बने भिखारी खड़े हुए
गंदली दाढ़ी,फटी जुराबें
फटेहाल दिखते भी मुझको
बास तुम्हारे मुँह की कहती
रोटी नहीं मिली कल तुमको
लिए कटोरा घूम रहे
अब मेरे द्वारे गड़े हुए
कभी शहर के इस कोने पे
कभी दिखे उस कोने पर
कितने चक्कर रोज़ मारते
खाने के एक दोने पर
लगता है बस भीख मांगते
छोटे से तुम बड़े हुए
अरे मनुज हो कभी तो सोचो
क्यों कर इस जग में आए हो
देह तुम्हारी हृष्ट पुष्ट है
मन से केवल भरमाए हो
कहूँ अगर कुछ कर्म करो
तो सीना ताने अड़े हुए
ऐसी क्या मजबूरी है जो
कर्म न करना चाहो तुम
भीख मांगकर पेट पालने
का पेशा अपनाओ तुम
तरह तरह का रूप धरे
तुम सबके पीछे पड़े हुए
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र-गूगल से साभार
बस यही भाव आते हैं मन में। आभार उन्हें शब्दों में उजागर करने का।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(०४-०८-२०२१) को
'कैसे बचे यहाँ गौरय्या!'(चर्चा अंक-४१४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी, मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन। शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
हटाएंकाश अपने बाहुबल पर भरोसा करें । लेकिन जब बिना काम के चल रही ज़िन्दगी तो कोई क्यों मेहनत करे ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दीदी।
हटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रिय जिज्ञासा जी! हट्टे -कट्टे भिखारी, जिन्हें बस पैसों से मतलब है , को मेहनत का ना शौक है ना उनकी मजबूरी! उनका काम चल रहा है अच्छा खासा!
जवाब देंहटाएंउन्हें आपकी ये खरी- खरी कभी नहीं भाएगी। लोग इन्सानियत के के नाते उन्हें दान देते हैं पर वास्तव में उन्हें कुछ न देकर कर्म के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए। प्रशासन को भी इन तंदरुस्त और स्वस्थ भिखारियों को काम सिखाकर स्वाभिमान की आजीविका के लिए प्रेरित करना चाहिए। सार्थक रचना के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनाएं।
आपकी समीक्षात्मक प्रशंसा ने रचना का मान रख लिया,मर्म तक पहुंच सुंदर प्रशंसा के भाव,जितना आपका आभार करूं,काम है,आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता हमारे देश के भिक्षुकों के एक बड़े वर्ग पर अक्षरशः लागू होती है जिज्ञासा जी। बालकों पर यह लागू नहीं क्योंकि उन्हें तो विवश किया जाता है चाहे उनके माता-पिता (जो स्वयं भिक्षुक होते हैं) द्वारा अथवा किसी अपराधी गिरोह द्वारा। इसके अतिरिक्त हमारे देश में ऐसे भी अनेक भिक्षुक हुए हैं (विशेषतः नवम्बर 2016 तथा मार्च 2020 के उपरांत) जिन्हें हालात ने दूसरों के समक्ष हाथ पसारने पर विवश कर दिया। वे काम करना चाहते थे मगर काम ही नहीं था (काम दे सकने वाले ख़ुद मजबूर हो गए थे क्योंकि वे उन्हें भुगतान करने की हालत में ही नहीं रहे)। यदि हम चाहते हैं कि कोई मांगना छोड़कर काम करे तो उसके लिए उसे उपदेश देना ही पर्याप्त नहीं, उसके लिए काम उपलब्ध भी करवाया जाना चाहिए। काम न मिलने या अपना काम-धंधा चौपट हो जाने से मजबूर इंसान की मजबूरी भी समझी जानी चाहिए। बालकों से बलपूर्वक भिक्षाटन करवाने वाले अपराधियों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए तथा ऐसे बालकों के भरण-पोषण एवं शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। भिक्षुकों को कोसना एवं उनका तिरस्कार करना सरल है किंतु यह स्मरण रहे कि उनका पुनर्वास समाज एवं सरकार का उत्तरदायित्व भी है। अच्छी कविता हेतु अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी,आपकी इस प्रतिक्रिया ने मेरे अवचेतन मन को कई ऐसे संदर्भ दिए है जिसमें मैं आगे लिखने को प्रेरित होती रहूंगी,नए दृष्टिकोण,नए विषय पर मुझे ले जाने के लिए आपका असंख्य आभार। शुरुआती दिनों में कुछ लिखा भी है मैंने, प्रतिक्रिया पढ़ने के बाद मैने काफी चिंतन किया और कई विषयों पर ध्यान गया । सुंदर दृष्टिकोण देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंबेहद खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंमनोज जी, आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंअरे मनुज हो कभी तो सोचो
जवाब देंहटाएंक्यों कर इस जग में आए हो
देह तुम्हारी हृष्ट पुष्ट है
मन से केवल भरमाए हो---आईना दिखाती कविता...।
संदीप जी आपकी प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन।
जवाब देंहटाएंसटीक।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय जोशी जी ।
हटाएंयह भी प्रारब्ध हैं सखी जो न जाने कितने नाम लिए होती है हर मजबूरी एक कहानी लिए होती है।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन ।
जी,आपका बहुत बहुत आभार सखी ।
हटाएंजिज्ञासा जी..बहुत से भिखारियों के सन्दर्भ आप का सृजन बहुत सही है। सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति के लिए आप बधाई की पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंवीरेन्द्र जी, आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय अनुराधा जी 🙏🙏💐
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका । आपकी टिप्पणी से रचना सार्थक हो गई, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन💐💐🙏🙏
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