बचपन के आँगन में

 
एक दिन मुझसे कहा मेरे बूढ़े से मन ने
चलो लौट चलें बचपन के आंगन में

वहाँ अपनी धूप होगी अपनी ही छाँव 
होगा वही अपना पुराना गाँव 
लेटकर झुलेंगे झिलगी खटिया की वरदन में

पेड़ पर चढ़ेंगे खेलेंगे लच्छी डाड़ी
गुल्ली डंडा लंगड़ी और सिकड़ी
चुरा के तोड़ेंगे कच्ची अमियां गाँव भर की बगियन में

चलेंगे नदिया तलाव नहाने हम
गोता लगायेंगे झमाझम
छप्पक छैया खेलेंगे पोखरन में 

सावन आएगा बरखा बरसेगी 
दुआरे पिछवारे तलैया खूब भरेगी 
नाव नवरिया खेलेंगे चाँदनी रतियन में 

किताब बस्ता लेकर स्कूल चलेंगे हम सब 
इमला गिनती पढ़ाएँगे मास्टर साहब 
पहाड़ा उनको हम सुना देंगे सेकंडन में 

                  खाएँगे अम्मा के हाथ की रोटी औ दाल                        ज़बरिया देंगी वो खूब ही मक्खन डाल  
ज़्यादा खिला देंगी वो फँसा के बतियन में 

           **जिज्ञासा सिंह**    
              चित्र साभार गूगल    

22 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार! आपकी प्रशंसा को नमन करती हूँ..सादर..

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 08-01-2021) को "आम सा ये आदमी जो अड़ गया." (चर्चा अंक- 3940) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

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  3. आदरणीय मीना जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ..सादर नमन..

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  4. खाएँगे अम्मा के हाथ की रोटी औ दाल ज़बरिया देंगी वो खूब ही मक्खन डाल
    ज़्यादा खिला देंगी वो फँसा के बतियन में

    वाह!!
    सुन्दर,सारगर्भित शब्द संकल्पना के लिए शुक्रिया जिज्ञासा जी।

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय सधु जी,..आपकी प्रशंसा को नमन है..

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  5. बचपन के उन दिनों की बात ही कुछ और थी।

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  6. काश हम उन दिनों में, उस गुज़रे हुए वक़्त में, उस बीत चुकी उम्र में लौट पाते जिज्ञासा जी ! पर . . .

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    1. बिल्कुल सच ..बचपन की यादों जैसा कोई ख़ज़ाना नहीं..सादर नमन..

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  7. सोचता हूँ कभी-कभी, ये यादें ना होतीं तो.......... !

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    1. तो शायद हम बचपन में ही बुजुर्ग हो जाते..सादर नमन..

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  8. वाह! वो बचपन के दिन। उन दिनों का क्या शब्द चित्र खींचा है। भाव भी मनभावन और पावन हैं।

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  9. बहुत बहुत आभार विकेश जी, आपकी प्रशंसा को नमन है..।

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  10. ज्यों ज्यों उम्र बढती है मानो हम बचपन के और पास खिसक आते हैं. बहुत ही भावपूर्ण और मर्म को छूने वाली रचना प्रिय जिज्ञासा जी. काश! ये कामना फलीभूत हो पाती!!!

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    1. सच कहा है प्रिय रेणु जी, आपने ! अभी गाँव जाने पर कई बड़ों से बात कर पुराने और नए अनुभव हुए..बड़ा आनंद आया..आपकी स्नेह पूर्ण प्रशंसा को नमन है..

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  11. अहा ! जबरन आरोपित बूढ़ा मन को बचपना में खूब गोता लगवाया है । काश के फिर से सच होने की आस तो जीवन भर रहेगी ही । बहुत सुंदर

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    1. प्रिय अमृता जी, कभी-कभी गाँव में अपने बुजुर्गों से बात करके लगता है कि हमारा बचपन अभी भी उनकी आंखों में जीवित है..और कुछ क्षण के लिए जीवन आनंद से भर उठता है और वह अनुभव बहुत ही सार्थक और समृद्धि से भरा होता है. सादर नमन..

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  12. पेड़ पर चढ़ेंगे खेलेंगे लच्छी डाड़ी
    गुल्ली डंडा लंगड़ी और सिकड़ी
    चुरा के तोड़ेंगे कच्ची अमियां गाँव भर की बगियन में...

    बचपन का स्मरण कराती बहुत सुंदर रचना 🌹🙏🌹

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    1. प्रिय शरद जी, हम सभी को बचपन की यादें और बातें बहुत ही सुखदायी लगती हैं..और हम आज की आपाधापी भरी जिंदगी से उबरने के लिए उन यादों को संजोते रहते हैं..सादर..

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  13. जिज्ञासा दी, आपने तो बचपन के दिन याद दिला दिए।

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  14. सच में ज्योति जी, बचपन की यादें इतनी होती ही शानदार हैं..सादर नमन..

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