सुनो जरा मंत्री औ नेता, अफसर और सरकार सुनो ।
अन्यायों की लगी हुई है, लंबी बहुत कतार सुनो ।।
खत्म हो गए कितने जंगल, कितनी नदियाँ सूख गईं
पर्वत और पठारों को,कितनी मशीनें लील गईं
पशु पक्षी के हाड़, माँस का कैसा ये व्यापार सुनो ।
अन्यायों की लगी हुई है,लंबी बहुत कतार सुनो ।।
गिद्ध बन गई मानव जाति, गिद्धों को ही गीध गई
खग औ विहग लुप्त हुए जाते, ताल तलैया सूख गई
भाग रहे वन के प्राणी सब,ऐसा हुआ व्यवहार सुनो ।
अन्यायों की लगी हुई है,लंबी बहुत कतार सुनो ।।
भौतिक लोलुप्सा में फँसकर, खत्म संस्कृति होती है
नित नव संयंत्रों से धरती, छलनी होकर रोती है
ऐसी कैसी नई सभ्यता,कैसा ये अधिकार सुनो ।
अन्यायों की लगी हुई है,लंबी बहुत कतार सुनो ।।
तुमको बैठाया सिंहासन, तुम राजा हम प्रजा तुम्हारी
जीव जगत के हर एक प्राणी, देख रहे हैं राह तुम्हारी
तुमको मिली मलाई,मक्खन, हमको बस धिक्कार सुनो ।
अन्यायों की लगी हुई है,लंबी बहुत कतार सुनो ।।
यही याचना,यही प्रार्थना,वक्त पुराना लौटा दो
हो विकास पर पर्यावरण का, बिलकुल बाल न बांका हो
जीवन यापन का हमको भी,दो थोड़ा अधिकार सुनो ।
अन्यायों की लगी हुई है,लंबी बहुत कतार सुनो ।।
**जिज्ञासा सिंह**
मुझे प्रथम टिप्पणी का सम्मान प्राप्त हुआ है जिज्ञासा जी। प्रतिक्रिया केवल एक शब्द में दे रहा हूँ - उत्कृष्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी,आपकी सुंदर टिप्पणी को हार्दिक नमन।
हटाएंवाह👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी ।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंज्योति जी,आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंप्रश्न निश्चित ही मुँह बाये खड़े हैं...
जवाब देंहटाएंउत्तर प्रतीक्षित हैं।
प्रवीण जी,आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (18-06-2021) को "बहारों के चार पल'" (चर्चा अंक- 4099) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय मीना जी नमस्कार !
हटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच पे चयनित करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन,आपको बहुत बहुत बधाई, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
वाह जिज्ञासा जी, क्या खूब लिखा है कि-
जवाब देंहटाएंतुमको बैठाया सिंहासन, तुम राजा हम प्रजा तुम्हारी
जीव जगत के हर एक प्राणी, देख रहे हैं राह तुम्हारी
तुमको मिली मलाई,मक्खन, हमको बस धिक्कार सुनो ।
अन्यायों की लगी हुई है,लंबी बहुत कतार सुनो ।।---अत्यंत सुंदर पंक्तियां
आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाती है अलकनंदा जी,आभार एवम नमन ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
क्षमा सहित,
हटाएंकृपया आमंत्रण १८ जून पढ़ा जाय।
सादर।
श्वेता जी, नमस्कार !
हटाएं"पांच लिंकों का आनंद"पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंओंकार जी,आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंबहुत ही उम्दा ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय । आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंबिगुल बजते रहना चाहिए
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने,आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंवाह!बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंतुमको लगता है कि नेता जी के कानों पर जूं भी रेंगेगी ?
जवाब देंहटाएंवैसे सुने या न सुने हमें अपनी बात जरूर कहनी चाहिए और तुमने बेहतरीन तरीके से रखी है ।
बहुत बढ़िया ।
जी,सही कहा आपने, आपकी हर सीख बहुमूल्य है,आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
हटाएंवाह! बेहतरीन रचना जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहनीय प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन।
जवाब देंहटाएंतुमको बैठाया सिंहासन, तुम राजा हम प्रजा तुम्हारी
जवाब देंहटाएंजीव जगत के हर एक प्राणी, देख रहे हैं राह तुम्हारी
तुमको मिली मलाई,मक्खन, हमको बस धिक्कार सुनो ।
अन्यायों की लगी हुई है,लंबी बहुत कतार सुनो ।।
सटीक प्रश्नों के उत्तर मांगती रचना प्रिय जिज्ञासा जी |पर शिखर पर विराजे सत्ताधारियों को ये आवाज सुनती कहाँ हैं | शानदार रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |
अब क्या करें प्रिय सखी,हमारी किसने और कब सुनी, हम और आप हमेशा कहते ही रहे कि शायद उनके कानों तक बात पहुँचे, आपकी बहुत आत्मीय टिप्पणी को दिल से नमन।
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं
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