वो बहक गए
महक गए
किसी और के आँगन में
मेरे उपवन में
जरूर चुभे होंगे
गड़े होंगे
कैक्टस या गुलाबी काँटे
हमने छांटे
भी नहीं थे उन कंटीली
नुकीली
झाड़ियों के पर
जो चढ़ रहीं थीं बार बार छज्जों पर
शायद
हद
पार कर गईं वो
छज्जे से होते हुए आँगन तक उतर गईं वो
तभी तो गए उलझ
अब सुलझ
भी जाएंगे
तो कैसे मिटायेगें
उन चुभे हुए कांटों के दाग
जो कलियों के अनुराग
की वज़ह से
जिस्म की सतह से
चिपक कर हैं रह रहे
और दर्द आँसू बन कर बह रहे
बड़ा मुश्किल है इंसानी सब्र
जरा सा बेसब्र
होते ही
मान खोते ही
रास्ते खोज लेते हैं निमित्त
बदल जाती है परिस्थिति
और मार्ग दिखते हैं अवरुद्ध
विरुद्ध
दिखते हैं वही अपने
जिनके टूटते हैं सजे सजाए सपने
फिर जाने क्यूं ?
इंसान तू
ऐसे दुर्गम मार्गों पे चलता है
और बार बार फिसलता है
गिरकर टूटता है
अपने को ही,अपने हाथों से लूटता है.....
**जिज्ञासा सिंह**
आज ये तंज़ न जाने
जवाब देंहटाएंकिस पर कसा गया
महकता हुआ न जाने
कौन क्यों बहक गया
तुम्हारे उपवन में खिला
नागफनी का काँटा न जाने
किसे और कब धँस गया .....
खैर मज़ाक एक तरफ ....
ये तो इंसानी फितरत है
सबसे ज्यादा चोट वो
अपनों को ही पहुँचाता है
और जब दुखी हो कोई
फेर ले मुँह तो ,उसी पर
इल्ज़ाम भी लगाता है ।
खैर आज जिज्ञासा ने बढ़ा दी है मेरी जिज्ञासा कि आज हवा रूखी क्यों है , किस की हिमाकत से जिज्ञासा दुखी क्यों है ?
मन की भावनाओं को जस का तस रख दिया है । भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
आदरणीय दीदी,सबसे पहले आपकी सुंदर और आत्मीय प्रशंसा का कोटि कोटि आभार,आपकी आशु पंक्तियां तो दिल को छू गई,सच कहूं तो मैं घुमक्कड़ जिज्ञासा, इधर उधर ताक झांक करती हूं,जो दिखता है उसी को कड़ियों में पिरो देती हूं,कभी कभी जीवन में कुछ बातें आहत करती हैं,जो शब्दो में, कल्पनाओं में झलक पड़ती हैं,वही इस कविता में भी परिलक्षित है,कविता को मान देने के लिए आपका सादर अभिनंदन ।दीदी मैने गीत ब्लॉग पर गीत डाला है,आशा है आप भ्रमण जरूर करेंगी, और ग्रामीण परिदृश्य पर अपना दृष्टिकोण जरूर रखेंगी,चाहे दो शब्दों में,इसी आशा में जिज्ञासा । सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंइंसान तू
जवाब देंहटाएंऐसे दुर्गम मार्गों पे चलता है
और बार बार फिसलता है
गिरकर टूटता है
अपने को ही,अपने हाथों से लूटता है...
सच कहा है आपने। मनुष्य की पशुता ही मनुष्य का दुश्मन है। संबंधों की आधारशिला को कुचलने में हमारी पाशविकता ही हम पर हावी रहती है, जिस पर विजय पाना शायद मुश्किल है।
साधुवाद आदरणीया जिज्ञासा जी।
पुरुषोत्तम जी,आपकी समीक्षात्मक प्रशंसा से कविता का मान बढ़ गया, आप जैसे विज्ञजनों की दृष्टि से कुछ भी नही बचता ,आपकी सुंदर प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन ।सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-04-2021) को "आदमी के डसे का नही मन्त्र है" (चर्चा अंक-4033) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सत्य कहूँ तो हम चर्चाकार भी बहुत उदार होते हैं। उनकी पोस्ट का लिंक भी चर्चा में ले लेते हैं, जो कभी चर्चामंच पर झाँकने भी नहीं आते हैं। कमेंट करना तो बहुत दूर की बात है उनके लिए। लेकिन फिर भी उनके लिए तो धन्यवाद बनता ही है निस्वार्थभाव से चर्चा मंच पर टिप्पी करते हैं।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आदरणीय शास्त्री जी,सादर नमस्कार ।
हटाएंआपकी हर बात विचार करने योग्य है, मेरे ब्लॉग पर आपका सदैव स्वागत करते हुए अपनी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका कोटि कोटि आभार,आपके श्रमसाध्य कार्यहेतु बहुत बहुत शुभकामनाएं ,जिज्ञासा सिंह ।
आपकी लेखनी तो मंजती ही जा रही है आदरणीया जिज्ञासा जी। काव्य-रचना के भावपक्ष या सारतत्व पर कोई टिप्पणी न करते हुए मैं यही कहूंगा कि आपकी सृजनशीलता अपनी सीमाओं का निरंतर विस्तार कर रही है। काव्य के नये-नये आकाश, नये-नये क्षितिज प्रतीक्षा कर रहे हैं आपके स्पर्श की।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी आपकी प्रशंसा एवम प्रोत्साहित करती सुंदर टिप्पणी से अभिभूत हूं,ये आप जैसे विज्ञ जनों का स्नेह है, कि नव सृजन साकार हो रहा है,आपका हृदय तल से निरंतर आभार व्यक्त करती हूं सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय दिव्या जी,"पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी रचना को चयनित करने के लिए आपका असंख्य आभार एवम अभिनन्दन । आपके श्रमसाध्य कार्य को नई ऊर्जा मिले,इसी स्नेह निवेदन के साथ साथ आपको ढेरों शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंइंसान तू
जवाब देंहटाएंऐसे दुर्गम मार्गों पे चलता है
और बार बार फिसलता है
गिरकर टूटता है
अपने को ही,अपने हाथों से लूटता है....
