टूटा तारा



नभ से टूटा तारा
जाने गया कहाँ ?

टूटा तारा
शायद टूटे
मन को भाया ।
अपनों ने दोनों 
को खुद से
तोड़ गिराया ।।

तारे को मन के अंदर 
मिल गया जहाँ 

दोनों हिल मिल
एक दूजे के 
संग में रहते ।
अपनी व्यथा 
घुटन खुद ही से
जब तब कहते ।।

बात न बनती कहने से
कुछ यहाँ वहाँ

टूटे मन औ 
टूटे तारे 
फिर न जुड़ते ।
जुड़ भी जाएँ 
उधड़ उधड़ कर 
गिर गिर पड़ते ।।

बिखरे मिलते इधर उधर 
और  जहाँ तहाँ

**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल

18 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा जिज्ञासा दी कि टूटे तारे आउट टूटा दिल फिर नही जुड़ते।

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  2. टूटा मन कब कहाँ जुड़ा है,
    टूटा तारा कहाँ खिला है?

    सुन्दर पंक्तियाँ।

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  3. इतनी निराशा क्यों कवियित्री जी?
    टूटे मन की तुलना टूटे तारे से मत करो !
    टूटे मन के तार जुड़ भी सकते हैं.

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    1. आम जीवन में कभी न कभी निराशा तो आती ही है,वह किसी के भी साथ हो । आपकी प्रतिक्रिया को सादर नमन।

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-8-21) को "कटु यथार्थ"(चर्चा अंक 4166) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा


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  5. कामिनी जी, नमस्कार!
    मेरी रचना का चयन करने के लिए बहुत शुक्रिया। हार्दिक शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।

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  6. अच्छी कविता रची आपने जिज्ञासा जी। इसीलिए तो कुछ भी टूटना दुख ही देता है, फिर चाहे वह तारे का टूटना ही क्यों न हो।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।

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  7. बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी कविता जिज्ञासा जी ।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार मीना जी,आपको मेरा सादर नमन ।

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    1. बहुत बहुत आभार,अनुराधा जी आपको मेरा सादर नमन ।

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  9. टूटे तारे के माध्यम से दिल की पीड़ा को कहने का प्रयास है आपकी ये लाजवाब रचना ...

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    1. आपका बहुत बहुत आभार दिगम्बर नासवा जी,आपको मेरा सादर नमन ।

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  10. हृदय स्पर्शी सृजन !
    एक टूटे ताले जितना निर्थक टूटा मन बस कुछ समय ही रहता है ,यह एक अद्भुत सत्य है मानव शीध्र ही अपने अवसाद से निकलने की क्षमता रखता है ।
    सृजन हृदय स्पर्शी है।

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  11. बहुत बहुत आभार आपका कुसुम जी,आपकी प्रशंसा ने कविता को सार्थक कर दिया, आपको मेरा सादर नमन ।

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