ताऊ जी का संन्यास ( सत्य घटना पर आधारित )



लोगों ने मिल जुल कर के कितनी जुगत लगााई। 

ताऊ ने सेहरा बाँधा बजने दी न शहनाई ।।

मूँछे ताने जीवन भर वो घर के मुखिया बने रहे ।

लिया मोर्चा सबसे डटकर सारंग जैसे तने रहे।। 


एक बाँग पर सारी बहने और भाई बिछ जाते। 

ताऊ चलते आगे आगे वे पीछे लग जाते ।।

अम्माँ बाबू दउआ को सारे तीर्थ करा लााए ।

साड़ी चूड़ी बिंदी को बहुओं को तरसाए ।।


दूध दही फल सब्ज़ी से आँगन हरदम भरा रहा।

भैंस गाय संग ट्रैक्टर ट्रॉली दरवाज़े पर सज़ा रहा ।।

एक हुकुम पर जान छिड़कते दिन भर नौकर चाकर।

चहल पहल की रौनक़ रहती घर के अंदर बाहर ।।


अनुशासन की पराकाष्ठा आसमान से ऊँचीी।

सबको लगन लगी जीवन में कुछ अच्छा करने की ।।

यही सिलसिला क़ायम रक्ख़ा ताऊ ने मेहनत कर।

कोई बाबू बना शहर का कोई ऊँचा अफ़सर ।।


धीरे से सब शहर जा बसे ताऊ पड़े अकेले

ताऊ शहर को जाते रहते राशन सब्ज़ी ले ले ।

उम्र बढ़ी तन मन भी हारा हारी मन की तृष्णा

अपने में हैं व्यस्त बंधु सब नहीं किसी में करुणा ।।


टूटे और थके मन की है व्यथा अकेलेपन की ।

बूढ़ी जर्जर काया चाहे आश्रय अपनेपन की ।।

अंत समय आया ताऊ का सबने हाथ सिकोड़ा ।

हुई हृदय को घोर निराशा अति विश्वास भी तोड़ा ।।


चले गए वो नदी किनारे छोड़ जगत का संग ।

त्याग दिया कर्मों की दुनिया जीवन का हर रंग ।।

घास फूस छप्पर की फिर कुटिया एक बनाई ।

लीन हो गए प्रभु सेवा में सच्ची मुक्ती पाई ।।


**जिज्ञासा सिंह**

37 टिप्‍पणियां:

  1. पूरा जीवन अर्पित कर अंत में अकेले रह जाना अधिकांश वृद्ध का सच है. बहुत सुन्दर सृजन. बधाई.

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    1. आपको ब्लॉग पर देखकर बहुत खुशी हुई ..और आपकी बात भी बिलकुल सच है, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं..

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  2. बेहद मर्मस्पर्शी, भावपूर्ण, यथार्थवादी कथा काव्य प्रिय जिज्ञासा जी।
    शब्दों को लय में बाँधना आपको खूब आता है।
    सस्नेह।

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    1. आपकी प्रशंसनीय एवम विशेष टिप्पणी को हृदय से लगा लिया है एवम स्वागत करती हूं.. बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता जी..

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  3. बहुत सुन्दर रचना।
    Mere Blog Par Aapka Swagat Hai.

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  4. आपका बहुत बहुत आभार संजू जी, आपकी प्रशंसा को नमन करती हूं..ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का आदर करती हूं..

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  5. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी कथाकाव्य
    वाह!!!

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    1. सुधा जी आपका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं, ब्लॉग पर आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत है..

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  6. जीवन की सच्चाई को बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने कविता के रूप में कह डाला ,जो करता है वही सहता है , ये जीवन की सच्चाई है,जहाँ कृष्ण है वही कष्ट है, कुछ लोग ऐसी बातों से निराश हों जाते है, कुछ धीरज धारक बन कर उम्र पार कर जाते है , बहुत ही सुंदर मार्मिक कथा काव्य , सादर नमन शुभ प्रभात जिज्ञासा जी

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    1. इतनी सुंदर व्याख्यात्मक प्रशंसा को हृदय से लगा लिया है आदरणीय ज्योति जी, आपको मेरा हार्दिक अभिवादन..

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  7. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 15 -03 -2021 ) को राजनीति वह अँधेरा है जिसे जीभर के आलोचा गया,कोसा गया...काश! कोई दीपक भी जलाता! (चर्चा अंक 4006) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  8. रवीन्द्र जी, नमस्कार !
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका बहुत शुक्रिया, मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार व्यक्त करती हूं..ये तो हर्ष का विषय है कि आपने प्रकाशन के लिए मेरी रचना को चुना है. आपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई..

