त्रिकालदर्शी आए हैं



जानकर कुछ लोग आए द्वार मेरे
दौड़कर वे कौन हैं ? देखन चली ।
एक कदम और दो कदम, इतना चली
यूं लगा कि, जैसे मैं मीलों चली ।।

पहुंचने में द्वार पर अपने मुझे
करनी पड़ी त्रैलोक्य जैसी यात्रा ।
देखकर आगंतुकों ने यूं कहा
तू नही मेरे दरश की पात्रा ।।

मैं खड़ी हतप्रभ औ विस्मय से भरी
कौन है जो यूं मुझे दुतकारता ।
देखती हूं हर तरफ मैं द्वार के
एक भी मानव नहीं है सूझता ।।

आज ये कैसी महामाया मुझे
मेरे द्वारे पर मुझे ही छल रही ।
कौन है किसने पुकारा था मुझे
कौन सी अद्भुत पहेली पल रही ।।

हैं दिशाएं शांत, चुप सारा जहां हैं
हर तरह का शोर जैसे थम गया ।
फेंक दो तिनका अगर एक भूमि पे
छन्न सी आवाज़ वो भी कर गया ।।

मुड़ रही मैं द्वार से, जैसे सदन को
फिर वही आवाज़ आई ज़ोर से ।
हड़बड़ाकर देखने मैं फिर चली
सोचकर किसने किया है रोर ये ।।

फिर नहीं दिखता मुझे कोई वहाँ पर
हो गई व्याकुल अनिश्चितता बढ़ी ।
कौन मुझसे कर रहा अठखेलियाँ
द्वार मेरे किसकी नजरें हैं गड़ी ।।

है कोई परिचित कोई अपना सगा
कर नहीं पाऊं अभी ये बोध मै ।
शीश मैंने धर दिया थक हारकर
मूंद लीं आंखें धरा की गोद में ।।

स्वप्न में देखा बड़ा सा भाल मैंने
हर तरफ लटकी जटाएं घेरकर
बीच में कुछ लग रहा त्रिनेत्र जैसा
मुझको देखे जा रहा है घूरकर

साथ में एक चन्द्र रेखा सी दिखी
और जटा के बीच से बहती नदी ।
हाथ एक त्रिशूल और दूजे में डमरू
कण्ठ में सर्पों की माला दीखती ।।

वक्ष पे ओढ़े हुए है वो दुशाला
अंग में भस्मी लपेटे सा दिखे ।
पांव में पहने खड़ाऊ काष्ठ का
है नहीं दिखता मगर पूरा मुझे ।।

अलख सी जलने लगी, चारों दिशा में
शंखध्वनि करताल भी बजने लगे ।
डम डमा डम डमरुओं के मधुर धुन पे
झूम झूम नृत्य सब करने लगे ।।

फिर से एक आवाज़ गूंजी श्रुति पटल पे
आ गए तिरकाल दर्शी द्वार मेरे ।
देखते वो नयन भर सर्वस्व मेरा
बंद आँखें हम उन्हें कैसे निहारें ।।

उठ रही हूं गिर रही हूं लड़खड़ा के
भागकर जाती मगर उनके दरस को ।
आज कैसा दिव्य दर्शन दे रहे प्रभु 
भर नहीं पाऊं मैं झोली में सुयश को ।।

**जिज्ञासा सिंह**

44 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार दीदी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूँ ..

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 12-03-2021) को
    "किसी का सत्य था, मैंने संदर्भ में जोड़ दिया" (चर्चा अंक- 4003)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. आदरणीय मीना जी, नमस्कार !
      मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं..सादर शुभकामनाएं एवम सादर नमन..

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  3. बहुत सुन्दर रचना।
    --
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. आदरणीय शास्त्री जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हृदय से नमन करती हूं..सादर..

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  4. अब यह तो मेरे लिए तय करना कठिन है कि यह अभिव्यक्ति देवी पार्वती की ओर से है या आपकी अपनी ओर से । लेकिन है बहुत भावभीनी । अभिनन्दन आपका माननीया जिज्ञासा जी ।

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    1. जितेन्द्र जी, आपकी प्रतिक्रिया का आदर करती हूं..ये कविता लिखी तो अपनी ओर से..परंतु समर्पित है मां पार्वती को..

