दो मुस्कुराते नैन देखे
नैन में जलधार देखा ।
लाल-नीला,श्वेत- श्यामल
सज रहा संसार देखा ॥
नैन में बहता समंदर
तैरती नौका वृहद ।
उछलती कुछ मचलती
थी डूबती तिरती जलद ।
बरसता पावस, पनपता
सीप मुक्ताहार देखा ॥
केवड़े सा जल कहाँ
सागर से पूँछें मीन लाखों ।
यौवनों को है संजोना
पार उड़ना तीव्र पाँखों ।
इस प्रवाही-जीव को
जाना जलधि के पार देखा ॥
नैन अविरल जब हुए
तो भाव निर्मल कर गए ।
ले अँजूरी सिंधु विस्तृत
नैन में ही भर गए ।
नैन से होकर गुजरता
सिंधु का हर सार देखा ॥
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 21 सितंबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरचना को पांच लिकों में शामिल करने के लिए आपका आभार और अभिनंदन पम्मी जी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-09-2022) को "मोम के पुतले" (चर्चा अंक 4559) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, सादर प्रणाम !
हटाएंरचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका आभार और अभिनंदन । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर ।
हटाएंवाह, सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंनैन में बहता समंदर
जवाब देंहटाएंतैरती नौका वृहद ।
उछलती कुछ मचलती
थी डूबती तिरती जलद ।
बरसता पावस, पनपता
सीप मुक्ताहार देखा ॥
वाह !! अत्यंत सुन्दर सृजन ।
आपका, वाह ! कहना मनोबल बढ़ा गया ।आभार आपका।
जवाब देंहटाएंनैन में बहता समंदर
जवाब देंहटाएंतैरती नौका वृहद ।
उछलती कुछ मचलती
थी डूबती तिरती जलद ।
बरसता पावस, पनपता
सीप मुक्ताहार देखा ॥
सुंदर रूपकों से बिम्बित की है रचना । सुंदर अभव्यक्ति ।
बहुत बहुत आभार दीदी । आपकी प्रतिक्रिया रचना को सार्थक कर गई।
हटाएंनैन अविरल जब हुए
जवाब देंहटाएंतो भाव निर्मल कर गए
ले अँजूरी सिंधु विस्तृत
नैन में ही भर गए ।
नैन से होकर गुजरता
सिंधु का हर सार देखा ॥///
क्या बात है प्रिय जिज्ञासा जी! मन लाख छुपाना चाहता है पर ये निष्ठुर नयन हर राज़ उजागर कर देते हैं--
खुल गये सब राज जो जुबां ने छुपा लिए
दर्द थामे दिल ने - आँखों ने छलका दिए ///
इतनी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार सखी ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी ।
जवाब देंहटाएंनैनों से होकर गुजरता सिंधु का हर साल देखा ... नैन में समुंदर देखा ... सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजी, बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंबेहतर
जवाब देंहटाएंविनम्र आभार।
हटाएंबहुत सुंदर रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार।
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