समय बना अंजान तमाशा देखेगा ।
बन कर के नादान तमाशा देखेगा ॥
चुंधियाएगी आँख ज़माने की चकमक से ।
लगना न कुछ हाथ किसी भी बकझक से ॥
चुपके चुपके चलके पीछे खड़ा हुआ,
खोले दोनों कान तमाशा देखेगा ॥
जीत उन्हीं की होनी है ये तो पक्का है ।
कुछ होनी अनहोनी है लगना धक्का है ॥
मंत्र फूँकने वाले कानों में फूँकेंगे
छल का सजा मचान तमाशा देखेगा ॥
हो जाओ होशियार लोमड़ी की चालों पे।
गिद्ध दृष्टि रखना है कोरे भौकालों पे ॥
सातों इन्द्रिय खुली हुई होंगी जिसकी,
मारेगा मैदान तमाशा देखेगा ॥
**जिज्ञासा सिंह**
वाह👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार शिवम जी ।
हटाएंबहुत ही बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी हौसला अफजाई कर गई । संजय जी बहुत शुक्रिया ।
हटाएंसमय तमाशा देखते रहता है और हम उसकी डुग डुगी पर नाचते रहते हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत अभार दीदी । आपकी टिप्पणी ने सृजन सार्थक कर दिया ।
हटाएंआदरणीया जिज्ञासा जी, बहुत सुंदर रचना है. इसमें चेतावनी भी है और सावधानी के लिए आह्वान भी है.
हटाएंहो जाओ होशियार लोमड़ी की चालों पे।
गिद्ध दृष्टि रखना है कोरे भौकालों पे ॥
साधुवाद!--ब्रजेन्द्र नाथ
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
हटाएंजिज्ञासा, वो बेचारे देशभक्त दिन के चौबीसों घंटे, हफ़्ते के सातों दिन और साल के बारहों महीने, देश की सेवा में लगे रहते हैं तब तो हम-तुम सोते रहते हैं पर बेचारों ने थोड़ी हेरा-फेरी कर के ज़रा सी अपनी तिजोरियां क्या भर लीं, तुमने तो उसका तमाशा ही बना दिया !
जवाब देंहटाएंमुझे मालूम था कि सर जी कुछ ऐसा ही लिखेंगे। आपकी हर प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य निधि है, सादर नमन ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2022) को "काव्य का आधारभूत नियम छन्द" (चर्चा अंक--4506) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच के लिए रचना का चयन बहुत ही हर्ष देता है आपका आभार और अभिनंदन । सादर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, बेहतरीन सृजन, जिज्ञासा जी सादर नमस्कार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कामिनी जी ।
हटाएंवाह बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद आपका ब्लॉग पर आना हुआ ।आपका हार्दिक आभार संदीप जी ।
हटाएंवाह..बहुत सुंदर। बहुत खूब। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार वीरेन्द्र भाई ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ओंकार जी ।
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार रंजू जी ।
हटाएंवाह!क्या बात है बहुत करारी चोट।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जिज्ञासा जी।
बहुत आभार आपका।
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका बहुत बहुत स्वागत है शालिनी जी ।
हटाएंसटीक तंज कसता प्रतिकात्मक सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर संतुलित और गहन भी।
साधुवाद जिज्ञासा जी।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत आभार आपका।
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