समय बना अंजान


समय बना अंजान तमाशा देखेगा ।
बन कर के नादान तमाशा देखेगा ॥

चुंधियाएगी आँख ज़माने की चकमक से ।
लगना न कुछ हाथ किसी भी बकझक से ॥
चुपके चुपके चलके पीछे खड़ा हुआ,
खोले दोनों कान तमाशा देखेगा ॥

जीत उन्हीं की होनी है ये तो पक्का है ।
कुछ होनी अनहोनी है लगना धक्का है ॥
मंत्र फूँकने वाले कानों में फूँकेंगे
छल का सजा मचान तमाशा देखेगा ॥

हो जाओ होशियार लोमड़ी की चालों पे।
गिद्ध दृष्टि रखना है कोरे भौकालों पे ॥
सातों इन्द्रिय खुली हुई होंगी जिसकी,
मारेगा मैदान तमाशा देखेगा ॥

**जिज्ञासा सिंह**

30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई

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    1. आपकी टिप्पणी हौसला अफजाई कर गई । संजय जी बहुत शुक्रिया ।

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  2. समय तमाशा देखते रहता है और हम उसकी डुग डुगी पर नाचते रहते हैं ।

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    1. बहुत अभार दीदी । आपकी टिप्पणी ने सृजन सार्थक कर दिया ।

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    2. आदरणीया जिज्ञासा जी, बहुत सुंदर रचना है. इसमें चेतावनी भी है और सावधानी के लिए आह्वान भी है.
      हो जाओ होशियार लोमड़ी की चालों पे।
      गिद्ध दृष्टि रखना है कोरे भौकालों पे ॥
      साधुवाद!--ब्रजेन्द्र नाथ

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  3. जिज्ञासा, वो बेचारे देशभक्त दिन के चौबीसों घंटे, हफ़्ते के सातों दिन और साल के बारहों महीने, देश की सेवा में लगे रहते हैं तब तो हम-तुम सोते रहते हैं पर बेचारों ने थोड़ी हेरा-फेरी कर के ज़रा सी अपनी तिजोरियां क्या भर लीं, तुमने तो उसका तमाशा ही बना दिया !

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    1. मुझे मालूम था कि सर जी कुछ ऐसा ही लिखेंगे। आपकी हर प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य निधि है, सादर नमन ।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2022) को   "काव्य का आधारभूत नियम छन्द"    (चर्चा अंक--4506)  पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. चर्चा मंच के लिए रचना का चयन बहुत ही हर्ष देता है आपका आभार और अभिनंदन । सादर शुभकामनाएं।

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  6. बहुत खूब, बेहतरीन सृजन, जिज्ञासा जी सादर नमस्कार 🙏

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    1. बहुत दिन बाद आपका ब्लॉग पर आना हुआ ।आपका हार्दिक आभार संदीप जी ।

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  8. वाह..बहुत सुंदर। बहुत खूब। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। सादर।

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  9. वाह!क्या बात है बहुत करारी चोट।
    बहुत सुंदर जिज्ञासा जी।

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    1. ब्लॉग पर आपका बहुत बहुत स्वागत है शालिनी जी ।

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  11. सटीक तंज कसता प्रतिकात्मक सृजन।
    सुंदर संतुलित और गहन भी।
    साधुवाद जिज्ञासा जी।

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