खामोशियाँ
लिहाज का वसन
अंगवस्त्र बदन
कहने को गुस्ताखियाँ
सहनशक्ति
घातक निरंकुश
मन पर अंकुश
अपरमित असीम भक्ति
चोट
मन पर
मन के जखम पर
नहीं था कोई खोट
दर्द
कैसे सहूँ
किससे कहूँ
सब्र, बड़ा बेदर्द
इंतहा
इंतजार की
हार की
सब कुछ सहा
रुलाई
की कथा
सुनाई व्यथा
हुई जग हँसाई
रोम रोम
गिरवीं
न आसमां न जमीं
तुम पर होम
व्याप्त
क्लेश, भोजन
तन मन धन
विषाक्त
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र: साभार गूगल
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय मीना जी,रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवम अभिनंदन।आपको मेरी असीम शुभकामनाएं।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कविता जी,प्रशंसा को सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंरुलाई
जवाब देंहटाएंकी कथा
सुनाई व्यथा
हुई जग हँसाई
वाह!!!
बहुत ही सटीक एवं सारगर्भित क्षणिकाएं
लाजवाब।
बहुत बहुत आभार सुधाजी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन।
जवाब देंहटाएंदर्द
जवाब देंहटाएंकैसे सहूँ
किससे कहूँ
सब्र, बड़ा बेदर्द
बहुत सुंदर क्षणिकाएं,सादर
बहुत बहुत आभार कामिनी जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।
हटाएंबहुत ही मार्मिक हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मनीषा जी ।
हटाएंबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी क्षणिकाएँ दी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
हटाएंबहुत ही भाव पूर्ण है आपके लघु सृजन जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंछोटे में गहराई समेटे बिल्कुल नावक के तीर!
देखन में छोटे लगे घाव करें गंभीर।
अप्रतिम।
आपकी प्रशंसा सृजन को सार्थक कर गई,बहुत आभार कुसुम जी ।
जवाब देंहटाएंहर शब्द अर्थमय, छन्दमय।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रवीण जी ।
हटाएंकम शब्दों में संपूर्ण अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएं अत्यंत सुंदर है प्रिय जिज्ञासा जी।
सस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका श्वेता जी ।
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