सूखे तालाब की व्यथा (प्रदूषण)

गहरा अगाध,अपार हूँ मैं 
असीमित विस्तार हूँ मैं
पुराना, बूढ़ा तालाब 
अपने गाँव का पहरेदार हूँ मैं 

कोई घुस नहीं सकता यहाँ मेरे डर से 
मेरी विशाल भुजाओं व विस्तृत उदर से 
भय खाते हैं सभी मेरी मिसालों से 
अपने गाँव पे मर मिटने को तैयार हूँ मैं 

मेरे गर्भ में भरा अकूत खजाना रहा 
मेरे सीने पे लोगों का आना जाना रहा 
कईयों ने स्पर्धा जीती है मेरी छाती पर
उन खुशियों का हिस्सेदार हूँ मैं

डूबते का सहारा बना हूँ मैं
बूढे दरख्तों का थामता तना हूँ मैं
तिनका भी नहीं डूबा जहाँ
कश्ती कश्ती संभालता मझधार हूँ मैं

कई उद्योग पनपते रहे हैं मुझमे
जीव जंतु भी खेले मेरे आँगन में 
सीप घोंघों के घर गूंजी किलकारी यहाँ 
मछलियों और कछुओं का परिवार हूँ मैं 

ये बात कही जो वो तो मेरे कल की है
 बताते हुए दिल आज विह्वल भी है
लूटकर खत्म कर दिया मुझको जिसने 
लगा उनका कर्जदार हूँ मैं 

सूखता जा रहा हूँ मैं जब से
छूटते जा रहे हैं सब मुझसे
छिछला हो गया हूँ सिकुड़ सिकुड़ के अब
पहले जैसा न रहा रौबदार हूँ मैं 

सोचता हूँ सबको, फिर से बना लूँ अपना
काश कि मेरा पूरा हो जाए ये सपना
अब तो बस याद उनकी बाकी है
जिन्हें लगता था कि उनका संसार हूँ मैं 

**जिज्ञासा सिंह**

30 टिप्‍पणियां:

  1. सूखता जा रहा हूँ मैं जब से
    छूटते जा रहे हैं सब मुझसे
    छिछला हो गया हूँ सिकुड़ सिकुड़ के अब
    पहले जैसा न रहा रौबदार हूँ मैं
    सूखे सरोवर की व्यथा का जीवंत चित्रण । चिंंतनपरक और हृदयस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी ।

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    1. आदरणीया मीना जी, आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूं..आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा को नमन करती हूं..

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 01 मार्च 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीया यशोदा दीदी, मेरी रचना को चयनित करने के लिए हृदय से धन्यवाद व्यक्त करती हूं..सादर नमन ..

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-3-21) को "बहुत कठिन है राह" (चर्चा अंक-3993) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. मेरी रचना को चर्चा अंक में प्रकाशित करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन और आभार प्रिय कामिनी जी ..सादर शुभकामनाएं ..

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  4. तालाब को केंद्र में रखकर लिखी यह रचना
    पुरानी पीढ़ी के किये हुए संघर्ष और साहस का खुलासा करती है, यह रवहन सचेत भी करती है कि हमारी धरोहर को बचाकर रखना कितना अनिवार्य है.

    कामाल की रचना
    बहुत बहुत बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
    आभार

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    1. आदरणीय ज्योति जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया को हृदय से नमन करती हूं, ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूं..

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  5. मेरे गर्भ में भरा अकूत खजाना रहा
    मेरे सीने पे लोगों का आना जाना रहा
    कईयों ने स्पर्धा जीती है मेरी छाती पर
    उन खुशियों का हिस्सेदार हूँ मैं..वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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  6. प्रिय अनीता जी आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हृदय से आभार एवं अभिनंदन करती हूं..सादर नमन..

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  7. उत्तर
    1. आदरणीय जोशी जी आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा को नमन है ..आपकी टिप्पणी से मनोबल बढ़ता है ..कृपया स्नेह बनाए रखें..

