राम वन गमन

नृप घर जन्म लियो बैदेही ।
मिले राम प्रिय प्रेम सनेही ।।
काल कुचाल चला जब अपने ।
उजड़ा अवध टूट गए सपने ।।
कुबड़ी ने एक जाल बिछाया ।
कैकेई को खूब फंसाया ।।
मति मतांध में मातु फँसी जब ।
रघुवर को बन भेज हँसी तब ।।

ऐसी बिपदा आ पड़ी, अवधपुरी पर आज ।
दसरथ नैनन नीर हैं, रोवत सबहि समाज ।।

दोनों भाई राम लक्ष्मन ।
बैदेही संग जाते हैं बन ।।
पूरा अवध आज ब्याकुल है ।
पसु पच्छी स्रिस्टी आकुल है ।।
कौन धराए धीर अवध को ।
भूमि परे राजन दसरथ को ।।
मान किया रघुवर ने नृप का ।
धर्म निभाया राजन सुत का ।।

दिन बीते बीती निसा, उठि रघुनंदन भोर ।
पीत वस्त्र धारन किया, चले हैं बन की ओर।।

**जिज्ञासा सिंह**

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर !
    सियावर रामचंद्र की जय !

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  2. अत्यंत सुंदर ...., मनमोहक सृजन ।

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  3. सदृश सा वर्णन राम वन गमन का।
    सुंदर काव्य सृजन

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  4. वाह! सिया-राम के वन गमन का सरस वर्णन, बधाई!

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  5. आपका बहुत बहुत आभार अनीता दीदी ।

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  6. सरस लोक लुभावन शब्दावली के साथ भावपूर्ण वन गमन चित्रण प्रिय जिज्ञासा जी। रामकथा का ये भावुक प्रसंग हृदयस्पर्शी। है। आपने बहुत बढ़िया शब्दावली से सजाया है। स स्नेह शुभकामनाए और स्नेह आपके लिए 🌷🌷🌷🌷

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