जाने गया कहाँ ?
टूटा तारा
शायद टूटे
मन को भाया ।
अपनों ने दोनों
को खुद से
तोड़ गिराया ।।
तारे को मन के अंदर
मिल गया जहाँ
दोनों हिल मिल
एक दूजे के
संग में रहते ।
अपनी व्यथा
घुटन खुद ही से
जब तब कहते ।।
बात न बनती कहने से
कुछ यहाँ वहाँ
टूटे मन औ
टूटे तारे
फिर न जुड़ते ।
जुड़ भी जाएँ
उधड़ उधड़ कर
गिर गिर पड़ते ।।
बिखरे मिलते इधर उधर
और जहाँ तहाँ
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
सही कहा जिज्ञासा दी कि टूटे तारे आउट टूटा दिल फिर नही जुड़ते।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी।
हटाएंटूटा मन कब कहाँ जुड़ा है,
जवाब देंहटाएंटूटा तारा कहाँ खिला है?
सुन्दर पंक्तियाँ।
प्रशंसा के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंइतनी निराशा क्यों कवियित्री जी?
जवाब देंहटाएंटूटे मन की तुलना टूटे तारे से मत करो !
टूटे मन के तार जुड़ भी सकते हैं.
आम जीवन में कभी न कभी निराशा तो आती ही है,वह किसी के भी साथ हो । आपकी प्रतिक्रिया को सादर नमन।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-8-21) को "कटु यथार्थ"(चर्चा अंक 4166) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी, नमस्कार!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना का चयन करने के लिए बहुत शुक्रिया। हार्दिक शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
अच्छी कविता रची आपने जिज्ञासा जी। इसीलिए तो कुछ भी टूटना दुख ही देता है, फिर चाहे वह तारे का टूटना ही क्यों न हो।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
हटाएंबहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी कविता जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार मीना जी,आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार,अनुराधा जी आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंटूटे तारे के माध्यम से दिल की पीड़ा को कहने का प्रयास है आपकी ये लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार दिगम्बर नासवा जी,आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंहृदय स्पर्शी सृजन !
जवाब देंहटाएंएक टूटे ताले जितना निर्थक टूटा मन बस कुछ समय ही रहता है ,यह एक अद्भुत सत्य है मानव शीध्र ही अपने अवसाद से निकलने की क्षमता रखता है ।
सृजन हृदय स्पर्शी है।
बहुत बहुत आभार आपका कुसुम जी,आपकी प्रशंसा ने कविता को सार्थक कर दिया, आपको मेरा सादर नमन ।
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