चाँद की आँखमिचौली


वह ताक,
 झांक 
रहा था मुझे बादलों में छुपकर
रह रहकर 

दिखता मुझे
और फिर छुप जाता बादलों के पीछे
ये आँखमिचौली
अठखेली

उसको देखती रही
फुदकती रही
मैं भी अपनी छत के ऊपर
अरे ! ये इधर से उधर 

कहाँ जा रहा है ?
चाँद को जाता देख मेरा जी घबरा रहा है
किसी और की छत पर
 अब ठहर

गया है वो निगोड़ा चँदा
अजब बंदा
है ये तो
जरा देखो

अभी मेरा था अब उसका है
न जाने किसका किसका है
हरदम भटकता 
रहता

है ये नामुराद 
मुझे तो बरबाद
ही करके छोड़ेगा ।
ऐसा कर कर के जाने कितनी बार,
ये मुआ चाँद मेरा दिल तोड़ेगा ।।

  **जिज्ञासा सिंह**

39 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया रचना। आपको ढेरों बधाईयाँ।

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  2. आपके प्रोत्साहन भरी टिप्पणी का हमेशा इंतजार रहता है..बहुत बहुत आभार..

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    1. बहुत बहुत आभार,। आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का स्वागत करती हूं सादर नमन ।

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  4. आदरणीय शास्त्री जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हृदय से आभार व्यक्त करती हूं आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  5. बहुत सुंदर शब्दचित्र प्रिय जिज्ञासा जी | नटखट चाँद की ये बातें मनभावन और मनमोहक हैं |

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    1. प्रिय रेणुजी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं,सदा नमन ।

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  6. चंचल मन का ये चाँद
    आसंमा का था या कोई ओंर था
    लुकता -छिपता पल-पल
    कौन वो चितर्चोर था
    अपने में ही खोया रहा
    वो जागी बेफिक्र जो सोया रहा
    समझ सका ना मन की बातें
    कहाँ उसपे कोई जोर था !
    कौन वो चितचोर था ?




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    1. बहुत खूब, भावनाओं का अनोखा संगम, बस शब्द जुदा हो गए, शायद ये आशु पंक्तियां हों या आपकी कोई रचना ,बहुत सुंदर लिखा है,।।। कहां उसपे कोई जोर था !
      कौन वो चितचोर था ?...नायाब ..

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  7. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-03-2021) को    "अपने घर में ताला और दूसरों के घर में ताँक-झाँक"   (चर्चा अंक-4008)    पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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  9. जी आदरणीय शास्त्री जी, आपकी सलाह पे मैं पूरी कोशिश करती हूं,
    ब्लॉग के संदर्भ में मार्गदर्शनन करते रहें, ऐसी आपसे विनम्र प्रार्थना है ।
    मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद एवम आभार, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  10. अभी मेरा था अब उसका है
    न जाने किसका किसका है
    हरदम भटकता
    रहता
    वाह!!!
    चाँद के साथ ये अठखेलियाँ और हठ खेली भी बहुत ही सुन्दर...
    लाजवाब।

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    1. आपकी सराहनीय टिप्पणी का दिल से आभार व्यक्त करती हूं.. आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।

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  11. बेहद दिलचस्प कविता....

    मज़ेदार अल्फ़ाज़ भी

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  12. आपका बहुत बहुत आभार वर्षा जी, आपकी प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाने में सहायक होती है कृपया स्नेह बनाए रखें, सादर नमन ।

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  13. वाह!बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी भाव मोहकता लिए।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार अनीता जी, प्रशंसा के लिए आपको मेरा नमन ।

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  14. है ये नामुराद
    मुझे तो बरबाद
    ही करके छोड़ेगा ।
    ऐसा कर कर के जाने कितनी बार,
    ये मुआ चाँद मेरा दिल तोड़ेगा ।।..वाह!

