स्कूल चलो अभियान

स्कूल चलो, स्कूल चलो
स्कूल चलो अभियान ।
ध्यान रहे हर घर तक पहुँचे 
शिक्षा प्रावधान ।।

दफ्तर-दफ्तर मेज-मेज
है चलती खतो-किताबत
दबी फाइलें माँग रही हैं 
 रिश्वत डूबी मोहलत 
रोटी, बस्ता मिलें किताबें
जूता यूनिफॉर्म ।। 

नेलकटर साबुन भी होगा
सेनेटाइजर खास
हाथ पोंछना है रुमाल से
मासूमों को आस
बड़े नुकीले नाखूनों से
रहना सावधान ।।

मॉल माल में भटक रहे
बने हुए घनचक्कर
अजब गजब की सेल 
बजारें देतीं टक्कर
गुब्बारा गाड़ी के आगे
बेच रहे नादान ।।

स्कूल चलो, स्कूल चलो,
स्कूल चलो अभियान ।।

**जिज्ञासा सिंह**

14 टिप्‍पणियां:

  1. जिज्ञासा, तुम्हारा 'स्कूल चलो' अभियान का नारा बहुत अच्छा है पर न जाने क्यों, इसे पढ़ कर मुझे फ़िल्म 'सगीना' के गाने की दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं -
    भोले-भाले ललुआ, खाए जा रोटी बासी,
    बड़ा हो के बनेगा, साहब का चपरासी.'
    लेकिन आज चपरासी भी बन पाना कितनों के नसीब में हो पाता है.

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    1. आपका आभार सर ।ये मेरा नारा नहीं सरकारी नारा है, मुझे तो बस इस बात की फ़िक्र है कि कहीं ये नारा भी नारा ही न रह जाय ।
      आपकी बात से सहमत हूँ, कितने अभियान चलते हैं, पर ज़मीनी तौर पर एक गरीब बच्चे को क्या मिलता है, व्यावहारिक रूप से देखने पर पता चलता है,
      कि जिनके लिए ये अभियान हैं, वो तो अभी भी कहीं दिखायी नहीं दे रहे, हर जगह खींचमतान है ।
      ध्यान दिलाना हमारा फ़र्ज़ बनता है ।
      त्वरित और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका अभिनंदन है ।

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    2. बङी मज़ेदार बात याद आई । एक कहावत ये भी है - कथनी और करनी । हम करनी पर ध्यान दें तो सूरत बदल सकती है ।

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    3. नूपुर जी एक गीत लिखा था ।
      आपकी टिप्पणी पर प्रस्तुत है:

      कथनी को करनी में रंग ।
      ऊंची रख अपनी परिभाषा
      मत तू होने दे बेरंग ।।

      भोर किरण आई औ आके
      बता गई फिर आने को ।
      धरती अम्बर जगमग हों
      कुंजन वन में छाने को ।।

      तट सोने सा औ चांदी सी
      झिलमिल बहती गंग ।।

      कौन कहे निशि आजु
      अमावस बूझूँ पूरणमासी ।
      झाँक निरख़ता रूप निशापति
      फलक पे अपनी राशी ।।

      जब आलोक बिखरता
      दिखती चारों ओर उमंग ।।

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  2. शिक्षा में स्किल डेवलपमेंट का समावेश भी हो चुका है । और नारे को वास्तविकता में परिवर्तित करना हमारा ही काम है । याद दिलाती रहिएगा ।

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  3. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया ।
    अपने स्तर पर प्रयास जारी है सखी ।
    आती रहा करिए ।दिल से स्वागत है ।
    बहुत आभार आपका ।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2022) को चर्चा मंच       "हे कवि! तुमने कुछ नहीं देखा?"  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  5. आदरणीय शास्त्री जी, सादर नमस्कार !
    रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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