बालगीत.. बाबा-दादी की यादें

 

(१)शीतल ठंडी छाँव नीम की

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पलंग डालकर लेटे बाबा

शीतल ठंडी छाँव नीम की ।


गाल फुलाते , हिलती तोंद

ज़ोर-ज़ोर साँसें लेते वो

डरकर हम सारे भग जाते

सुनकर खर्राटे की खों-खों

रहते हृष्ट पुष्ट वो हरदम

नहीं जरूरत है हकीम की ॥


वे डॉक्टर के गए नहीं

नहीं बुलाए वैद्य कभी

हट्टे कट्टे पहलवान से

बाबा मेरे लगें अभी

हिम्मत  आने की सम्मुख

दुर्योधन  भीम की ॥


कभी कभी लेटूं मैं

उनके पास बगल में जाके

वीरों की वे कथा कहानी

गीत सुनाते गा के

हर मजहब का मान बताते

पूजा राम रहीम की ॥


पलंग डालकर लेटे बाबा

शीतल ठंडी छाँव नीम की ॥


(२) दादी माँ का पंखा 

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 दादी माँ का हाथों वाला 

पंखा न बिसराया जाय।


मेरी दादी माँ का पंखा 

बिन बिजली के चलता है

इधर घूमता, उधर घूमता

नींद का झोंका लाता है

कभी कभी तो एक दिशा

में सर-सर-सर-सर चलता जाय ॥


मुझको जैसे निंदिया आई

बिजली रानी चली गई 

गर्मी बढ़ी, पसीना निकला 

भाग के दादी पास गई

दादी ने ज्यों हाथ डुलाया

मस्त हवा का झोंका आय ॥


गर्मी की छुट्टी में दादी

कभी अकेले न सोतीं

मैं सोऊं, भैया सोए

बब्बू, मुनियाँ संग होतीं

हँसी-ठहाके लगते खूब

ऐसी बातें हम बतियायँ ॥


एक दूजे पर चढ़े जा रहे

दादी की है सुनता कौन

शोर-शराबे से थक करके

दादी हो जाती फिर मौन

दादी मेरी दुनिया भर की

सुंदर-सुंदर कथा सुनाय ॥


मेरे बालों में दादी की

उंगली खोजे जाने क्या-क्या

ऐसे सहलातीं वो सिर को

खूब लगाऊँ स्वर्ग में गोता

याद करूँ बचपन के दिन जो

आँख में आँसू भर-भर जाय ॥


मैं दादी, दादी बस मेरी

दिन भर घूमूँ उनके साथ

सबके हाल पूछतीं दादी

सब उनकी पूछे कुशलात

गाँव-मुहल्ले की नेता वो

मैं भी बड़ी नेतानी भाय ॥


दादी जबसे चली गईं है

छूट गया वो गाँव मेरा

न गर्मी है न सर्दी है, 

संसाधन का बड़ा बसेरा

पर वो पंखा, दादी वाला

मुझसे न बिसराया जाय ॥


**जिज्ञासा सिंह**

9 टिप्‍पणियां:

  1. जिज्ञासा, दादा-दादी की बड़ी मीठी यादें हैं तुम्हारी !
    हमको तो तो दादा-दादी का रत्ती भर भी प्यार नहीं मिला. हाँ, नानी दि ग्रेट मेरी बहुत पक्की दोस्त थीं और उनके पास दिलचस्प किस्सों का भंडार हुआ करता था.

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    1. जी, सही कहा आपने । मेरे पास तो अपने परदादा की यादों का बेशकीमती खजाना भी है। कितने निराले इंसान थे जितने सख़्त उतने ही नम्र । दोनों का गज़ब सामंजस्य।
      आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार 17 अक्टूबर, 2022 को     "पर्व अहोई-अष्टमी, व्रत-पूजन का पर्व" (चर्चा अंक-4584)    पर भी है।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  3. आदरणीय सर,
    रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार। मेरी शुभकामनाएं ।

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  4. दादा-दादी के साथ बचपन का जीवन्त शब्द चित्र ।उत्कृष्ट सृजन ।

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  5. दादी, दादा की यादों का अनमोल पिटारा खोल दिया है आपने, चित्र भी बहुत सुंदर हैं और सटीक भी!

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  6. बाबा और दादी की यादें ताउम्र साथ रहती है, कभी हँसाती है, कभी गुदगुदाती है कभी थोड़ा-बहुत रुला भी देती है
    बहुत सुन्दर

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  7. दादी जी की अनमोल यादें । सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय ।

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