देश दुनिया जीत ली, मन से जो हारा
हारकर अपने से, होता बेसहारा ।।
ऐ मनुज है भाग्य तेरा अर्थ जग में,
तू खड़ा परिचय निकाले स्वयं मग में ।
है वही कामी, वही नामी जहाँ में,
जीत जिसके भाव में, हर एक रग में ।
वो ही मोती बन के माला में सजे,
उसका ही झूमें नगीना बन सितारा ।।
मन हुआ दृढ़ और चंचल पल ही पल में,
डूबता कीचड़ में, उतराता है जल में ।
अंकुरण प्रस्फुटित होता बीज में फिर,
भोर खिल कर बदल जाता है कमल में ।।
चढ़ है जाता लक्ष्मी के चरण में वो,
फिर वो जाता नैन सारे जग निहारा ।।
एक पापी मन कभी अपना न होता,
इस जगत के बंध्य खुद में ही पिरोता ।
दीर्घ लघु हर मार्ग पर खुद को फँसाता,
गर्धपों सा पीठ पर हर भाव ढोता ।।
है समझता शीर्ष पर ऊपर है वो पर,
स्वयं के चक्षू से जाता है उतारा ।।
इस तिलस्मी मन को जो भी जीत ले,
मन से मन की, मन विजय की नीत ले,
जीतकर जग में करे प्रस्थान मन से,
तू भला है या बुरा, सुभीत ले ।।
तू ही मन का,मन ही तेरा,
हर विषमता और समता में सहारा ।।
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 5 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
बहुत-बहुत आभार पम्मी जी,"पांच लिंकों का आनंद" में रचना को चयन करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूं, मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-01-2022) को चर्चा मंच "नसीहत कचोटती है" (चर्चा अंक-4300) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर । चर्चामंच में मेरी रचना का चयन करने के लिए आपका बहुत बहुत अभिनंदन करती हूं, मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
हटाएंमन के हारे हार है, मन के जीते जीत !
जवाब देंहटाएंजी सही कहा आपने । आपको मेरा हार्दिक अभिवादन ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार मनोज जी । आप को मेरा नमन है ।
हटाएंबहुत बढ़िया प्रिय जिज्ञासा जी |ये मन ही सध जाए तो क्या कहना !ये कुटिल मनुवा ही तो सारे फसादों की जड़ है |पल में अनगिन योजन पथ नाप आता है |इसकी गति पर कोई भाग्यशाली ही काबू पा सका है |बहुत अच्छा लिखा आपने | बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंये कुटिल मनुवा ही तो सारे फसादों की जड़ है |पल में अनगिन योजन पथ नाप आता है.. हाहा.. सच इसकी फसाद ने ही तो जीवन में सारी फसाद पैदा की है.. सार्थक प्रतिक्रिया ।सृजन सार्थक । आपको मेरा नमन और वंदन ।
जवाब देंहटाएंमन चंगा तो कठौती में गंगा। बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय विश्वमोहन जी, आपको नमन और वंदन 💐🙏
हटाएंसुंदर सृजन मन के मनोभावों पर गहन अध्ययन।
जवाब देंहटाएंमेरे कुछ भाव👇
थिरक किवाड़ी मन थर झूले
फिर भी नींद न खोले।
मन के नभ पर महा प्रभंजन
कितने बदले चोले।।
पनघट जाकर भरते-भरते
मन की गागर फूटे
वाँछा में आलोड़ित अंतर
कच्ची माटी टूटे।।
बहुत सुंदर और सारगर्भित रचना से आपने मेरी रचना का स्वागत किया है आदरणीय कुसुम जी, ये मेरा सौभाग्य है ।
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन होता है आपका ।
मेरी रचना की तारीफ के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏💐
'मन हुआ दृढ़ और चंचल पल ही पल में,
जवाब देंहटाएंडूबता कीचड़ में, उतराता है जल में ।
अंकुरण प्रस्फुटित होता बीज में फिर,
भोर खिल कर बदल जाता है कमल में ।।
चढ़ है जाता लक्ष्मी के चरण में वो,
फिर वो जाता नैन सारे जग निहारा ।।'--- बहुत सुन्दर पद्यांश, बहुत सुन्दर रचना!
आप जैसे विद्वतजन की सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन 💐🙏
हटाएंबेहतरीन रचना जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय अनुराधा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन 🙏💐
जवाब देंहटाएंमन के भावों को उकेरता मन ... जीत,हार, संकल्पों के भावों से ओत-प्रोत सृजन ...बहुत ही उत्कृष्ट बन पड़ा है।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंमैदान में हारा हुआ इंसान जीत सकता है पर मन से हारा हुआ इंसान कभी नहीं जीत सकता है!
जवाब देंहटाएंउम्दा सृजन😍💓
बहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा ।
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