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  15. दिल को छूती सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय ज्योति जी, ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति एवम प्रोत्साहन की आभारी हूं ।

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  16. गया है वो निगोड़ा चँदा
    अजब बंदा
    है ये तो
    जरा देखो

    अभी मेरा था अब उसका है
    न जाने किसका किसका है
    हरदम भटकता
    रहता

    चाँद की तो यही फ़ितरत है कभी यहाँ -कभी वहाँ। वैसे बचपन में भी चाँद की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आता था,क्यूँ है न जिज्ञासा जी
    लाज़बाब सृजन,सादर नमन आपको

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  17. प्रिय कामिनी जी, चांद का दीदार हर उम्र में खास है ,परंतु बचपन में तो उससे एक अलग ही लगाव होता है, उसके बारे में निरी कल्पनाएं हमरे बाल मन में होती हैं और हम खुद को चांद से जुड़ा हुआ पाते हैं ,एक बात और कामिनी जी, हमारे समय में जवां मन को चांद से इतना इश्क था किं कुछ कहिए मत..आज की पीढ़ी हंस पड़ेगी,पर हम तो घंटों चांद को निहार सकते थे, बतिया सकते थे और इस कदर जुड़े थे कि लगता था कि चांद केवल मेरे लिए ही निकला है, आपने भी जरूर महसूस किया होगा , कोईकुछ भी समझे,पर हमारी उन सुंदर भावनाओं का कोई तोड़ नहीं...आपको मेरा हार्दिक नमन ..

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  18. पहले तुम्हारे तस्वीर की तारीफ , बहुत सुंदर लग रही हो,चाँद पर लिखी गई कविता चाँद की तरह ही खूबसूरत है, हार्दिक आभार, प्यारे कंमेंट के लिए शुक्रिया

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  19. इतना अपनत्व भरा अहसास, संभालना मुश्किल है, आज मन कुछ मैला था, पढ़कर निरमल हो गया, आंखों में हँसी आ गई बहुत आभार व्यक्त करती हूं,मेरा हार्दिक अभिवादन।

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  20. वाह चांद की फितरत का हृदयग्राहिणी चित्रण

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय अभिलाषा जी, आपकी सुंदर प्रशंसा मन मोह गयी..आपको मेरा अभिवादन ।

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  21. अरे ये चांद तो बड़ा ही मस्त मौला है ।
    खिलंदड़ीपन इसकी फ़ितरत है।
    आप भी फंस गई इसके सम्मोहन में ,रब्ब खैर करे।
    बहुत सुंदर मोहक सृजन जिज्ञासा जी।

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  22. अरे क्या कह गयीं कुसुम जी आप, बमुश्किल तो निकल पाई हूँ, आप तो इतनी बड़ी साहित्यकार हैं,ऊपर से कवि मन, उसकी सोच और कल्पना के क्या कहने ? मन आपसे ज़्यादा कौन समझ सकता है ? चाँद का झमेला बड़ा कठिन है..कुछ यूँ समझिए बड़ी कठिन है डगर पनघट की.....बहुत आभार आपका सखी ...

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  23. बहुत सुन्दर भाव . अब चाँद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चकोर ..... यूँ ही गाना याद आ गया ...

    कितनी शिकायत है चाँद से
    कभी सोचो न उस पर क्या गुज़रती होगी कभी मामा बना दिया जाता तो कभी पूजा का पात्र तो कभी महबूब कि शक्ल से तुलना उफ्फ्फ्फ़ क्या करे चाँद ...
    मजाक एक तरफ लिखा बहुत अच्छा है ...
    चाँद को मैंने भी कई रूपों में देख कर शब्दों में बांधा है . मन हो तो एक चक्कर लगा आइये मेरे ब्लॉग पर .
    https://geet7553.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
    --

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    1. आपकी प्रशंसनीय समीक्षा के लिए आपको नमन, चांद के संदर्भ में आपकी बात बिलकुल सही है, मैने आपकी चांद के ऊपर लिखी रचना पढ़ी,बहुत शानदार है, आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  24. बहुत बहुत सुन्दर मधुर कल्पना ।

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  25. आदरणीय आलोक सिंह जी,आपका बहुत बहुत आभार । आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को सादर नमन है ।

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  26. क्या कहने जिज्ञासा जी ! अप्रतिम अभिव्यक्ति !

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  27. बहुत बहुत आभार आपका जितेन्द्र जी, आपकी प्रशंसा को नमन है ।

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  28. अभी मेरा था अब उसका है
    न जाने किसका किसका है
    हरदम भटकता
    रहता.....वाह😄

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