हाँ ! छत विहीन हूँ मै
अपना कुछ भी नहीं, पराधीन हूँ मैं
सो जाता हूँ फुटपाथ को अपनी जगह समझ के
धरा के अधीन हूँ मै
बुरा नहीं हूँ मन का मैं
मिट्टी से जुड़े हुए काम करता हूँ मलीन हूँ मै
रोटी से पेट भर सकता हूँ मैं अपना
प्याज और चटनी का शौकीन हूँ मैं
मेरे कपड़ों को देखकर मुझे गंदा मत समझना
स्वभाव से बड़ा ही शालीन हूँ मैं
समझ लेता हूँ सबकी चाल औ बातें सारी
बड़ा बारीक और महीन हूँ मैं
बड़े ही सभ्य हैं घरवाले मेरे अपने
ग़रीब हूँ ,पर कुलीन हूँ मैं
छेड़ दोगे गर अनायास ही मुझको तुम
इल्जाम लगाता बड़े संगीन हूँ मैं
मिले मौका तो मैं हर एक मजे लेता हूँ
झूमता गाता बोतल संग,बड़ा रंगीन हूँ मैं
मेरे अधिकार क्या हैं ? जानता हर बात हूँ युग की
दिखता नहीं हूँ, बड़ा ही नवीन हूँ मैं
वक्त के साथ चलता हूँ मगर वो भागता मुझसे
करूँ क्या ? बड़ा भाग्यविहीन हूँ मैं
हाँ छत विहीन हूँ मैं.......
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत ही अच्छा लिखा है ... एक छत विहीन इंसान के मन के भावों को बाखूबी उतारा है कलम के माध्यम से ... अच्छा परिदृश्य खड़ा किया है शब्दों के माध्यम से ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर नासवा जी,नमस्कार ! आपकी प्रशंसा भरी प्रतिक्रिया ब्लॉग पर देखकर बहुत ही खुशी हुई, कृपया स्नेह बनाए रखें..सादर.. जिज्ञासा सिंह..
हटाएंवाह..🌻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी..
हटाएंभले ही छत विहीन हो लेकिन मजदूर अपने युग का भाग्य विधाता होता है।
जवाब देंहटाएंजी,सच कहा आपने यशवंत जी ! बहुत आभार..।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1987...अब आनेवाले कल की सोचो...) पर गुरुवार 24 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी, नमस्कार ! मेरी रचना को"पांच लिंकों का आनन्द" में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद..।
हटाएंवाह! अर्थपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार विश्वमोहन जी, आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया को नमन है..।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनीता जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूँ..सादर अभिवादन..!
हटाएंक्या बात है वाह
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी
कितना सुंदर लिखा है आपने
एक मजदूर की सारी व्यथाएँ और वास्तविकता कम शब्दों में
बेहतरीन उकेरा है।
मुझे बहुत अच्छी लगी रचना।
सस्नेह बधाई सुंदर सृजन के लिए।
इतनी स्नेह भरी प्रशंसा को हृदय से लगा लिया है, आपका बहुत-बहुत आभार एवं शुभकामनायें..!
हटाएंरोमांचित कर देने वाली रचना...
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी ....
शरद जी, नमस्कार! आपकी प्रशंसा को नमन करती हूँ..आदर सहित जिज्ञासा..!
हटाएं