चाँद पर चलेंगे


कभी जब चाँद पर चलना तो धीरे से  बुला लेना 

चले आयेंगे हम छुपकर जहाँ की उन निगाहों से 
जिन्होंने कल कहा था राह में काँटे बिछा देना 

बहुत दिन हो गए पकड़ी नहीं रेशम सी वो उँगली 
मेरी जुल्फों में धीरे से वही उँगली फिरा देना 

तुम्हारी राह में राहें, तुम्हारी बाँह में बाहें 
तुम अपने बाजुओं में भर मुझे झूला झुला देना 

तुम्हारे साँस की गर्मी मुझे अब भी बचाती है 
उसी गर्मी की लौ से प्रेम दीपक फिर जला देना 

धुआँ हो या अगन हो, हो रही हैं शबनमी आँखें 
उन्हीं अश्कों से तुम एक प्रेम की दरिया बहा देना 

बड़ी मुश्किल से फिर तुम्हारा साथ पाया है 
हूँ एक टुकड़ा मैं दिल का,ये समझ, दिल में छुपा लेना 

धड़कते सीने में अब तक बड़े अरमान बाकी हैं 
तमन्नाओं की दुनिया में मेरी महफ़िल सजा देना 

यही वो चीज़ तुमको, है बनाती अलहदा सबसे 
कि मैं बोलूँ नहीं फिर भी तुम्हें आता समझ लेना 

**जिज्ञासा सिंह**
चित्र गूगल से साभार 

43 टिप्‍पणियां:

  1. कभी जब चाँद पर चलना तो धीरे से बुला लेना

    चले आयेंगे हम छुपकर जहाँ की उन निगाहों से
    जिन्होंने कल कहा था राह में काँटे बिछा देना

    वाह!वाह!
    सुन्दर अरमान।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय सधु जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का आदर करती हूँ..

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 22-01-2021) को "धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये"(चर्चा अंक- 3954) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

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    1. आदरणीय मीना जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ..हार्दिक शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज गुरुवार 21 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. प्रिय दिव्या जी, आपका मेरी रचना को  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..

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  4. यशवन्त जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया..सादर नमन..

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  5. मन्त्रमुग्ध करती रचना - - सुन्दर सृजन।

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    1. प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार शांतनु जी.. सादर नमन..

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  6. यही वो चीज़ तुमको, है बनाती अलहदा सबसे
    कि मैं बोलूँ नहीं फिर भी तुम्हें आता समझ लेना

    वाह !!!
    सुंदर मधुर सृजन 🌹🙏🌹

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    1. आपकी सुन्दर प्रशंसा को हृदय से स्वागत है..सादर नमन..

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  7. अलहदा अहसास .... थम सी गई सांस ।

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    1. आपकी प्रशंसा निरंतर हौसला बढ़ाती है आपको मेरा सादर अभिवादन..

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    1. आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..सादर..

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  10. यही वो चीज़ तुमको, है बनाती अलहदा सबसे
    कि मैं बोलूँ नहीं फिर भी तुम्हें आता समझ लेना।
    इसे ही सच्चा प्यार कहते है।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, जिज्ञासा दी।

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    1. इतनी प्यारी प्रशंसा के लिए आभार व्यक्त करती हूँ प्रिय ज्योति जी..

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  11. कल्पना का बहुत ही खूबसूरत कहन...तुम्हारे साँस की गर्मी मुझे अब भी बचाती है
    उसी गर्मी की लौ से प्रेम दीपक फिर जला देना

    धुआँ हो या अगन हो, हो रही हैं शबनमी आँखें
    उन्हीं अश्कों से तुम एक प्रेम की दरिया बहा देना ...ज‍िज्ञासा जी , आप ऑड‍ियो में भी शुरू करने वाली थीं ना ?

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    1. इतनी प्यारी और स्नेहपूर्ण प्रशंसा के लिए हृदय से अभिभूत हूँ..अलकनंदा जी मेरे ब्लॉग "जिज्ञासा के गीत" पर आपको गाने सुनने को मिलेंगे..

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  12. बहुत दिन हो गए पकड़ी नहीं रेशम सी वो उँगली
    मेरी जुल्फों में धीरे से वही उँगली फिरा देना
    वाह!!!
    क्या बात....
    बहुत ही लाजवाब।

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  13. सुधा जी, आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का हृदय से अभिनंदन करती हूँ..सादर नमन..

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  14. बड़ी रूमानी ग़ज़ल कही है जिज्ञासा जी आपने । किसी जज़्बाती शख़्स को बोलकर जो इसे सुनाएं तो वो इन अशआर में ऐसा डूबे कि दाद देना ही भूल जाए ।

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  15. निरन्तर हौसलाअफजाई करती प्रतिक्रिया के लिए आपका शुक्रिया एवं अभिनंदन करती हूँ जितेन्द्र माथुर जी..सादर जिज्ञासा सिंह..

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  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सुंदर मनोभाव। वाह क्या बात है। सादर।

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    1. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया वीरेन्द्र जी,सादर नमन..

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  17. कोमल श्रृंगार भाव लिए सुकोमल सृजन ।
    सुंदर रचना।

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  18. सरस मनोहारी टिप्पणी के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ कुसुम जी.. सादर नमन..

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  19. जब चलना चांद पर, मुझे भी बुला लेना..
    क्या गीत रूपी कविता है आपकी..लाजवाब..

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