो सीधा,
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
आनन्द जी, आपकी टिप्पणी का ब्लॉग पर हमेशा स्वागत है, आपका आभार एवम नमन।
हटाएंबचपन की दोस्ती ताउम्र याफ रहती है। बहुत सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार ज्योति जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन।
हटाएंदोस्त तो दोस्त होते हैं हमेशा,
जवाब देंहटाएंकोई रिश्ता नहीं होता उनसा,
साल भर न सही बस एक दो पल ही,
एक दूसरे को आँखों में बसा लें ।
चलो...
वाह !! बहुत खूब !! अति सुन्दर सृजन ।
मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाने का कार्य करती है,प्रशंसा का हार्दिक आभार एवम आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जिज्ञासा जी | दोस्ती और दोस्तों के प्रति जो स्नेहिल उदगार आत्मा की अतल गहराइयों से फूटे हैं वो बहुत भावपूर्ण हैं |दोस्ती की परिभाषा शब्दों में कहाँ समाती है | किसी स्वार्थ और कलुषता से कोसों दूर ये वो स्नेह पथ है जिस पर चलता इंसान अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता है | एक अभिन्न और सच्चे मित्र के सानिध्य में सदैव सुख और आनंद ही मिलता है |मैत्री की महिमा बढाती आपकी इस रचना ने जाने कितने भूले बिसरे चेहरे याद दिला दिए | आपको मित्र दिवस की ढेरों शुभकामनाएं और बधाई |
जवाब देंहटाएंआज मित्रता दिवस पर आपकी बहुमूल्य और सारगर्भित प्रतिक्रिया का जितना शुक्रिया करूं कम है,कितनी सार्थक टप्पणी करती हूं आप, आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जिज्ञासा ! लेकिन तुम्हारी दोस्ती वाली कविता सिर्फ़ लड़कियों पर केन्द्रित है.
जवाब देंहटाएंजहाँ लड़कियों की दोस्ती झूलों पर और गीत-संगीत के बीच परवान चढ़ती है वहां लड़कों की दोस्ती कबड्डी, गेंदतड़ी, क्रिकेट, पत्थर मार कर इमली-अमिया तोड़ने में और एक-दूसरे का सर फोड़ने के बाद आपस में गले मिलने के बीच जय-वीरू की दोस्ती की शक्ल लेती है.
आदरणीय सर, प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार,और मैं क्षमा प्रार्थी हूं कि ये कविता केवल स्त्रियों पर केंद्रित है,असल में ये मैने पिछले साल हरियाली तीज के आयोजन पर सखियों के लिए पढ़ी थी और बिना संशोधित किए ब्लॉग पर डाल दी हालांकि आखिर का अंतरा आप सभी को समर्पित है, जो बहुत ही सुंदर है😀😀🙏🙏
हटाएंअहा, शब्दों ने स्मृतियाँ जीवन्त कर दीं। बहुत प्रवाहमयी रचना।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर निरंतर प्रोत्साहित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार प्रवीण जी।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-8-21) को "अहा ये जिंदगी" '(चर्चा अंक- 4145) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
प्रिय सखी, कामिनी जी, सर्वप्रथम आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं ढेरों बधाइयाँ,मेरी रचना को मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंबचपन की निष्छल दोस्ती कभी नहीं भूलती पर बचपन के साथ-साथ वे दोस्त भी बिछुड़ जाते हैं ! जीवन की आपाधापी में !
जवाब देंहटाएंलाख बुराइयां सही पर फिर भी आभार है आधुनिक यंत्रों का जो ऐसे बिछड़ों को मिलवाने में मददगार हैं !
जी,बिल्कुल गगन जी,बिल्कुल सही बात है, हम जिस चीज़ का जैसा इस्तेमाल करें वो वैसा ही परिणाम देगा। सोशल मीडिया के ज़रिए हम बहुत सारे अच्छे काम भी करते हैं।आपका बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबचपन की दोस्ती को खूबसूरत शब्द दिए हैं ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
आपका हार्दिक आभार दीदी।
जवाब देंहटाएंयाद करें वो घड़ियाँ,
जवाब देंहटाएंजब खेलते थे हम ताई की बनाई गुड़ियाँ,
मन की ढेरों यादों से,
अपनी कुछ नन्ही सी यादें चुरा लें ।
चलो...
वाह!!!
बचपन की कितनी ही यादें ताजा कर दी आपने।
बहुत ही लाजवाब सृजन।
आपकी सुंदर टिप्पणी ने रचना को सार्थक बना दिया, आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंउम्मीद जगाती कविता...। जीना सिखाती... जीवन से बतियाती रचना..। खूब बधाई आपको...
जवाब देंहटाएंजी, आपका बहुत बहुत आभार संदीप जी,सादर नमन।
हटाएंबहुत बढियां सृजन
जवाब देंहटाएंविनीता जी आपका बहुत बहुत आभार, आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंमित्रता से श्रेष्ठतर कोई सम्बन्ध नहीं। माता-पिता के बाद यही एक रिश्ता है जो स्वार्थ-भावना से परे होता है। इस रिश्ते की पवित्रता व सुन्दरता को खूबसूरत शब्द देने के लिए बधाई जिज्ञासा जी!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय।आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंबचपन की मीठी यादें ताज़ी करती रचना मुग्धता बिखेरती है - - साधुवाद सह।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शांतनु जी, सादर नमन।
हटाएंयाद करें वो घड़ियाँ,
जवाब देंहटाएंजब खेलते थे हम ताई की बनाई गुड़ियाँ,
मन की ढेरों यादों से,
अपनी कुछ नन्ही सी यादें चुरा लें ।
चलो...बहुत ही सुंदर सृजन।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी, सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मधर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका । आपकी टिप्पणी से रचना सार्थक हो गई, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।
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