भुखमरी के आँसू


क़रीब गए तो देखा 

पर, कर के अनदेखा 


चले तो आए 

मुँह छुपाए


पर बेचैन हैं हम 

देख उनके आंसुओं का ग़म 


आँसू मौत के नहीं, मर्ज़ के नहीं 

जमाने के दुःख दर्द के नहीं  


घर के नहीं, द्वार के नहीं 

ठाठ के नहीं, दरबार के नहीं 


ज़मीन जायदाद के नहीं 

अपनी औलाद के नहीं 


रिश्ते नातों के नहीं 

अपने जज़्बातों के नहीं 


संगी साथी के नहीं 

माँ बाप की थाती के नहीं 


प्रीतम के बिछोह के नहीं 

किसी के मोह के नहीं 


आपदा विपदा के नहीं 

यदा-कदा के नहीं 


ये आँसू हैं हर सुबह हर शाम के,

अन्तहीन भुखमरी के नाम के ,

जिसे वे हमसे छुपाते हैं ||


और बहुमंजिली जगमगाती इमारतों के 

नीचे सड़क के किनारे, गुदड़ी में चिपके, 

ठिठुर कर मरे हुए पाए जाते हैं ||||


**जिज्ञासा सिंह**

23 टिप्‍पणियां:

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    1. आपकी प्रशंसा को नमन है आदरणीया मीना जी, सादर..

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  2. मार्मिक रचना, देश में जरूरत से ज्यादा अन्न होते हुए भी यदि आज कोई भूख से रोता है तो बेहद दुख की बात है

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    1. आदरणीया अनीता दी, आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूँ..सादर अभिवादन!

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  3. उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद गगन शर्मा जी, सादर नमस्कार!

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  4. मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
    कब जी गए कब मर गए, किसी को कुछ खबर नहीं होती

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  5. ये आँसू हैं हर सुबह हर शाम के,

    अन्तहीन भुखमरी के नाम के ,

    जिसे वे हमसे छुपाते हैं ||
    बहुत सराहनीय | शुभ कामनाएं |

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    1. आदरणीय आलोक सिन्हा जी, आपकी प्रशंसा को नमन करती हूँ..सादर प्रणाम !

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  6. हमें अनदेखा नहीं करना चाहिए।
    हमारी बैचैनी उनके क्या काम की।

    यथार्त
    मर्मस्पर्शी

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  7. मर्म को छू कर गुज़रते हुए एहसास ...
    अफ़सोस है की इतने समय के बाद भी समाज में बच्चों को काम और बुख्मारी का शिकार होना पड़ता है ...

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  8. दिगम्बर जी,आपका बहुत-बहुत शुक्रिया..आपकी प्रशंसा को नमन है..

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  9. मर्मस्पर्शी रचना - - निःशब्द कर जाती है।

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  10. बहुत सुन्दर और हकीकत को बयान करती मार्मिक रचना।

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    1. आपकी प्रशंसा को नमन करते हुए आभार प्रकट करती हूँ शास्त्री जी..सादर नमन..

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  11. मर्म को बेधती रचना प्रिय जिज्ञासा जी. अक्सर ऐसे लोगों को देखकर विचार आता है कि घर बसाने का हुनर तो उन्हें भी आता होगा जिनकी उम्र सड़कों, रास्तों पर गुजर जाती है !! इतने घरों में एक घर तो उन्हें मिलता ही नहीं , कोई बात नहीं पर रोटी की थाली भी क्यों उनकी ना हो पाई????

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  12. बिल्कुल सही कहा है आपने प्रिय रेणु जी,मेरे मन में भी यही प्रश्न उठता है..सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभार..

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  13. क्या कहूं जिज्ञासा जी इसे पढ़कर ? ज़ुबां ख़ामोश हो गई है ।

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