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  5. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का स्वागत है.. बहुत बहुत आभार एवम अभिनंदन करती हु..

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  6. वाह शिवमय हो गईं तुम तो ।बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया का स्वागत करती हूं एवम नमन करती हूं..

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  7. बेहद भावपूर्ण,जीवंत शब्दचित्र प्रिय जिज्ञासा जी।
    आपकी लिखी संवाद शैली में एक रोचक प्रवाह है।
    सस्नेह
    शुभकामनाएं।

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    1. बहुत आभार प्रिय श्वेता जी, आपकी प्रशंसा दिल में उतर गई..आपको हार्दिक नमन ..

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  8. फिर से एक आवाज़ गूंजी श्रुति पटल पे
    आ गए तिरकाल दर्शी द्वार मेरे ।
    देखते वो नयन भर सर्वस्व मेरा
    बंद आँखें हम उन्हें कैसे निहारें ।।

    बहुत ही सुंदर सृजन, महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं जिज्ञासा जी,सादर नमन आपको

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  9. आपका बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करते हुए आपको महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई..

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  10. अभी फोलोवर्स का गैजेट दिख नहीं रहा . फिर आना पड़ेगा फ़ॉलो करने :)

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  11. देखते वो नयन भर सर्वस्व मेरा
    बंद आँखें हम उन्हें कैसे निहारें ।।

    जिज्ञासा जी बहुत ही सुंदर सृजन, महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

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  12. बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं..आपकी प्रशंसा को सादर नमन...

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  13. बहुत ही सुन्दर व दिव्य भावों से ओतप्रोत मुग्ध करती कविता - - साधुवाद सह।

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  14. ब्लॉग पर आपकी विशेष टिप्पणी का इंतजार रहता है कृपया स्नेह बनाए रखें, आपको मेरा नमन..

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  15. बहुत बहुत आभार आपका ओंकार जी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन है..

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  16. उत्तर
    1. बहुत आभार अनीता जी, आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूं.. सादर..

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  17. लाजवाब ,बहुत ही सुंदर सृजन , गौरी शंकर को शत शत नमन

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    1. सुंदर टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करती हूं..स्नेह बनाए रखें.. सादर अभिवादन..

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  18. बहुत बहुत सराहनीय रचना । शुभ कामनाएं ।

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    1. आपका बहुत आभार एवम अभिनंदन करती हूं ब्लॉग पर आपकी विशेष टिप्पणी सदैव प्रेरणा देगी..सादर..

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  19. ओह! जिज्ञासा जी रोमांचक लेखन, भावभीनी अभिव्यक्ति। शब्द शब्द समर्पित भाव लिए सुंदर पावन रचना।
    ॐ नमः शिवाय।

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    1. कुसुम जी आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ब्लॉग पर आपका सदैव स्नेह मिल रहा है सादर नमन..

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  20. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    ॐ नमः शिवाय।

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  21. अनुराधा जी, ब्लॉग पर आपकी विशेष टिप्पणी को हार्दिक नमन करती हूं, सादर अभिवादन..

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  22. आपकी यह शिवमय रचना बहुत ही सुंदर है। भगवान भोलेनाथ की कृपा आप पर बनी रहे।

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  23. बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हृदय से नमन करती हूं..

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  24. रोचक और भावभीनी रचना प्रिय जिज्ञासा जी | त्रिकालदर्शी के आने का जीवंत अवलोकन कल्पना नहीं याथार्थ सा लगा | हार्दिक शुभकामनाएं इस सुंदर लेखन के लिए |

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  25. आप जब आती हैं ।
    तो मेरे मन के हर कोने में झाँक जाती हैं ।।
    मन करता है हर बार ।
    कैसे करूं आपका सत्कार ।।
    ईश्वर से यही कामना है ।
    आप सवस्थ रहे, प्रसन्न रहे, यहीं प्रार्थना है ।।

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