आज तो एक सिरा जाल का ही काटा है,
अभी तो लाख सिरे काटने को बाकी हैं ।
आज तो देख ली है एक झलक ही तुमने,
अभी तो देखना जीवन की मेरे झाँकी है ।।
यही सदियों से कहा मेरे सभी अपनों ने,
तू तो सहने के लिए इस जहान में आई ।
अरी नादान छोड़ लड़कपन की नादानी,
तू एक स्त्री है, सदियों से गई भरमाई ।।
नज़र का क्या कहूँ ? उसने भी क्या नहीं देखा,
सदा झुकती रहीं, मासूम पुतलियों के संग ।
मगर तू देती रही हौसला सदा मुझको,
सजी तकदीर की रेखा हथेलियों के रंग ।।
उठाऊँ जैसे कदम रखूँ पहली सीढ़ी पे,
कोई न कोई मेरी राह में बाधा आए ।
सोचकर यही सदा बढ़ती रही राहों पे,
काँटों संग फूल खिले और सदा मुसकाए ।।
अरी ओ जिंदगी तुझसे करुँ शिकायत क्या ?
जख्म लेकर धरा पे जनम हुआ था मेरा ।
तुझे ही शुक्रिया कहती हैं मेरी हर साँसें,
जुबाँ थकती नहीं है मानते एहसाँ तेरा ।।
तूने मुझको सिखाया कदम कदम कैसे चलूँ,
और मै काट बंधनों को आगे बढ़ती रही ।
उसी क्रम में बची हैं बेड़ियाँ अभी भी कई,
तोड़ने की सदा तू प्रेरणा बनती ही रही ।।
मिला जो साथ तेरा यूँ ही तेरी बाँहों में,
झूलकर आसमाँ भी छू लूँगी मैं एक दिन ।
यही है कामना तू बन के मेरी यूँ साथी,
सम्भाल लेगी मुश्किलों के आते हर पल छिन ।।
**जिज्ञासा सिंह**
मिला जो साथ तेरा यूँ ही तेरी बाँहों में,
जवाब देंहटाएंझूलकर आसमाँ भी छू लूँगी मैं एक दिन ।
यही है कामना तू बन के मेरी यूँ साथी,
सम्भाल लेगी मुश्किलों के आते हर पल छिन ।। बेहतरीन रचना जिज्ञासा जी।
आपकी सराहना रचना को सार्थकता प्रदान करती है अनुराधा जी आपने सृजन को समय दिया । आपका बहुत-बहुत आभार और अभिनंदन ।
हटाएंसोचकर यही सदा बढ़ती रही राहों पे,
जवाब देंहटाएंकाँटों संग फूल खिले और सदा मुसकाए ।।
सुन्दर सोच की उपज सखी
उम्दा रचना।
बहुत दिनों पश्चात आपकी उपस्थिति एक सुखद अनुभूति दे रही है प्रिय सधु जी । आपने रचना की प्रशंसा की सुजन सार्थक हुआ । आप को मेरा नमन और बंदन ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०८-०१ -२०२२ ) को
'मौसम सारे अच्छे थे'(चर्चा अंक-४३०३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच में रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी, मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐🙏🙏
जवाब देंहटाएंयही सदियों से कहा मेरे सभी अपनों ने,
जवाब देंहटाएंतू तो सहने के लिए इस जहान में आई ।
अरी नादान छोड़ लड़कपन की नादानी,
तू एक स्त्री है, सदियों से गई भरमाई ।।
स्त्री जीवन की यही कहानी,
लबों पे मुस्कान आंखों में पानी!
फिर भी बढ़ती रहती है पथ पर,
लेकर उम्मीदों की रोशनी!
बहुत ही बेहतरीन उम्दा रचना
एक सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा ।
जवाब देंहटाएंजीत की आशा और आत्मविश्वास से भरी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी रचना की तारीफ के लिए आपका बहुत-बहुत आभार 💐🙏
हटाएंतुझे ही शुक्रिया कहती हैं मेरी हर साँसें,
जवाब देंहटाएंजुबाँ थकती नहीं है मानते एहसाँ तेरा ।।
बहुत खूब ! लाजवाब भावाभिव्यक्ति जिज्ञासा जी !
आपकी प्रशंसा ने कविता को सार्थक कर दिया आपका बहुत-बहुत आभार💐🙏
हटाएंबहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है । रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद 💐🙏
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसराहना संपन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । आपको मेरा सादर नमन और बंदन ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है प्रिय जिज्ञासा जी!. जिंदगी पर बहुत ही मार्मिक चिंतन। जो जीवन के अनुभव सिखाते हैं वो कोई पाठशाला नहीं सिखा सकती। जीवन दर्शन को उकेरता बेहतरीन सृजन सखी। बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आपका । मेरा नमन और वंदन सखी 🙏💐
हटाएंअरी ओ जिंदगी तुझसे करुँ शिकायत क्या ?
जवाब देंहटाएंजख्म लेकर धरा पे जनम हुआ था मेरा ।
तुझे ही शुक्रिया कहती हैं मेरी हर साँसें,
जुबाँ थकती नहीं है मानते एहसाँ तेरा ।।👌👌👌👌🙏🌷🌷💐💐
☺️🙏💐
जवाब देंहटाएंविस्वास से लबरेज सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी 💐🙏
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