अविरल
बहती हुई कल कल
अविचल, निश्चल
नदी के तट पर मैं अकेली
अलबेली
ढूंढती हूं
सुकूं
कंकड़ फेकती हूं
चक्षुओं को फाड़कर देखती हूं
फटता हुआ नदी का गर्भ
मेरा सन्दर्भ
दिखता है मुझे
इससे पहले मुझे कुछ और सूझे
मैं फटी हुई धारा के साथ
पार समुंदर सात
बह जाती हूं
बहता हुआ पाती हूं
उभयचरों का झुण्ड
गहरे कुण्ड
से निकल निकलमेरे साथ बह चले हैं
कुछ मेरी बाहों में चिपके,कुछ मिल रहे गले हैं
इनके लिए मैं अनोखी हूं
लगता है जैसे इन्हें पहले भी कहीं देखी हूं
सोचती हूं, इन्हीं के साथ रह जाऊं
यहीं सागर की तलहटी में एक नई दुनिया बनाऊं
घोंघों के अन्दर छुप जाऊं
नीले बैंगनी पौधों से बतियाऊं
खेलूं रंगबिरंगी मछलियों के संग
इनके रंग
अपने लगा लूं
अपना रूप छुपा लूं
छुपाए रहूं तब तक
जब तक
ये जलसागर
मेरी गागर
में न समा जाय, जो मैने नदी के किनारे
इसी सहारे
से रखी
है, कि मेरी अभिन्न सखी
मुझ जैसे मनुष्यों के अपमानों को सहती
और निरंतर बहती
कंकड़ों पत्थरों, चट्टानों,
कटानों
को झेलती
कराहती, ढकेलती
दूषित
प्रदूषित
मार्गो से होती हुई
अपने को धोती हुई
स्वच्छ जल लेकर आएगी
और मेरी गागर ऊपर तक भर जाएगी..
**जिज्ञासा सिंह**
ज्यों बहती है नदी उसी तरह खुद को भी बहने दो
जवाब देंहटाएंकष्टों को झेलते हुए नदी कि तरह ही सागर में सिमटने दो ..
भावों को नदी जैसा विस्तार दिया है ...
आपकी प्रशंसा सदैव खुशी से भर देती है, और नव सृजन की प्रेरणा देती है,आपको मेरा हार्दिक नमन ।
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-04-2021) को
"जूही की कली, मिश्री की डली" (चर्चा अंक- 4024) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय मीना जी, नमस्कार !
हटाएंमेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
नदी के तट पर मैं अकेली
जवाब देंहटाएंअलबेली
ढूंढती हूं
सुकूं
कंकड़ फेकती हूं
चक्षुओं को फाड़कर देखती हूं
फटता हुआ नदी का गर्भ---नदी पर लिखने के लिए उसके साथ बहना होता है, उसके अहसास तभी हममें गहरे उतरते हैं, बहुत अच्छी गहरी रचना।
आपकी सराहना भरी प्रशंसा के लिए हार्दिक आभारी हूं,सादर नमन ।
हटाएंबड़ी सारगर्भित रचना है यह आपकी जिज्ञासा जी । इसे तो इसमें डूबकर ही ठीक से अनुभूत किया जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी,आपका बहुत बहुत आभार नमन आपको ।
हटाएंमेरी अभिन्न सखी
जवाब देंहटाएंमुझ जैसे मनुष्यों के अपमानों को सहती
और निरंतर बहती
कंकड़ों पत्थरों, चट्टानों,
कटानों
को झेलती
कराहती, ढकेलती
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी।
आपका बहुत आभार एवम नमन आदरणीय अनुराधा जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, आपकी सराहना भरी प्रशंसा को सादर नमन है ।
हटाएंआपकी सराहना भरी प्रशंसा को सादर नमन है आदरणीय शास्त्री जी ।
हटाएंबढ़िया और सार्थक सृजन। सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार वीरेंद्र जी, आपकी प्रशंसा को नमन है ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
प्रिय श्वेता जी, नमस्कार!मेरी
हटाएंरचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन,हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।
हाँ ! कुछ ऐसी ही अभिलाषा को उत्तप्त कर दिया है आपने । साथ ही प्रतीक्षा में कि कभी तो भर जाये गागर । अति सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंअमृता जी, आपका बहुत बहुत आभार, आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन है ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जिज्ञासा जी | नदी की पीड़ा एक नारी मन नहीं समझेगा तो और कौन समझेगा ! आखिर नदी और नारी का अस्तित्व एक सा ही तो है | गहरे भावों से गुंथी रचना के लिए आपको ढेरों बधाई और शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी, आपका बहुत बहुत आभार ,सराहना भरी प्रशंसा के लिए आपको मेरा नमन ।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना जिज्ञासा जी | इसके लिए आपको शत शत बधाई भी और शुभ कामनाएं भी |
जवाब देंहटाएंआदरणीय आलोक सिन्हा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को सादर नमन करती हूं ।
हटाएंसारगर्भित सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
प्रिय सधु जी, आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन करती हूं ।
हटाएंबहुत बहुत बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी सराहना भरी प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हैं,हार्दिक आभार एवम शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंगागर जरूर भरेगी सुन्दर आशावादिता से परिपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं।
हटाएंबहुत सुंदर आशावादी रचना...🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शरद जी,आपकी मनोबल बढ़ाती प्रशंसा को हार्दिक नमन ।
हटाएंदूषित
जवाब देंहटाएंप्रदूषित
मार्गो से होती हुई
अपने को धोती हुई
स्वच्छ जल लेकर आएगी
और मेरी गागर ऊपर तक भर जाएगी..
