श्रीकृष्ण से गौरैया की करुण पुकार

अब कहाँ छुपे हो कन्हैया
हे मुरली के बजवैया ।
मैं वन वन तुमको ढूंढूं
दो पंखों की गौरैया ।।

मैं दूरदेश उड़ जाऊँ 
पर तुमको देख न पाऊँ ।
मेरा जीवन आज भंवर में
मेरी डूब रही है नैया ।।

कुछ लोग मेरे हैं दुश्मन 
मेरा रोज उजाड़ें उपवन ।
मेरा नीड़ गिरा धरती पर
मेरी उजड़ गई अंगनैया ।।

प्रभु मेरी विपदा सुन लो
कुछ मेरी पीड़ा हर लो ।
मेरे बाल बृंद सब व्याकुल
मोरी उजड़ी देख नगरिया ।।

मैं खाती सूखी रूखी
थोड़े से प्रेम की भूखी ।
एक विटप की टहनी पे रह लूं
जल पीलूं उड़ के तलैया ।।

सब इतनी अरज मेरी सुन लें
अपने दिल में भी जगह दें ।
छज्जे के किसी कोने में
रह लूंगी बना के मड़ैया ।।

मेरे वृद्ध जटायु नाना
श्रीराम ने लोहा माना ।
सीता के लिए रावण से लड़े
कहलाए वीर लड़ैया ।।

जब समय कभी आएगा
मेरा कर्म भी दिख जाएगा ।
इस जीव जगत की खातिर
सेवा में सदा चिरैया ।।

**जिज्ञासा सिंह**

34 टिप्‍पणियां:

  1. जटायु एक किन्तु रावण अनेक, कान्हा एक लेकिन कंस अनेक !
    इन बहेलियों की नगरी में गौरैया की अरदास पर कौन उसे बचाने आएगा?

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    1. बिल्कुल सच कहा आपने सर, परंतु हम लोगों में से ही कुछ लोग थोड़ा थोड़ा भी पर्यावरण के प्रति जागरूक हो जायँ,तो ज़्यादा नहीं,पर एक दो पक्षी को जीवनदान मिल सकता है,आपको मेरा सादर अभिवादन।

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  2. कविता अच्छी है जिज्ञासा जी। गोपेश जी की बात भी सही है। इसलिए गोरैया की गुहार भगवान सुनें चाहे न सुनें, हमें अवश्य सुननी चाहिए तथा उसके संरक्षण के लिए जो हमसे बन पड़े, करना चाहिए। और ऐसा हमें करना ही है।

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    1. जी,आपका विचार बिल्कुल सत्य है, मैंने गौरैया के लिए हर एक तंत्र से गुहार पर कविताएँ लिखी हैं, मेरी कविता महाभारत काल की एक कहानी से प्रेरित है।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  3. बहुत बहुत सरस सराहनीय रचना |ह्रदय से शुभ कामनाएं |

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    1. आदरणीय सर,आपका बहुत बहुत आभार,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया को सादर नमन।

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    1. बहुत बहुत आभार अनुपमा जी,आपको मेरा सादर नमन।

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
    'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. प्रिय अनीता जी,नमस्कार,
      मेरी रचना को चर्चा अंक में चयन करने के लिए आपका असंख्य आभार,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह

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    1. आदरणीय सर, जय श्री कृष्ण !
      आपकी टिप्पणी का ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है,आपको मेरा नमन।

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  7. जब समय कभी आएगा
    मेरा कर्म भी दिख जाएगा ।
    इस जीव जगत की खातिर
    सेवा में सदा चिरैया ।।

    इस रचना से महाभारत के समय की एक कथा याद आ गयी जब एक चिड़िया के परिवार को कृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में किस प्रकार बचाया था ।

    मनमोहक रचना ।

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  8. जी,सच कहा आपने, कोरोना पीरियड में वो कहानी पढ़ी थी, उसी समय मैंने ये कविता लिखी थी।बहुत प्रेरक प्रसंग है।आपका बहुत आभार आदरणीय दीदी।

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  9. सब इतनी अरज मेरी सुन लें
    अपने दिल में भी जगह दें ।
    छज्जे के किसी कोने में
    रह लूंगी बना के मड़ैया ।।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, जिज्ञासा दी।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

      हटाएं
  10. कुछ लोग मेरे हैं दुश्मन
    मेरा रोज उजाड़ें उपवन ।
    मेरा नीड़ गिरा धरती पर
    मेरी उजड़ गई अंगनैया ।।

    --बहुत ही अच्छी और गहन कविता। खूब बधाई जिज्ञासा जी।

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया कविता का मान बढ़ा गयी,क्योंकि आप तो खुद एक पर्यावरण योद्धा हैं।

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  11. वाह जिज्ञासा जी भगवान से अरदास के माध्यम से चिरैया हम सब को एक गुहार लगा रही है ,जो पालक वही प्रभु आज हम उन्हें बचा पायें उनकी रक्षाकर उन्हें जीवन दे पायें तो समझो राम कृष्ण धरा पर ही हैं।
    बहुत सुंदर सृजन कोमल मन के कोमल भाव।

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    1. कविता का मर्म समझ सटीक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन एवं वंदन।

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  12. मैं दूरदेश उड़ जाऊँ
    पर तुमको देख न पाऊँ ।
    मेरा जीवन आज भंवर में
    मेरी डूब रही है नैया ।।
    हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति जिज्ञासा जी ।

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  13. चिड़ियों का अस्तित्व सचमुच खतरे में हैं। अब ईश्वर ही इंसान को सदबुद्धि दें कि वह इन मासूम प्राणियों को बचाने हेतु प्रयत्न करे।
    सुंदर सटीक रचना।

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने कविता का मान बढ़ा दिया,आपका बहुत बहुत आभार।

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  14. भला किसे पुकारे गौरेया? सुन्दर भाव।

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  15. प्रवीण जी,मैंने पक्षियों के संरक्षण के ऊपर,हर तंत्र से निवेदन पर कई रचनाएँ लिखीं,वो इसलिए कि अगर एक इंसान भी कुछ सोचेगा तो कुछ न कुछ अवश्य अच्छा होगा, आपका बहुत आभार।

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  16. मैं दूरदेश उड़ जाऊँ
    पर तुमको देख न पाऊँ ।
    मेरा जीवन आज भंवर में
    मेरी डूब रही है नैया ।।
    सच में आज गौरेया बहुत कम दिखाईं देती हैं।हम इंसानों को ही उनके लिए प्रयास करना होगा। मेरी खिड़की में उनके खाने-पीने की उचित व्यवस्था होने के कारण दिनभर दाना खाने और पानी पीने आतीं हैं। बेहद हृदयस्पर्शी रचना लिखी आपने जिज्ञासा जी।

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    1. बहुत आभार अनुराधा जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  17. अब कहाँ छुपे हो कन्हैया
    हे मुरली के बजवैया ।
    मैं वन वन तुमको ढूंढूं
    दो पंखों की गौरैया ।।
    माधव से बहुत भावपूर्ण पुकार गौरैया की | आज ये ही पुकार चिड़िया हरेक से कर रही है जब उसका अस्तित्व खतरे में है |मार्मिक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार |

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  18. बहुत आभार रेणु जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  19. मेरा नीड़ गिरा धरती पर
    मेरी उजड़ गई अंगनैया ।।
    .....हृदयस्पर्शी गहन कविता।

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