थे गए विश्वास लेके,
लौट आए सब लुटा के ।
क्या मिला परदेस जाके ?
डिग्रियां आधी अधूरी
फीस देनी पड़ी पूरी,
कौन कहता उस जहाँ में
है हमें पढ़ना जरूरी,
सोच थी सपने सजाना
लौट आए जी बचा के ॥
इस चमन में क्या कमी
जो भागते चमनों चमन,
है यही धरती, यही अंबर
यही बहती पवन,
फिर भला क्यों बिहँस पड़ते
डिग्रियाँ उनकी सजा के ॥
जान पे भी बन गई
आन की भी ठन गई,
धागा धागा खुल गया
ऐसी चादर तन गई,
है नहीं दर्जी, न धागा
जो लगाए उसमें टाँके ॥
क्या मिला परदेस जाके ।।
**जिज्ञासा सिंह**
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-3-22) को "क्या मिला परदेस जाके ?"' (चर्चा अंक 4384)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।चर्चा मंच पे रचना की चर्चा होगी ।मेरा सौभाग्य ।आपका हृदय से अभिनंदन ।
हटाएंमेरी सादर शुभकामनाएं सखी ।
जिज्ञासा, परदेस कोई शौक़ से नहीं जाता है. अपने देश में जब अपने सपने सच होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं तभी कोई परदेस में किस्मत आज़माने जाता है.
जवाब देंहटाएंइस समय हमको इन दुखी-संतप्त लोगों के घावों पर मरहम लगाने की ज़रुरत है न कि उन पर नमक छिडकने की.
ऐसा कोई भाव नहीं कि किसी का दिल दुखे ।
हटाएंलेकिन इधर कुछ ऐसे लोगों ने विदेशों में जाना शुरू कर दिया जिन्हें केवल शौक है या फिर विदेश में पढ़ने का लोभ ।कई ऐसे लोगों के बारे में जानकारी हुई, जो यहां अच्छे इंस्टीट्यूट में पढ़ रह थे, पर दोस्त जा रहा इसलिए चले गए, और कोविड में फंस गए । हां अगर जरूरत है तो जरूर जाएं। मेरा खुद का भांजा जिद में चला गया और कोविड में पूरे साल बीमार रहा । और यहां घर वाले दवा ही नहीं भेज पाए चूंकि वो नया गया था कोविड प्रोटोकॉल में उसे दवाइयां मिलनी मुश्किल हो गईं । जो हमने यहां से भेजीं। वो उसे बमुश्किल दो महीने बाद मिलीं । एक घर के तीन बच्चे एक ही समय में फंस गए ।
उनमें एक बच्चा तो सिर्फ इसलिए गया था बाहर पढ़ने कि घर के दो बच्चे गए हैं ।
और यहां मां बाप खुद मरने से बचे । इतना बुरा हाल था । इकलौता बच्चा ।
ऐसी ही कुछ स्थितियाँ हैं, जिसने लिखने को मजबूर कर दिया । वरना तो मेरे खुद के बच्चे तैयार हैं बाहर जाने के लिए।
पर मेरे हिसाब से अभी समय अनुकूल नहीं ।
आपको मेरा सादर अभिवादन ।
अपने देश में यदि सुविधाएँ उपलब्ध हों तो धयड ही कोई परदेस जाए । वैसे कुछ लोग योग्य न होने पर भी बाहर जा कर जो डिग्रियाँ हासिल करने का लोभ संवरण नहीं कर पाते उनके लिए सही लिखा है ।।
जवाब देंहटाएंबिलकुल दीदी । मेरा भी यही मानना है ।
जवाब देंहटाएंएक मध्यमवर्गीय परिवार अपना बहुत कुछ न्योछावर कर अपने बच्चे को बाहर भेजता है फिर उसके सामने इस तरह की जीने मरने की स्थितियां बनती हैं किसी किसी के लिए तो जानलेवा हो जाती हैं,ऐसी विषम परिस्थिति को देखने पर तो यही लगता है कि इससे अच्छा तो अपने देश में ही रहते । जो मैने लिखा है वो एक मां बाप का दर्द है न कि मेरा ।
आपकी टिप्पणी को नमन ।
शत प्रतिशत सही लिखा है, अपने वतन में काम की अपार सम्भावनाएँ हैं, एक जगह दाख़िला नहीं मिला तो और कई नए क्षेत्र हैं, ज़्यादातर लोग भेड़चाल का शिकार होकर विदेश जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दीदी । आपकी सार्थक प्रतिक्रिया का स्वागत है ।
हटाएंजिज्ञासा दी, मुझे भी लगता है कि अपने देश मे,परिवार के साथ मे रहने में जो मजा है वो पराई धरती पर नहीं मिल सकता। और सबसे बड़ी बात वहां के लोग भी हमे पराया ही मानते है।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ज्योति जी । आपकी सार्थक प्रतिक्रिया का स्वागत है ।
हटाएंबहुत खूब जिज्ञासा जी ...बात बात में विदेश भागने वालों को महत्वपूर्ण संदेश देती रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अलकनंदा जी। आपकी सार्थक प्रतिक्रिया का स्वागत है ।
हटाएंअपने देश से जुड़े रहने का संदेश देती सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत आभार ज्योति जी । आपकी सार्थक प्रतिक्रिया का स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी,बहुत मार्मिक उद्बोधन देश के युवा कर्णधारों के नाम।शिक्षा के लिए विदेश जाने में कोई बुराई नहीं पर बुरा है,विदेश शिक्षा के नाम पर जाना और फिर कभी लौट ना आना।ये भी कड़वी सचाई है कि हमारे यहां जनसंख्या वृद्धि के कारण युवाओं के लिए रोज़गार और शिक्षा प्राप्ति के अवसर सिकुड़ते जा रहे हैं पर कई साधन सम्पन्न लोग तो इसे संपन्नता का प्रतीक मान शौक से अपने बच्चों को विदेश पढ़ने और बसनें भेज रहे हैं।प्रतिभाओं का ये पलायन बहुत निराशाजनक है।ऊपर से विश्व युद्ध की आहट से अनेक बच्चों का भविष्य और जीवन खतरे में पड़ गया है बहुत मार्मिक प्रश्न उठाये गए हैं रचना में।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए ।
हटाएंआपकी मनोबल बढ़ाती टिप्पणी हमेशा नव सृजन की द्योतक है ।
नमन और वंदन आपका ।
सीखप्रद संदेश देती सुन्दर सार्थक रचना । बहुत सुन्दर सृजन जिज्ञासा जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी ।
हटाएंआपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने अर्जन को सार्थक कर दिया ।
आपको नमन ।
भेड़चाल का शिकार होने वालो की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार संजय जी ।
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