फिर विश्व सभ्यता मौन हुई
वे रीछ और वानर युग के
दिखते आदिम मानव जैसे
वनचर भी उनसे डरे हुए
पीते अपनों का लहू ऐसे
वे मानुष हैं या नर पिशाच
मनु की पहचान ही गौण हुई
इनकी अपनी ही माँ बहनें
अबलाएँ बनकर डरी हुईं
घातक हथियारों के डर से
अपने ही घर में घिरी हुईं
जो कल तक जग का हिस्सा थीं
इस दुनिया में वो कौन हुईं
है काल कलुषता का छाया
इस सृष्टि की हर एक थाती पे
आतंकी डाका डाल रहे
चढ़कर के विश्व की छाती पे
सब मूल्य,संस्कृति और उन्नति की
हर गाथा अब हौन हुई ।
सब घुसे हुए हैं मांदों में
इस देश में और विदेशों में ।
जो अब तक बड़े मुखर थे वो
छुप गए सियार के भेषों में ।।
उनको कुछ न दिखता है अब
हर जुबाँ भस्म हो पौन हुई ।
फिर विश्व सभ्यता मौन हुई ।।
**जिज्ञासा सिंह**
सच कहा आपने, विकट विनाश छाया है कनिष्क की नगरी में।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रवीण जी, आपकी सार्थक प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम ।
हटाएंइस कल्पनातीत वर्तमान इतना भयावह हो गया है कि शब्द सच में मौन हो गया है । अत्यंत प्रभावशाली सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अमृता जी, आपकी सार्थक प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम ।
हटाएंयथार्थ का कटु शब्द चित्र खींचा है आपने प्रिय जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक परिदृश्य की बेहद आक्रोशित अभिव्यक्ति।
सस्नेह।
आपकी टिप्पणी का सदैव स्वागत है, सादर नमन एवम वंदन ।
हटाएंनिशब्द करती अभिव्यक्ति ,आपने सटीक खाका उकेरा है वैश्विक आतंकवाद पर।
जवाब देंहटाएंचिंतन परक लेखन आपका आक्रोश सचमुच सही दृश्य दिखाई रहा है ।
बहुत सार्थक।
बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी,आपकी विशेष टिप्पणी सृजन का मान बढ़ा गई।
हटाएंजो कल तक जग का हिस्सा थीं
जवाब देंहटाएंइस दुनिया में वो कौन हुईं
सही कहा और विश्व सभ्यता मौन होकर जैसे तमाशा देख रही है ऐसी भयावह स्थिति में समूचे विश्व को एकजुट होकर जहाँ आतंकवाद का विरोध करना चाहिएवहाँ ये मौन भविष्य के लिए चिन्ताजनक बनता जा रहा है...
बहुत ही चिन्तनपरक सृजन।
आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया ने कविता के भावों का मान रख लिया। आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंहृदयस्पर्शी भाव लिए चिंतनपरक सृजन ।
जवाब देंहटाएं
हटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी, आपकी सार्थक प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम ।
वर्तमान की कड़वी सच्चाई व्यक्त की है आपने जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी का सदैव स्वागत है, सादर नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 10 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअब प्रलय की ही प्रतीक्षा है
जवाब देंहटाएंसामयिक भावाभिव्यक्ति
उम्दा रचना