माँ के बाद



मैं और मेरा मन आज 

माँ के कमरे में खड़े हैं

माँ तो रहीं नहीं जाने क्या 

अब खोजे पड़े हैं


अलमारी से झाँकता माँ का तौलिया

मेरा पसीना पोंछने को आतुर है

सामने रखे चश्मे की 

मेरे माथे की हर सलवटों पर नज़र है


उनका झालरों वाला बाँस का पंखा

लगता है अभी मेरी गर्मी कम कर देगा

बरनी का अचार मेरे 

खाने के स्वाद को दोगुना कर देगा


मुझे खिलाते हुए

वह कौर कौर गिनेगी

मना करने के बावजूद

घी से नहाई रोटी डाल देगी


यादों में डूबा मैं और मेरा मन ये बातें

कर रहे हैं हौले हौले

काश हर कोई माँ के प्यार को

समय रहते समझ ले


पर वक़्त रहते  हम समझते हैं

 समझने देती है तृष्णा हमारी

सत्ता पने के बाद औलाद ही 

बन जाती है स्वार्थी


ऐसा सोच ही रहा था मैं कि

माँ की तस्वीर धीरे से मुस्कराई

मुझसे कान में कहा,कल  सही बेटे

तुझे ये बात आज तो समझ में आयी


  जिज्ञासा सिंह 

चित्र साभार गूगल 

17 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-१२-२०२०) को 'यादें' (चर्चा अंक- ३९२७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत ही आदर के साथ अपनी कविता के, चर्चा के लिए चयन का अभिनंदन करती हूँ, प्रिय अनीता जी आपको हार्दिक शुभकामनाएं..! आपको मेरा नमन..

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  2. हृदयस्पर्शी प्रस्तुति। माँ की अहमियत माॅ के जाने बाद भी समझ आ जाए तो माँ खुश। क्या बात है। सादर।

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  3. आपका बहुत-बहुत आभार..मेरी कविता की प्रशंसा से अभिभूत हूँ..सादर नमन..

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. दुनिया में सिर्फ माँ ही ऐसी है जिसकी यादें टा-उम्र बनी रहती हैं

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  6. जी, सच कहा आपने गगन जी! आपको मेरा नमन..

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शांतनु जी..आपकी प्रशंसा को नमन है..

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  8. बहुत भावुक करता सुंदर सृजन।
    माँ तो बस माँ है न होने पर भी हर एहसास में उतर आती है।

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    1. आपका हृदय तल से आभार व्यक्त करती हूँ.सादर नमन..

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  9. माँ शब्द स्वयं में अनुराग,अनुभूति है।
    भावुक करती सुन्दर,स्पर्शी कविता।

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    1. सच कहा प्रिय सधु जी आपने..सराहनीय प्रशंसा को नमन है..

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  10. सही बात है समय रहते समझ लेते.....
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन।

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  11. बहुत बहुत आभार आपका, जो आपने मेरी कविताओं पर सुन्दर टिप्पणी की..सादर नमन..

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