चिंघार

 

टूट कर बिखरा हुआ एक सीप 

सागर के किनारे आज देखा 

मोतियों की हो रही थी लूट 

लूटते मछुआरे आज देखा 


चींटियों का एक बड़ा 

अम्बार घेरे था खड़ा 

खोल लुढ़का सीप का 

मुँह को छुपाए था पड़ा 

सिसकती आवाज़ बहती

आँसुओं की धार,

कोरों से सिधारेआज देखा 


चील कौवे गिद्ध उतरे

भेड़िए कुत्ते भी दौड़े 

एक कतरा एक कतरा

नोच कर खाने को उमड़े 

नीयतों में खोट,

जिनके म्यान में तलवार,

बिन लड़ेहारे आज देखा 


ये कोई अद्भुत

अजनबी दृश्य  था 

नित्य सुनते कान,

अब आँखों ने देखा 

चीख निकले आह,

पीड़ा घोरअति चिंघार

अपने ही द्वारेआज देखा 


**जिज्ञासा सिंह**

14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ नवंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जिज्ञासा जी,
    कृपया स्पेम चेक कीजिएगा और.आमंत्रण प्रतिक्रिया पब्लिश कर.दीजिएगा।
    सस्नेह।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-11-2022) को   "माता जी का द्वार"   (चर्चा अंक-4615)     पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आदरणीय शास्त्री जी, सादर प्रणाम!
      चर्चा मंच में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन।

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  4. "जिनके म्यान में तलवार,
    बिन लड़े, हारे आज देखा ॥" ...
    जिज्ञासा जी ! नमन संग आभार आपका .. सीप के आलम्बन में मानव समाज की वास्तविकता का मार्मिक शब्द-चित्रण उकेरने के लिए, जो किसी भी संवेदनशील मन को मथ कर व्यथित करने के लिए पर्याप्त हैं .. यशोदा जी की भाषा आपको "साधुवाद" ...
    वैसे भी अब तो "गिद्ध" प्रायः लुप्तप्राय प्राणी हो गये हैं, जो कहीं-कहीं चिड़ियाखानों में देखने के लिए मिल जाते हैं और समाज में उनकी खानापूर्ति मानव ही अपने समाज में करता दिख जाता है .. शायद ...

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    1. रचना की समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार और अभिनंदन ! ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का सदैव स्वागत है ।

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  5. उत्तर
    1. प्रतिक्रियाएं मनोबल बढ़ा जाती है,आपका हार्दिक आभार सखी ।

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  6. जो असहाय हो उसे नोचने और खसोटने ना जाने कौन-कौन पहुँच जाते हैं।मार्मिक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय जिज्ञासा जी।

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  7. आपकी प्रतिक्रिया रचना को संपूर्णता प्रदान करती है, हार्दिक आभार आपका ।

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  8. सीप के माध्यम से आज का सत्य उजागर करती रचना
    प्रतीकात्मक शैली में शानदार सृजन।

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  9. चींटियों का एक बड़ा

    अम्बार घेरे था खड़ा ।

    खोल लुढ़का सीप का

    मुँह को छुपाए था पड़ा ॥

    सिसकती आवाज़ बहती

    आँसुओं की धार,

    कोरों से सिधारे, आज देखा ॥
    बहुत सटीक आज के परिपेक्ष्य पर...
    बस टूटने बिखरने की देर है मोती तो क्या हाड़मांस के चिथड़े उधेड़ने सब आ जाते सब आ जाते हैं
    बहुत सुन्दर सराहनीय सृजन।

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