समय समयांतर


असमय समय मार गया
कोड़े लगा लगा, धिक्कार गया 
अनजानी हवा का झोंका
सर्प की फूँक सा फुफकार गया ।।

स्तब्ध अटल गड़ गया पाँव
नीचे जमी भी नहीं रही
ज्वालामुखी फटने के बाद
लौ धधकती रही
जला लावा उड़ उड़ चेहरे की
रंगत बिगार गया ।।

वो चमक वो आभा कभी 
जो मृगनयनी आँखों ने देखा
सजी संवरी बनी रही 
वो कामिनी सुरेखा
पहिया चला समय का, बिन मंजिल
चौराहे पर उतार गया ।।

समय पर समय ही बतायेगा
कि समय ऐसा भी होता है
तुम समय को या समय तुमको
कोई न कोई तो एक दूजे को ढोता है
समय का पड़ा गहरा घाव
रिस बार बार गया ।।

**जिज्ञासा सिंह**

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर ।
    सादर अभिवादन।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-4-22) को "सॄष्टि रचना प्रारंभ दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा".(चर्चा अंक-4389)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. आपका बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी ।
    रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक स्वागत है ।
    आपको नमन ।सादर शुभकामनाएं।

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  4. समय पर समय ही बतायेगा
    कि समय ऐसा भी होता है
    तुम समय को या समय तुमको
    कोई न कोई तो एक दूजे को ढोता है
    समय का पड़ा गहरा घाव
    रिस बार बार गया
    समय समय की बात...
    बहुत सटीक लिखा जिज्ञासा जी!
    बहुत लाजवाब
    वाह!!!

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    1. आपकी प्रतिक्रियाएं नव सृजन का आधार बनती हैं।

      बहुत बहुत शुक्रिया सुधाजी ।

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  5. एक समय ऐसा भी होता है,
    समय असमय होता है पर
    असमय भी अच्छा समय
    हो सकता है.चाहे
    ढ़ोना कह लो या कहो
    परस्पर सहारा देना.

    नए संवत्सर में समय अच्छा बीते, श्वेता जी.
    आपने समय पर बात कह दी समय की.

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार प्रिय नूपुर ।सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपको नमन ।

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  6. कभी नहीं होता कुछ जग में,

    अकारण अकाल!

    समय सदा से चलता आया,

    अपनी अद्भुत चाल।

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन ।

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  7. प्रिय जिज्ञासा जी,समय बलवान है।सभीउस पर निर्भर है।अच्छा भी बुरा भी।समय की गति को बखूबी परिभाषित करती रचना।सस्नेह।

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