नई करेंसी धूम करेगी

 

रेशे-रेशे घुसे पड़े हैं दांतों में

भजिया अब घर नहीं बनेगी ।

जली पराली धुआँ भरा है साँसों में

भंडरिया क्या ख़ाक भरेगी ?


तपी दोपहर, चला नहीं

पानी का इंजन ।

खेत सूखते खलिहानों में

भटके खंजन ॥

जमा-बचा गुल्लक का रुपया,

डॉलर बन कर घूम रहा परदेसों में ।

सेंसेक्स में नई करेंसी धूम करेगी ॥


गई जवानी लौट नहीं आयेगी

जितनी जुगत लगा लो ॥

पॉप गाओ, रैपर बन जाओ

भोजपुरी-अवधी अब गा लो ॥

रंग-मंच पे धूम मची, देखो जमजम के, 

योगा-जिम करने वाले संग-संग नाचेंगे ।

मुद्रा नव-नव रूप बदलकर ऐश करेगी ॥


अरे! कहा था नहीं परेशॉं 

होना तुम जग बदलेगा ।

रोटी नून बदल जाएगा

पिज़्ज़ा-बर्गर घर पहुँचेगा ॥

एक हाथ से लेते रहना,कर्ज बैंक से,

ड्योढ़ी पर किश्तों पे किश्तें दे जाएँगे ।

बैंक पॉलिसी आवभगत अब खूब करेगी ॥


**जिज्ञासा सिंह**


19 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 दिसंबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (29-12-2022) को  "वाणी का संधान" (चर्चा अंक-4630)  पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह! बहुत सटीक वर्णन महानगरीय सभ्यता का

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  4. जियो उधार लेकर भी घी पीयो!! चार्वाक दर्शन को अपनी आँखों से देखने का सही समय आ गया। पिज्जा बर्गर खाकर अब देशी व्यंजनों की तरफ नज़र कौन फिराये?? रोचक और चिंतनपरक प्रस्तुति !!!!!

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    1. सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती प्रतिक्रिया।बहुत आभार आपका।

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  5. पराली के धुएं से लेकर सेंसेक्स तक और उम्र के साथ जीवन सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों तक.., सब पहलुओं को स्पर्श करती नायाब रचना । नव वर्ष मंगलमय हो प्रिय जिज्ञासा जी 💐

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  6. सुन्दर पिंगल शरीर सौष्ठव लिये धूम मचाती हुयी धमाकेदार 🤯 कविता के लिये प्रभूत साधुवाद @jigyasha singh ji

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