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  9. सच है , परिवार कितना बड़ा सहारा होता ही .जब शरीर जर्जर हो जाये और अकेले रहना पड़े तो यही दशा होती है ... शब्द चित्र खींच दिया है ,

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  10. जी, सच कहा आपने दीदी, आपका तहेदिल से आभार और आपको मेरा सादर नमन ..

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  11. जीवन की संध्या का बहुत सुंदर चित्रण रचना के माध्यम ।दिल को छू लेने वाली रचना ।

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    1. मधुलिका जी आपको मेरा प्रातः वंदन एवम नमस्कार ! मेरे इस ब्लॉग पर आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया देखकर बड़ा हर्ष हुआ, आपको मेरा सादर नमन ।

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  12. वाह! बहुत सुंदर!
    जीवन की सच्चाई को बहुत ही खूबी के साथ आपने एक कविता के रूप में बताया

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  13. आपको मेरा प्रातः वंदन एवम नमस्कार ! समय निकालकर आपने मेरे ब्लॉग का भ्रमण किया, आपकी बहुत आभारी हूं..आपको सादर नमन ..

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  14. बहुत ही सुंदर शब्द चित्र उकेरा है आपने आदरणीय जिज्ञासा दी जी मन द्रवित हो गया। अंत समय पीड़ा से सराबोर...।
    मन को छूते भाव।
    सादर

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    1. प्रिय अनीता जी, आपकी अति प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं, ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूं..

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  15. जीवन की कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।

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  16. बहुत बहुत आभार ज्योति जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन है ।

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  17. जीवन की कड़वी सच्चाई ब्यान करती रचना..न जाने कितने ही ऐसे ताऊ आज के जमाने में अकेले जीवन जी रहे हैं....

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  18. जी, सच कहा आपने विकास जी, आपकी विशेष टिप्पणी को हृदय से नमन है सादर ।

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  19. यह भी हमारे समाज की एक सच्चाई है। क्या किया जा सकता है?

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  20. सही कह रहे हैं वीरेन्द्र भाई, कोई किसी को समझा नहीं सकता..आपका आभार..

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  21. ताऊजी ने बहुत ही सुखद रास्ता अपनाया, वक्त रहते सचेत हो जातें तो और अच्छा होता
    मेरा तो यही मानना है जिज्ञासा जी,कि बुढ़ापे में मोह माया त्याग कर अपना एक अलग रास्ता अपनाना चाहिए,
    बहुत खूबसूरती से आपने ये काव्य कथा रची है, लाजबाव सृजन,सादर नमन

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    1. बहुत आभार प्रिय कामिनी जी, सही कहा है आपने, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हृदय से लगा लिया है,आपको मेरा सादर नमन ।

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  22. बहुत ही मार्मिक और भावों से भरा काव्य चित्र प्रिय जिज्ञासा जी |
    दो चार पीढ़ियों से पहले ताऊ जी जैसे एक दो व्यक्ति प्रत्येक परिवार में हुआ करते थे जिनकी खूब सेवा भी होती थी और लोग और परिवार आजीवन उनके विवाह ना करने के फैसले को बड़े सम्मान की नज़र से देखा करते थे |पर पलायन संस्कृति ने ऐसे लोगों के फैसले को अंततः एक अनंत अकेलेपन की गर्त में धकेल दिया |फिर भी अंत में संन्यास आश्रम को अपनाकर उन्होंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ निर्णय लिया | रचना पढ़ते हुए सब जीवंत लगा | आपके लेखन के इस रंग को नमन | संवेदनाओं से भरा ऐसा सृजन हर कोई नहीं कर सकता | हार्दिक शुभकामनाएं|

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  23. हमेशा की तरह बहुत ही गूढ़ व्याख्यात्मक प्रशंसा को हिया से लगा लिया है सखी !और अभिभूत हूं, सादर नमन एवम सादर शुभकामनाएं..

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  24. शांतनु जी आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं, सादर नमन ।

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  25. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय आलोक सिन्हा जी, आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन है ।

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  26. आंसू निकाल देने वाली कविता रची है जिज्ञासा जी आपने । जितनी भी सराहना की जाए इसकी, कम ही रहेगी ।

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  27. ब्लॉग पर निरंतर आपके स्नेह और प्रतिक्रिया की आभारी हूं, सादर नमन ।

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  28. जो शादी नहीं करते उनकी सच्चाई को कितनी ख़ूबसूरती से व्यक्त किया आपने ....वाह!

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