अश्रुओं से भर गए थे चक्षु मेरे
कंठ भी रूंधने लगे थे वेदना में
श्वास भी अधरों से मिल के लौट ली
होंठ भी हिलने लगे संवेदना में
छोड़ कर मुझको गए इस हाल में जो
वो अमानुष भद्र आखिर कौन थे
चूड़ियों के घाव सब कुछ कह रहे
पर जिह्वा के शब्द अब भी मौन थे
उड़ रहे केशों का दारुण रुदन अब तो
नख से शिख तक है रहा दहला मुझे
वक्ष से उड़ते दुपट्टे का किनारा
पोंछ आंसू है रहा सहला मुझे
हवस के भूखे दरिंदे भेड़िए खुश थे
अपनी वासना की फतह पर
मै बड़ी लाचार बेसुध हूं पड़ी
मां धरा की गोद रूपी सतह पर
क्या कहूं ? सब कह रहे है अश्रु मेरे
पर उन्हें सुनता यहां पर कौन है
इस लिए मैं चुप हूं मेरी चेतना भी
प्रश्न के उत्तर में रहती मौन है
गर यही होता रहा इस भूमि पर
फिर न कोई मानवी बच पाएगी
इस जगत के सामने दुष्कर्म की
नित नई दस्तान लिक्खी जाएगी
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2008...आज सूर्य धनु राशि से मकर राशि में...) पर गुरुवार 14 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरविंद्र जी, नमस्कार ! मेरी रचना को"पांच लिंकों का आनन्द" में शामिल करने के लिए आपके स्नेह की आभारी हूँ..सादर नमन एवं हार्दिक शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं
अभिलाषा जी,बहुत बहुत धन्यवाद एवं मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई..
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार..आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई..
हटाएंसच दारुण गाथा लिख दी आपने भयभीत करता सत्य ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेखन।
ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूँ..मकर संक्रांति की शुभकामनाएं एवं ढ़ेर सारी बधाईयाँ..
हटाएंगर यही होता रहा इस भूमि पर
जवाब देंहटाएंफिर न कोई मानवी बच पाएगी
इस जगत के सामने दुष्कर्म की
नित नई दस्तान लिक्खी जाएगी
कटु सच्चाई व्यक्त करती रचना।
आपकी स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई..
हटाएंयह वेदना , दर्द और टीस...
जवाब देंहटाएंक्या कहें....
पूरी पीढ़ी को ही नए पाठ पढ़ाने होंगे
हमें बेटों में बेटियां पालनी होंगी
।
सादर
बिल्कुल सत्य कथन है आपका..स्नेह के लिए आभारी हूँ..मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ एवं बधाई..
हटाएंसुंदर सृजन । कटु सत्य बयान करती रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद प्रिय शुभा जी, आपको सादर नमन.. मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें..
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी स्नेहपूर्ण प्रशंसा की आभारी हूँ..सादर नमन.. मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें..
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंएक दुष्कर्म पीड़िता की पीड़ा को शब्द देती रचना अपने आप में बहुत विशेष है जिज्ञासा जी | कितना कुछ सहती होगी एक नारी देह -- क्या कुछ नहींहोता होगा उसके साथ !! अवांछित दूषित स्पर्श और कुटिल पौरुष के विषाक्त अट्ठहास!देहा के साथ मन रौंदा जाता है एक लड़की का | उस पर मौन संताप , जिसे स्वर नहीं मिलते वो अनगिन दर्दीली दास्ताने अनकही ही रह जाती हैं | मन को झझकोरती रचना जो सोचने पर विवश जरती है |
जवाब देंहटाएंआपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया हमेशा लेखन को सारगर्भित बना देती है..ब्लॉग पर आपके निरंतर मिल रहे स्नेह की हृदय से आभारी हूँ..मकर संक्रांति की शुभकामनाएं एवं बधाई सहित. जिज्ञासा सिंह..
हटाएंअत्यंत सशक्त
जवाब देंहटाएंहृदयग्राही रचना
प्रिय वर्षा जी,आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..
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