अपना घर, अपनी दुनियाँ

काश गगन पर घर होता एक मेरा
मैं रहती और रहता कुनबा मेरा ।।

मेरे कुनबे में कुछ रंग बिरंगे पक्षी होते
बुलबुल गौरैया संग मोर मोरनी नचते
एक बनाती नीड़ चाँद तारों से छुपकर,
तोता मैना पपिहा करते वहीं बसेरा ।।
काश गगन .....

मै और मेरी नन्हीं चिड़ियाँ भोर में उठते
दूर गगन से धरती की आभा को तकते
कोमल मन की चिड़ियाँ भावुक सी हो जातीं,
आता याद उन्हें जब अपना रैन बसेरा ।।
काश गगन.....

मैं उनको समझाती ये जो अपना घर है
फैला हुआ अपार और विस्तृत अंबर है
इससे सुंदर नहीं कहीं कुछ प्यारी सखियों,
चंदा का ये देश और तारों का डेरा ।।
काश गगन.....

मीठे फलों की याद उन्हें भूले न भूले
पेड़ों और टहनियों के ऊपर वो झूले
भीनी भीनी महक धरा के वन उपवन की,
अंखियों में लातीं अँसुअन का रह रह फेरा ।।
काश गगन.....

समझाती मैं बहुत, बहुत दीं उनको खुशियाँ 
भूली नहीं वो घर अपना, न अपनी दुनियां
एक दिन सब ने ठान लिया जाना है उनको,
छोड़ गईं वो मुझे है सूना जीवन मेरा ।।
काश गगन.....

बैठी आसमान के ऊपर, बिल्कुल पड़ी अकेली
अपने घर को चली गईं सखियाँ अलबेली
चाँद सितारों से कितनी मैं बात करूं अब,
मुझमें रंग भरे न कोई अब तो यहां चितेरा ।।
काश गगन.....

**जिज्ञासा सिंह** 

40 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कल्पना है आपकी! बढ़िया सृजन हेतु आपको बधाई।

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    1. वीरेन्द्र जी,आपका बहुत बहुत आभार,आपकी प्रशंसा को नमन है ।

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  2. मन को छू गई आपकी यह कविता जिज्ञासा जी ।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन है ।

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  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-04-2021) को
    " वोल्गा से गंगा" (चर्चा अंक- 4031)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. आदरणीय मीना जी, नमस्कार !
      मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार, आशा है सुंदर सूत्रों से सजा होगा आगामी अंक,आपको ढेरों शुभकामनाएं,सादर जिज्ञासा सिंह ।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर मौलिक कल्पना |सराहनीय सृजन |

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय आलोक सिन्हा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  6. आप तो भई धरती पर ही डेरा बनाये रखो
    चिड़िये तोते सब पेड़ों पर झूल लेंगे ,अकेले तो अम्बर पर भी मन न लगेगा और फिर यहाँ ब्लॉगिंग कौन करेगा भला , वहाँ न चलने वाले लैपटॉप और स्मार्टफोन । यूँ सपने देखने में कोई बुराई नहीं । तान लीजिए अपना वितान ।
    लिखा बढ़िया है ।

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    1. आदरणीय दीदी इस कविता में मैं तो चिड़िया हूं, जो सपनों में उड़ तो जाती है,पर कुछ भी हो जाय वो अपने घर जरूर लौटती हैं, हां कुछ दिन तो कही भी रहा जा सकता है, और मन कहां स्थिर रहने वाला है,वो चलायमान है, जहां चाहे ले जाय । लौट के तो आना ही है,आपकी सुंदर,विशेष टिप्पणी का हार्दिक नमन करती हूं ।

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    2. आपने कहीं इंगित ही नहीं किया कि आप चिड़िया बन उड़ जाना चाहती हैं , हाँ , कुनबे में रंग बिरंगे पक्षी की कल्पना की थी , खैर , हमें तो अपनी ब्लॉगिंग की चिंता , आप जैसी हैं चिड़िया जैसी ही हैं , मन को कहीं भी उड़ा लीजिए ,डेरा तो यहीं रहेगा ।

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    3. ब्लॉग पर आपके सुंदर और सटीक मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है आपका बहुत बहुत आभार 🙏🙏🌹।

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  7. क्यों ना वैसा ही कुनबा यहीं बना धरती पर ही गगन को उतार लाया जाए !

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    1. गगन जी,आपका सुझाव तो अच्छा है,परंतु यहां बड़ी भेड़चाल है,सुकून के लिए तो आपको किसी और दुनिया में जाना ही होगा । कहने के लिए तो कुछ भी किया जा सकता है, पर शायद इस जिन्दगी के लिए एक जीवन नाकाफी है । आपका बहुत बहुत आभार एवम नमन ।

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  8. वाह! आत्मीकरण शैली में सुंदर तराना।

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    1. विश्वमोहन जी आपकी सुंदर टिप्पणी को हार्दिक नमन करती हूं । आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  9. मैं उनको समझाती ये जो अपना घर है
    फैला हुआ अपार और विस्तृत अंबर है
    इससे सुंदर नहीं कहीं कुछ प्यारी सखियों,
    चंदा का ये देश और तारों का डेरा ।।---बहुत खूबसूरत शब्द हैं...

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    1. आपकी सुंदर प्रशंसा को हार्दिक नमन है संदीप जी, आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  10. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  11. प्रिय श्वेता जी,नमस्कार !
    पांच लिंकों का आनंद के आगामी अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार,मेरी तरफ से आपको ढेरों शुभकामनाएं,सादर जिज्ञासा सिंह ।

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  12. वाह!खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

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    1. बहुत बहुत आभार शुभा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है ।

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  13. उत्तर
    1. आपका हृदय से बहुत बहुत आभार एवम अभिनंदन ,प्रिय सखी आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।

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  14. उत्तर
    1. आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत एवम वंदन करती हूं, आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  15. काश... कहकर जो कामना की थी फिर उसी कामना ने दुख भी दिया, इतना संदेश तो मिला इस कविता से कि इच्छा पूरी हो जाए तब भी चैन नहीं

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  16. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया रचना का सही अर्थ समझा गई, आपका हार्दिक आभार एवम नमन ।

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  17. ज्योत्सना की ,आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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    1. बहुत बहुत आभार ओंकार जी, आपकी प्रशंसा को नमन है ।

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  19. उत्तर
    1. अनुराधा जी आपकी सुन्दर प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  20. वाह! कल्पना में कवि हर कल्पना साकार कर लेता है और भोग लेता है उससे जुड़ें सुख दुख।
    बहुत सुंदर अंत तक जाते जाते भावुक करता सृजन
    सुंदर सुघड़।
    सस्नेह।

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  21. कविता के सार्थक मर्म तक पहुंचने के लिए आपका बहुत आभार कुसुम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  22. बहुत ही सुंदर कल्पना जिज्ञासा, संगीता जी की बातें भी जम गयी, ढेरों बधाई हो

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  23. बहुत बहुत आभार आपका, आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं
    सादर ।

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  24. बहुत ही सुंदर कल्पना जिज्ञासा जी...ढेरों बधाई ...आप बहुत सुन्दर लिखती हैं !

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