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  8. गहरा अगाध,अपार हूँ मैं
    असीमित विस्तार हूँ मैं
    पुराना, बूढ़ा तालाब
    अपने गाँव का पहरेदार हूँ मैं

    तालाब की व्यथा को बयान करती बेहतरीन कविता
    साधुवाद 🙏

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  9. आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का दिल से आभार व्यक्त करती हूं.. आपको हार्दिक नमन..

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  10. मेरे गर्भ में भरा अकूत खजाना रहा
    मेरे सीने पे लोगों का आना जाना रहा
    कईयों ने स्पर्धा जीती है मेरी छाती पर
    उन खुशियों का हिस्सेदार हूँ मैं
    जिज्ञासा जी , सूखे तालाब ई व्यथा भी एक कवी मन ही जान सकता है | मैंने भी अपने गाँव की सुखी तलैया पर एक रचना लिखी थी | ताल- तलैया के उत्कर्ष के दिन देखकर अब उनका पतन देखकर बहुत वेदना होती है | लाजवाब मार्मिक रचना | मानवीकरण कर तालाब की सब व्यथा लिख दी आपने | हार्दिक शुभकामनाएं|

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  11. प्रिय रेणु जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा हमेशा मनोबल ऊंचा कर देती है ..आपको रचना अच्छी लगी ये मेरे लिए गर्व का विषय है आपके स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह..

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  12. तालाब की व्यथा को भावपूर्ण शब्द दिए आपने मैम

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  13. तालाब का मानवीकरण बहुत खूबसूरती से किया है .तालाब की मार्मिक स्थिति को बखूबी शब्द दिए हैं . सुन्दर रचना .

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    1. आपकी सुंदर प्रशंसा को हृदय से लगा लिया है दीदी, सादर नमन ..

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  14. ताल-तलैयों का सारा दर्द अपनी कविता में उतार दिया आपने जिज्ञासा जी । यही विडम्बना है इस भौतिकवादी समय की ।

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    1. जीतेन्द्र जी आपकी प्रशंसा हमेशा कुछ नया लिखने का मार्ग प्रशस्त करती है..समय मिले तो मेरे ब्लॉग गागर में सागर पर अवश्य पधारें..सादर नमन..

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  15. ये बात कही जो वो तो मेरे कल की है
    बताते हुए दिल आज विह्वल भी है
    लूटकर खत्म कर दिया मुझको जिसने
    लगा उनका कर्जदार हूँ मैं

    वर्तमान पर्यावर्णीय दशा पर बहुत सटीक कटाक्ष करती रचना...

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    1. शरद जी, आप जैसी लब्ध प्रतिष्ठ लेखिका की प्रशंसा हमेशा कुछ अच्छा लिखने को उत्साहित करती है..सादर नमन..

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  16. बेहतरीन कविता बहुत सटीक
    बार बार पढ़ा,काफी अच्छा लगा

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  17. संजय जी आपका तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूँ..ब्लोग पर स्नेह बनाए रखें..सादर नमन..

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  18. बहुत कुछ कह रही है आपकी ये रचना जिज्ञासा जी ।
    रचना में सुखे जलाशय का दर्द ही नहीं सम्पूर्ण पर्यावरण पर आपके संवेदनशील कोमल मन की सुंदर अभिव्यक्ति है।
    अप्रतिम ‌

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  19. कुसुम जी, सच कहूं,आपकी अनुपम टिप्पणी का हमेशा इंतजार रहता है..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया को हृदय से नमन करती हूं..

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  20. बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है, और खत्म भी हो रहा है, प्रकृति के दर्द को कौन समझे कौन दूर करे , ये चिंता का विषय है, सारगर्भित बहुत ही सुंदर रचना जिज्ञासा जी नमन

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  21. ज्योति जी आपका हृदयतल की गहराइयों से आभार व्यक्त करती हूँ..कि अपने ब्लॉग को अपना क़ीमती समय दिया..प्रशंसनीय प्रतिक्रियाओं का सदैव आदर करती रहूँगी..आपको मेरा नमन..

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