मेरे भी पंख होते
और हम खुद उड़ रहे होते
मैं उड़ती दूर अंबर पे
कोई न राह में आता,
कोई बन के मेरी बाधा
परों को न कतर पाता ।
ये बातें स्वप्न में आती
मुझे जब देखतीं सोते ।।
वरन मैं तो हूँ कठपुतली
सी बुनियादी ज़माने की,
मुझे देते नहीं वो कुछ न
आदत भी है पाने की ।
मगर जीवन के घर्षण के
हमेशा दोषी हम होते ।।
भला अब क्या कहें किससे कहें
कहने को, कुछ है क्या ?
सभी कुछ जानते हैं जो
उन्हें समझा नहीं सकते।
ये मन के तार हैं जो स्वतः
ही जुड़कर सुदृढ़ होते ।।
मैं उड़ती तो गगन में हूँ
मगर दिल में वही बगिया,
जहाँ है घोसला अपना
है तिनकों से सजी दुनिया ।
घड़ी भर भूल भी जाऊँ
है दूजे पल वहीं होते ।।
मैं धारा हूँ करूँ सिंचन
हवाओं से मैं ले सरगम,
मैं अंबर का मैं धरती का
कराती हूँ सदा संगम ।
भला फिर क्यूँ मुझे अदना
समझ हैं आँसू में डुबोते ।।
**जिज्ञासा सिंह**
भले ही आज लड़कियाँ आसमान छू रही हैं फिर भी कहीं न कहीं उनके पंखों को क़तर दिया जाता है ..... बेहतरीन अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी..आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया आपको नमन और वंदन ।
हटाएंउड़ान और लम्बी उड़ान के बाद अपने घौंसले का आनंद ...
जवाब देंहटाएंकितना ज़रूरी है सब एक छोटे से मन के लिए ... पर जाने क्यों ये समाज अपने नियमों मिएँ बाँधना चाहता है उन्मुक्त उड़ान ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
इतनी सारगर्भित और सार्थक प्रशंसा के लिए आपका असंख्य आभार और अभिनंदन ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-12-2021) को चर्चा मंच "दम है तो चर्चा करा के देखो" (चर्चा अंक-4265) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, प्रणाम !
हटाएंचर्चा मंच में रचना को शामिल कर आपने रचना को सार्थक बना दिया ।आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन ।आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 1 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
सुन्दर अति सुन्दर, एक राय मेरी रचना पर भी
हटाएंपम्मी जी, नमस्कार!
हटाएं"पांच लिकों का आनंद" में रचना को शामिल कर आपने रचना को सार्थक बना दिया ।आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन ।आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं🙏💐
सुन्दर अति सुन्दर, एक राय मेरी रचना पर भी
जवाब देंहटाएं💐💐👍👍
हटाएंआपकी कविता निस्संदेह उत्कृष्ट है जिज्ञासा जी। तीसरे अंतरे में सभी 'कुछ जानते हैं जो उन्हें समझा नहीं सकते' लिखना सम्भवतः अधिक उपयुक्त होता।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय जितेन्द्र जी ।आपका सुझाव देख लिया है ।आपको मेरा नमन और वंदन ।
हटाएंमैं उड़ती तो गगन में हूँ
जवाब देंहटाएंमगर दिल में वही बगिया,
जहाँ है घोसला अपना
है तिनकों से सजी दुनिया ।
घड़ी भर भूल भी जाऊँ
है दूजे पल वहीं होते ।।
बहुत ही भावनात्मक और सुंदर रचना!
आपकी प्रशंसा का हार्दिक आभार और अभिनंदन है प्रिय मनीषा ।
हटाएंमैं उड़ती तो गगन में हूँ
जवाब देंहटाएंमगर दिल में वही बगिया,
जहाँ है घोसला अपना
है तिनकों से सजी दुनिया ।---अनुपम सृजन...जिज्ञासा जी।
संदीप जी आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंख्वाव परछाई होती है मंजिल की - इन्हें निरन्तर देखते रहना चाहिए। ये एहसास कराती स्वयं में किसी विशेष के होने की ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण सृजन !
आपका बहुत बहुत आभार । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन और वंदन ।
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंहृदय की गहराई से उठता प्रश्न संवेदनाओं को समेटे सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंकितनी ही ऊंची उड़ान हो नारी मन सदा अपनों के लिए समर्पित होता है पर क्यों आखिर क्यों वो वह स्थान नहीं पा सकती जिसकी वो हकदार हैं क्यों उसे मुठ्ठी भर खुशी नहीं मिल पाती।
सुंदर सार्थक पोस्ट।
रचना को विस्तार देती आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया आपको मेरा नमन और वंदन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर 🙏💐
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