दोहे


मन की गठरी में भरा, पीड़ा घोर विषाद ।
प्रियवर सन्मुख बोलकर, कम कर कुछ तादाद ।।

हे मन मूरख तोलकर, अपना स्वयं वजूद ।
जल सागर में है भरा, तभी अगिन में कूद ।।

खुद को ज्ञानी मानकर, खोल न अपनी खोल ।
भाषा अपनी तोलकर, ज्ञानी सम्मुख बोल ।।

दुनिया माया से भरी, कोटि कोटि बहुरंग ।
गली गली नुक्कड़ नुक्कड़, करती है मति भंग ।।

एक दिशा और लक्ष्य से, बनता मन है वीर ।
मन साधे सब कुछ सधै, जैसे धनुषा तीर ।।

एक दिये की ज्योति से, जगमग जग है होय ।
जिनके मन कालिख भरा, उसे न सुमिरे कोय ।।

**जिज्ञासा सिंह**

22 टिप्‍पणियां:


  1. मन की पीड़ा बोल कर , कब कम हुआ विषाद ।
    प्रियवर भी मुँह फेरते , मन में पड़े मवाद ।।

    सभी दोहे बेमिसाल , 👌👌👌👌👌

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    1. आपकी बात से सहमत हूं आपका बहुत आभार आदरणीय दीदी।

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  2. अच्छे दोहे हैं जिज्ञासा जी। तीसरे दोहे में सम्भवतः आप 'खोल न अपनी पोल' कहना चाहती होंगी।

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    1. आ0का बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी,सादर नमन आपको ।

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  3. कबीर की सूक्तियाँ का अहसास कराते नीति के दोहे।
    बहुत सुंदर है जिज्ञासा जी मन में शुभ्रा का संचार करते हैं।
    अभिनव सृजन।

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    1. आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  4. बहुत सुंदर ज‍िज्ञासा जी, दुनिया माया से भरी, कोटि कोटि बहुरंग ।
    गली गली नुक्कड़ नुक्कड़, करती है मति भंग ।।... और एक और दोहा याद आ गया----सूरदास की काली कमर चढ़ै ना दूजौरंग

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    1. आपके कविता और कवियों के बारे में ज्ञान से अचंभित हो जाती हूं, बहुत सराहनीय हैं ये बातें ।मेरी रचना की प्रशंसा के लिए आपको हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  5. बहुत सुंदर दोहे,जिज्ञासा दी।

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    1. आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय सर ।आपको मेरा सादर नमन ।

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  7. एक दिये की ज्योति से, जगमग जग है होय ।
    जिनके मन कालिख भरा, उसे न सुमिरे कोय ।।

    बहुत ही सुंदर दोहे जिज्ञासा जी

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    1. आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन

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  8. आदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर प्रेरणादायक दोहे। पढ़ कर मन आनंदित हुआ । अंत के दो मुझे सब से अधिक अच्छे लगे। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।

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  9. बहुत बहुत आभार प्रिय अनंता ।हमेशा खुश रहो।

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  10. मतिभंग - नया शब्द प्रयोग।
    सुन्दर दोहे।

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  11. सुन्दर और सार्थक दोहों के लिए आपको बधाई। सादर।

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