कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ।
गले से लग जाओगे
बन के चंदन हार ॥
भानु सहेजे किरन भोर की
दृग झपकाए लाल गरभ का ।
जैसे कमलनी खिले कलिका बिच
माथ ढका आँचल बिच माँ का ॥
थाल सजाए दीपक बाती
राह निहारे द्वार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
अम्बर धरती ढूँढ चुकी सब
घनि अँधियारी रैना ।
पावस ऋतु है बिरह की मारी
आए न पल एक चैना ॥
बूँद झरे संग झर-झर जाए
यौवन का श्रिंगार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
केश उड़े बदरी संग घूमे
लौटे अम्बर छूके ।
गाए गीत मधुर कोयलिया
दामिनि रहि रहि चमके ॥
मोतियन रूप धरे आए हैं
गावत मेघ मल्हार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
**जिज्ञासा सिंह**
प्रेम और विरह की मोहक फुहार से भीगी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दीदी !
हटाएं"थाल सजाए दीपक बाती, राह निहारे द्वार। कंत तुम कब आओगे,
जवाब देंहटाएंनेह की परत फुहार " - सावन में संध्या की बेला का सुंदर चित्रण
बहुत बहुत आभार आपका ।ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति का हार्दिक अभिनंदन करती हूं..सादर नमन ।
हटाएंवाह सुंदर विरह गीत ❤️
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुपमा जी ।
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत अभार भारती जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय दीदी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
हटाएंगाए गीत मधुर कोयलिया
जवाब देंहटाएंदामिनि रहि रहि चमके ॥
मोतियन रूप धरे आए हैं
गावत मेघ मल्हार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
अत्यंत सुन्दर मनमोहक गीत सृजित किया है आपने ।बहुत बहुत बधाई जिज्ञासा जी ।
आपकी टिप्पणी सदैव नव सृजन को प्रेरित करती है ।बहुत आभार मीना जी ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०१-०८ -२०२२ ) को 'अंश और अंशी का द्वंद्व'(चर्चा अंक--४५०८ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन अनीता जी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंप्यार की फुहारों में भीगा हुआ बहुत सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
हटाएंहवा होकर मतवारी चली
जवाब देंहटाएंबिजलियों की कटारी चली
लगी टपकने अमृत धारा
बादल के मलमली दुपट्टे
बरसा रहे जी भरके प्यार
इतर की बोतलें सब बेकार
झूम-झूम बूँदों संग धरणी
गावत मेघ मल्हार ।
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बहुत सुंदर रचना जिज्ञासा जी।
सस्नेह।
आपकी काव्यात्मक प्रतिक्रिया हमेशा आह्लादित कर जाती है,आपके स्नेह का हमेशा स्वागत है ।
हटाएंकोमल काव्य कल्पना से श्रंगारित मधुरिम पावस गान.
जवाब देंहटाएंसाधुवाद @jigyasha singh ji
ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति आह्लादित कर गई, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन।
हटाएंभानु सहेजे किरन भोर की
जवाब देंहटाएंदृग झपकाए लाल गरभ का ।
जैसे कमलनी खिले कलिका बिच
माथ ढका आँचल बिच माँ का ॥
सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई । कविता में अद्भुत भाषा शिल्प का प्रयोग है ।
सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।
हटाएंवाह, बहुत खूब। आप की कलम से निरंतर एक से बढ़कर एक रचनाएँ आ रही हैं। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंमनोबल बढ़ाती सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आपका वीरेन्द्र जी ।
हटाएंकंत तुम कब आओगे
जवाब देंहटाएंनेह की परत फुहार ।
गले से लग जाओगे
बन के चंदन हार ॥
वाह…कितना सुन्दर विरह गीत 🌹
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन।
हटाएंकेश उड़े बदरी संग घूमे
जवाब देंहटाएंलौटे अम्बर छूके ।
गाए गीत मधुर कोयलिया
दामिनि रहि रहि चमके ॥
मोतियन रूप धरे आए हैं
गावत मेघ मल्हार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
वाह!!!!
बहुत ही मनमोहक लाजवाब विरह गीत ।
सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंवाह! कंत तुम कब आओगे, बन के चंदन हार।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंकंत तुम कब आओगे
जवाब देंहटाएंनेह की परत फुहार ।
गले से लग जाओगे
बन के चंदन हार ॥
क्या बात है प्रिय जिज्ञासा जी।पहली पंक्तियों ने ही मन मोह लिया।बहुत प्यारी शृंगार रचना जिसमें प्रियतम की प्रतीक्षा की मिठास और आस दोनों हैं।हार्दिक शुभकामनाएं ।हरियाली तीज मुबारक हो।🌹🌹♥️♥️
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया का हृदयतल से अभी अभिनंदन है ।
हटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका मनोज जी ।
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