इंसानी फिदरत को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने, जिज्ञासा दी।
आपका बहुत बहुत आभार प्रिय ज्योति जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं, ब्लॉग पर आपका सदैव इंतजार रहता है ।सादर नमन ।
हटाएंजिज्ञासा जी जीवन है ,राह दुर्गम सही,पर हौसला
जवाब देंहटाएंहो तो चट्टानों में से भी राहे निकल आती है,भावों को बड़ी खूबी से व्यक्त किया है आपने,आपकी लेखनी की जितनी प्रसंशा की जाय कम है।
आदरणीय दीदी, ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार एवम अभिनंदन ।सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंवाह,क्या खूब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंशिवम जी आपकी प्रशंसा का सादर नमन करती हूं,सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंअभिलाषा जी, आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं, ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य प्रशंसा का स्वागत करती हूं, सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंहृदयस्पर्शी भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं, ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य प्रशंसा का सदैव स्वागत है ,आदर सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंये फ़लसफ़ा है, फूस सूखी
जवाब देंहटाएंतो आग लहकेंगे
हिय में टिसती हो वेदना तो
मन ही मन में दहकेंगे
अंगान पार जा महकी कली तो
भौरें यूँ ही बहकेंगे।
आपकी सुंदर कविता का आभार!!!
इतनी सुंदर पंक्तियां, मैने कई बार पढ़ीं और गुनी धुनी फिर समझ आईं । इन सुंदर आशु पंक्तियों और आपकी प्रशंसा का हृदय तल से आभार व्यक्त करती हूं ।
हटाएंसुन्दर, सरस भावपूर्ण रचना जिज्ञासा जी,
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई !
ज्योत्सना जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन करती हूं,सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंऐसे दुर्गम मार्गों पे चलता है
जवाब देंहटाएंऔर बार बार फिसलता है
गिरकर टूटता है
अपने को ही,अपने हाथों से लूटता है.....
बस,यही तो इंसानी फितरत है,बेहतरीन भावाभिव्यक्ति जिज्ञासा जी
बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी,आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूं, सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंसही कहा आपने। इंसान अपनी बेसब्री और निराशा में क्या से क्या कर बैठता है। और सच यह है कि आज के दौर में तथाकथित 'अपने' किसी को डूबता हुआ देख कर उसे बचाने और संभालने की बजाय उसकी विपरीत स्थितियों में अपना मनोरंजन देखते हैं।
जवाब देंहटाएंयशवंत जी आपका बहुत बहुत आभार, ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का सदैव स्वागत है,सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंभावों की सुंदर अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी। एक अलग मिज़ाज़ की रचना है आपकी। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं सादर शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंगरल घूँट पीने की विवशता में ही सब चुपचाप है सहता । मर्मस्पर्शी सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंअमृता की आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं। सस्नेह सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंबहुत गहरी बात कही आपने हम किसी को अंगुली पकड़ाते है तो वो पहुंचा पकड़ कर अनाधिकृत प्रवेश कर जीवन में अजीब सी स्थिति उत्पन्न करते हैं।
जवाब देंहटाएंभाषा शैली मोह गई।
अभिनव सृजन।
सही कहा आपने । आपकी समीक्षात्मक प्रशंसा के लिए दिल से आभारी हूं,सादर नमन एवम हार्दिक शुभकामनाएं ।
हटाएंफिर जाने क्यूं ?
जवाब देंहटाएंइंसान तू
ऐसे दुर्गम मार्गों पे चलता है
और बार बार फिसलता है
गिरकर टूटता है
अपने को ही,अपने हाथों से लूटता है.....
बहुत सुंदर भाव, बेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति।
अनुराधा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का स्वागत और अभिनंदन करती हूं,सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय ,आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कृति,
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार एवम नमन । सादर शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंइंसानी फितरत को कविता में व्यक्त करना सहज नहीं है
जवाब देंहटाएंआपने यह कर दिया
अदभुत सृजन
बधाई
आपकी इस अनुपम टिप्पणी से अभिभूत हूं,आपका कोटि कोटि आभार । सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना, बहुत ही सुंदर ढंग से इंसानी फ़ितरत को दर्शाया गया है, बधाई हो जिज्ञासा
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह और प्रोत्साहित करती प्रशंसा की हृदय तल से आभारी हूं,सादर नमन आदरणीय दीदी ।
जवाब देंहटाएं