एक गहरी साँस
और उदास
मन की बात
पिघल गए हर हालात
बह गए
रह गए
कुछ अनछुए विस्मृत से पहलू
मैं सम्भल लूँ
उसे गले लगाऊँ
अपना बनाऊँ
और वो मेरा आंतरिक सौंदर्य
मेरा माधुर्य
अपने में समेटती
लपेटती
गई धीरे धीरे
और बोलती गई सखी रे
मैं तुम्हारी हूँ
केवल तुम्हारी ही हूँ
अनगिनत साथी आए
गए
हम तुम साथ रहे
घर्षण करते रहे
आजीविका .
को जीविका
बनाया मैंने
तुमने
सहर्ष स्वीकारा
धिक्कारा
कभी नहीं
लेती रहीं
अपनी ऊर्जा
ऊष्मा की पूजा
कर ग्रहण
अभिग्रहण
कर उसे विस्तृत स्थान दिया
मान किया
और आज
मैं तुम्हारी धमनियों की सरताज
बन बैठ गई तुम्हारे भीतर
ऊर्जावान हूँ गर्भ के अन्दर
धीरे-धीरे बह रही हूँ
रच रही हूँ
तुम्हारी मनोरम कल्पना का दैदीप्य
हो रहा है उदीप्य
वही तो तुम्हारी शक्ति है
कहीं कुछ और नहीं, इन्हीं साँसों के
द्वार से बँधी सुन्दरतम मुक्ति है...
**जिज्ञासा सिंह**
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 27 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
जी, श्वेता जी, आपका आमंत्रण स्वीकार है, आपके मिलते स्नेह के लिए हृदय से आभारी हूँ..आपके श्रमसाध्य कार्य के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएं..मेरा सादर नमन..
हटाएंमैं तुम्हारी धमनियों की सरताज
जवाब देंहटाएंबन बैठ गई तुम्हारे भीतर
ऊर्जावान हूँ गर्भ के अन्दर
धीरे-धीरे बह रही हूँ
रच रही हूँ
साँसों के साथ रची बसी बहुत गहन और भावपूर्ण रचना । शुभकामनाएँ
आदरणीय दीदी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ..ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूँ..सादर नमन..
हटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंगगन जी, आपकी प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाती है..आपके स्नेह को सादर नमन..
जवाब देंहटाएंतुम्हारी मनोरम कल्पना का दैदीप्य
जवाब देंहटाएंहो रहा है उदीप्य
वही तो तुम्हारी शक्ति है
कहीं कुछ और नहीं, इन्हीं साँसों के
द्वार से बँधी सुन्दरतम मुक्ति है...
हृदयस्पर्शी भावों की गहन अभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत आभार आदरणीया मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को सादर नमन है, ब्लॉग पर आपकी निरंतर टिप्पणी हमेशा मनोबल बढ़ाती है ।सादर..
हटाएंदिल को छू गई आपकी यह कविता जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी ..आपकी स्नेहपूर्ण प्रशंसा को नमन है ..सादर ।
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हृदय से नमन करती हूं ..सादर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंशांतनु जी, बहुत बहुत आभार.. आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया को नमन है..
जवाब देंहटाएंसरल सहज विन्यास मे बुनी सच्ची कविता, साधु !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय ..आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूं..ब्लॉग पर आने के लिए बहुत शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी , आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूं सादर..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन, हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति सादर नमन जिज्ञासा जी
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा को हृदय से नमन है ..सादर अभिवादन..
हटाएंमैं तुम्हारी धमनियों की सरताज
जवाब देंहटाएंबन बैठ गई तुम्हारे भीतर
ऊर्जावान हूँ गर्भ के अन्दर
धीरे-धीरे बह रही हूँ
रच रही हूँ !
एक अस्तित्व का दुसरे में समाहित हो जाना ही सर्वस्व समर्पण है | अनुरागी मन का प्रीत राग जिज्ञासा जी | बहुत बहुत शुभकामनाएं| बहुत अच्छा लिख रही हैं आप |
आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का जितना आभार व्यक्त करूं कम है..सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदरता से भावों का प्रवाह बनाया है आपने...इस रचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपके स्नेह से अभिभूत हूं..आपकी प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाकर कुछ नया सृजित करने की प्रेरणा देगी ..इसी आशा में जिज्ञासा सिंह..
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