बस यही आशा जीवन को पार लगा रही है
बहुत सुन्दर सृजन
वाह!!!
सुधा जी,मनोबल बढ़ाती आपकी प्रशंसा नव सृजन के लिए प्रेरणा है,सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंप्रदूषित
जवाब देंहटाएंमार्गो से होती हुई
अपने को धोती हुई
स्वच्छ जल लेकर आएगी
और मेरी गागर ऊपर तक भर जाएगी..
प्रिय जिज्ञासा पूरी रचना ही बहुत बेहतरीन है परंतु कविता का यह अंश तो इस कविता की जान है। हम सब नदी की तरह ही प्रदूषित मार्गों से गुजरते और अपने आपको निर्मल रखने की कोशिश में जी जान से जुटे हुए....
आपका सृजन नई ऊँचाइयों को छू रहा है। बधाई।
आपकी यह प्रतिक्रिया मेरे लिए बेशकीमती है,आदरणीय मीना जी,आप जैसी विदुषी से यह प्रशंसा सुनकर अभिभूत हूं,आपका स्नेह नव सृजन के लिए प्रेरणा होगा,इसी आशा में सादर जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंवाह दो पोस्ट डाल दी पता नहीं लगा यू ही देखने आ गई थी, कोई नई पोस्ट तो नही है, दोनों ही बेहद खूबसूरत है , बहुत सुंदर लिखा है ,हार्दिक शुभकामनाएं, शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबस दीदी आपका स्नेह है,और आप आ गई,मुझे भी आप को पढ़कर बहुत अपार खुशी होती है,आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग को फॉलो कर लें तो आपको सूचना मिलती रहेगी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हु,सादर जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंमै चाहती हूँ नई पोस्ट की जानकारी मुझ तक पहुंचे, पहले टैब कंप्यूटर use करती थी पोस्ट की खबर मिल जाती थी, मोबाइल पर ऐसा नहीं होता है, बच्चों से पता लगाती हूँ, सीखकर ब्लॉगर साथियों को जोड़ती हूँ, यही कारण है किसी के आने के बाद ही पोस्ट की जानकारी मिलती हैं, मुझे शर्मिंदगी महसूस होती हैं, मै समय से नही पहुँच नही पाती, सब आ जाते है , शुक्रिया ,जल्दी ही इस समस्या को दूर करने की कोशिश करती हूँ मैं, 🙏🙏🌷🌹
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी,फोन में भी ऑप्शन होता है,मैं तो जब कहीं बाहर जाती हूं तो फोन पे ही वेब दर्शन वाले ऑप्शन से अपडेट रहती हूं, हां कुछ लिखना हो तो टैब या लैपटॉप ज्यादा सही रहता है,आपके फोन में भी वेब दर्शन का ऑप्शन जरूर होगा । कृपया चेक करके देखिएगा आपको आराम हो जाएगा । आपको सादर नमन,शुभरात्रि ।जिज्ञासा ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया जिज्ञासा, कोशिश करती हूँ
जवाब देंहटाएं🙏🙏🌹🌹☺️☺️
जवाब देंहटाएंकंकड़ों पत्थरों, चट्टानों,
जवाब देंहटाएंकटानों
को झेलती
कराहती, ढकेलती
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी :)