लइया है,चूड़ा है,चना है,
अभी अभी भूना है
गरमा गरम है
ऊपर से करारा अंदर से नरम है
जौ चने का सत्तू है ।
आवाज़ लगाता,गली में बेचता हुआ जा रहा पुत्तू है ।।
उसकी मधुर आवाज
आज
कई दिनों बाद सुनी
रागिनी
सी बज गई
अपने मन ही मन मैं खुश हुई
दौड़कर उसे देखा
भुने चने का स्वाद चखा
अनजाने अंदेशे से डरी हुई मैं
अंदर तक सिहरी हुई मैं
कुछ देर ठहर गई
आंखें भी भर गई
आज के दौर को सोचकर
कि कल अगर
बूढ़ा जर्जर पुत्तू
सुबह शाम बेंचता हुआ सत्तू
इधर से नही गुजरा
भगवान को हो गया प्यारा
तो फिर ये आवाज़ कभी नहीं आएगी
ये गलियां कितनी वीरान हो जाएंगी
सिसक उठेंगी हवाएं
ये फिजाएं
जिनमें वर्षो से गूंजती है,एक सुरीली सरगम
लइया है,चूड़ा है,चना है गरम गरम ।।
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सिवम जी, आपकी प्रशंसा को नमन है।
हटाएंभावभीनी, हृदयस्पर्शी, मानवता से ओतप्रोत कविता रची है माननीया जिज्ञासा जी आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी, आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाती है,सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी संवेदना का सरोकार बिल्कुल सामयिक और सार्थक है।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार विश्वमोहन जी, आपको मेरा सादर अभिवादन ।
हटाएंआज वक़्त ऐसा है कि ज़िंदा इंसान के लिए मरने की बात सोची जा रही है ।यूँ तो मरना सबने है लेकिन अभी तो जैसे जीवन का भरोसा ही खत्म हो गया ।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना ।
जी, सही कहा दीदी आपने, अभी चार दिन पहले ही इस तरह का दो हादसा हो गया,मन बड़ा ही द्रवित हो गया ।जो कविता के भाव बन गए।आपको मेरा सादर अभिवादन।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-4-21) को "भगवान महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं"'(चर्चा अंक-4049) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
प्रिय कामिनी जी,नमस्कार !
हटाएंमेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
हृदयस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार मीना जी, आपकी विशेष प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।
जवाब देंहटाएंये गलियां कितनी वीरान हो जाएंगी
जवाब देंहटाएंसिसक उठेंगी हवाएं
ये फिजाएं
जिनमें वर्षो से गूंजती है,एक सुरीली सरगम
लइया है,चूड़ा है,चना है गरम गरम ।।----वाह भावनाओं से परिपूर्ण रचना...समाज को हम जैसे देखते हैं वह वैसा ही नजर आता है। अच्छी रचना है जिज्ञासा जी।
बहुत बहुत आभार संदीप जी,प्रशंसा रचना के उद्देश्य को परिपूर्ण कर गई,आखिर समाज हर वर्ग के लोगों और उनके योगदान से बनता है,है मनुष्य का समाज में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है,आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंसहज रूप से संवेदना संसार में खींचती हुई अभिव्यक्ति प्रशंसनीय है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अमृता जी,आपकी सुंदर टिप्पणी मन को छू गई ,सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंगहन संवेदना से उपजी सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज के इस कोरोना महामारी के दौर में अब ऐसी कई आवाजें सुनने को नहीं मिल रही हैं, दुबके हैं सब अपने घरोंदों में, जाने कैसे करके इनकी रोजी-रोटी चल रही होगी, सोच के मन दुःखित होता है ........
कविता जी आपकी संवेदना से परिपूर्ण प्रतिक्रिया को दिल से नमन करती हूँ।
जवाब देंहटाएंकितनी दहशत में जी रहे हैं हम आज और हर पल बस दुआएँ ही कर रहे...सर्वे भवन्तु सुखिन:
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संदेश भरी प्रतिक्रिया,उषा जी आपका बहुत आभार ।
हटाएंआदरणीया मैम, बहुत ही संवेदनशील और भावपूर्ण रचना।हमारे प्रियजनों के साथ ये फेरीवाले, सब्जीवाले, हमारी घर की कामवाली, यह सभी हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा जिनसे जाने-अनजाने लगाव हो जाता है और हमारे व हमारे परिवार के स्वास्थ्य के साथ इनके भी स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता होती है। हार्दिक आभार इस सुंदर रचना के लिए व आप सबों को प्रणाम।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सत्य लिखा प्रिय अनंता, मैं तो इन सारे लोगो को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानती हूं,इनके बिना तो हमारा जीवन चल ही नहीं सकता,तुम्हारी सुंदर अभिव्यक्ति के लिए तुम्हें ढेर सा प्यार भरा आशीष ।
जवाब देंहटाएंबूढ़ा जर्जर पुत्तू
जवाब देंहटाएंसुबह शाम बेंचता हुआ सत्तू
इधर से नही गुजरा
भगवान को हो गया प्यारा
तो फिर ये आवाज़ कभी नहीं आएगी
कोरोना महामारी ने ऐसी जाने कितनी आवाजों को खामोश कर दिया।सबके मन में एक ही डर बसा हुआ है कि क्या यह गलियाँ जब फिर से गुलजार होंगी तो कितनी जानी पहचानी आवाजें मौन हो चुकी होंगी। मर्मस्पर्शी सृजन।
बहुत आभार आदरणीया अनुराधा जी,आपकी विशेष टिप्पणी को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी, आशंकाओं और असुरक्षा के माहौल में आज मन वो भी सोचने लगता है जो नहीं सोचना चाहिए! लेकिन भयावह संक्रमण काल में हम अपने दिल के करीब लोगों को खोने की बात सहजता से स्वीकारने लगे हैं! कुछ आवाजें और इंसान अपने ना होकर भी मन में बसे होते हैं और हम उन्हें खोने से डरते हैं! बहुत मार्मिक शब्द चित्र है आपका! इस पर कहने के लिए मेरे पास मानो कुछ बचा ही नहीं! सखी अनुराधा जी और अनन्ता सिन्हा ने वो सब कह दिया जो मैं कहना चाहती थी! रचना में आपकी सहृदयता और संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं! बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको सराहनीय लेखन के लिए🙏 🌹❤❤🌹
जवाब देंहटाएंरेणु जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं। सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
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