गावत मेघ मल्हार

 

कंत तुम कब आओगे

नेह की परत फुहार ।

गले से लग जाओगे

बन के चंदन हार 


भानु सहेजे किरन भोर की

दृग झपकाए लाल गरभ का ।

जैसे कमलनी खिले कलिका बिच

माथ ढका आँचल बिच माँ का ॥

थाल सजाए दीपक बाती

राह निहारे द्वार 

कंत तुम कब आओगे

नेह की परत फुहार 


अम्बर धरती ढूँढ चुकी सब

घनि अँधियारी रैना ।

पावस ऋतु है बिरह की मारी

आए  पल एक चैना ॥

बूँद झरे संग झर-झर जाए

यौवन का श्रिंगार 

कंत तुम कब आओगे 

नेह की परत फुहार 


केश उड़े बदरी संग घूमे

लौटे अम्बर छूके ।

गाए गीत मधुर कोयलिया

दामिनि रहि रहि चमके ॥

मोतियन रूप धरे आए हैं

गावत मेघ मल्हार 

कंत तुम कब आओगे 

नेह की परत फुहार 


**जिज्ञासा सिंह**

34 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम और विरह की मोहक फुहार से भीगी सुंदर रचना

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  2. "थाल सजाए दीपक बाती, राह निहारे द्वार। कंत तुम कब आओगे,
    नेह की परत फुहार " - सावन में संध्या की बेला का सुंदर चित्रण

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति का हार्दिक अभिनंदन करती हूं..सादर नमन ।

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  3. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  4. आपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय दीदी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  5. गाए गीत मधुर कोयलिया
    दामिनि रहि रहि चमके ॥
    मोतियन रूप धरे आए हैं
    गावत मेघ मल्हार ।
    कंत तुम कब आओगे
    नेह की परत फुहार ॥
    अत्यंत सुन्दर मनमोहक गीत सृजित किया है आपने ।बहुत बहुत बधाई जिज्ञासा जी ।

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    1. आपकी टिप्पणी सदैव नव सृजन को प्रेरित करती है ।बहुत आभार मीना जी ।

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  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०१-०८ -२०२२ ) को 'अंश और अंशी का द्वंद्व'(चर्चा अंक--४५०८ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  7. रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन अनीता जी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  8. प्यार की फुहारों में भीगा हुआ बहुत सुन्दर गीत !

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  9. हवा होकर मतवारी चली
    बिजलियों की कटारी चली
    लगी टपकने अमृत धारा
    बादल के मलमली दुपट्टे
    बरसा रहे जी भरके प्यार
    इतर की बोतलें सब बेकार
    झूम-झूम बूँदों संग धरणी
    गावत मेघ मल्हार ।
    -----
    बहुत सुंदर रचना जिज्ञासा जी।
    सस्नेह।

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    1. आपकी काव्यात्मक प्रतिक्रिया हमेशा आह्लादित कर जाती है,आपके स्नेह का हमेशा स्वागत है ।

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  10. कोमल काव्य कल्पना से श्रंगारित मधुरिम पावस गान.
    साधुवाद @jigyasha singh ji

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    1. ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति आह्लादित कर गई, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन।

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  11. भानु सहेजे किरन भोर की
    दृग झपकाए लाल गरभ का ।
    जैसे कमलनी खिले कलिका बिच
    माथ ढका आँचल बिच माँ का ॥

    सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई । कविता में अद्भुत भाषा शिल्प का प्रयोग है ।

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    1. सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।

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  12. वाह, बहुत खूब। आप की कलम से निरंतर एक से बढ़कर एक रचनाएँ आ रही हैं। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। सादर।

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    1. मनोबल बढ़ाती सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आपका वीरेन्द्र जी ।

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  13. कंत तुम कब आओगे
    नेह की परत फुहार ।
    गले से लग जाओगे
    बन के चंदन हार ॥
    वाह…कितना सुन्दर विरह गीत 🌹

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन।

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  14. केश उड़े बदरी संग घूमे

    लौटे अम्बर छूके ।

    गाए गीत मधुर कोयलिया

    दामिनि रहि रहि चमके ॥

    मोतियन रूप धरे आए हैं

    गावत मेघ मल्हार ।

    कंत तुम कब आओगे

    नेह की परत फुहार ॥
    वाह!!!!
    बहुत ही मनमोहक लाजवाब विरह गीत ।

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  15. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन।

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  16. वाह! कंत तुम कब आओगे, बन के चंदन हार।

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  17. कंत तुम कब आओगे
    नेह की परत फुहार ।
    गले से लग जाओगे
    बन के चंदन हार ॥
    क्या बात है प्रिय जिज्ञासा जी।पहली पंक्तियों ने ही मन मोह लिया।बहुत प्यारी शृंगार रचना जिसमें प्रियतम की प्रतीक्षा की मिठास और आस दोनों हैं।हार्दिक शुभकामनाएं ।हरियाली तीज मुबारक हो।🌹🌹♥️♥️

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया का हृदयतल से अभी अभिनंदन है ।

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